Rajasthan में बागियों के लिए बड़ा गेम प्लान, वसुंधरा की लिस्ट में 54 बागी, Congress भी मनाने को राजी!

Rajasthan Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव का 3 नवंबर को परिणाम आने वाला है। 25 नवंबर को मतदान के बाद प्रत्याशियों को अपने पाले में लाने के लिए जोड़-तोड़ तेज हो गई है।
वसुंधरा राजे।
वसुंधरा राजे।रफ्तार।

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। राजस्थान विधानसभा चुनाव का परिणाम 3 नवंबर को आने वाला है। 25 नवंबर को मतदान के बाद प्रत्याशियों को अपने पाले में लाने के लिए जोड़-तोड़ तेज हो गई है। ये वो प्रत्याशी हैं, जो बागी हैं। दरअसल, 2018 में 12 निर्दलीय प्रत्याशी विधानसभा पहुंचे थे। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को एक विधायक कम पड़ रहा था। इस कारण निर्दलीयों की भूमिका अहम हो गई थी। ऐसी संभावना जताई है कि इस बार निर्दलीयों की संख्या और अधिक रहेगी, क्योंकि दोनों पार्टियों से बागी उम्मीदवारों की संख्या पिछली बार से अधिक है। उनमें से काफी संख्या में बागी प्रत्याशियों के जीतने की पूरी संभावना हैं।

5 दर्जन सीटों पर बागियों की जीत लगभग तय

भाजपा और कांग्रेस के बागियों को उनके अपने दल से ही अंदरुनी सपोर्ट मिल रहा। बागियों को उनकी अपनी पार्टी के दिग्गजों का आशीर्वाद मिला है। कहा जा रहा पांच दर्जन सीटों पर बागियों ने अपनी पार्टी की प्रत्याशियों की हालात खराब कर रखी थी। भाजपा में 32 बागी और कांग्रेस में 22 बागी नेता अंतिम समय तक चुनाव मैदान में डटे थे। न निर्दलीयों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे का गेमप्लान तैयार है।

वसुंधरा समर्थक भी भाजपा के बागी

वसुंधरा ने समर्थक उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार तो किया पर उन जगहों पर अपनी पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने नहीं गईं, जहां से उनके समर्थक बागी के रूप में प्रत्याशी हैं। वसुंधरा समर्थकों की बात करें तो कैलाश मेघवाल कई बार मंत्री और सांसद रह चुके हैं। इस बार केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से हुए विवाद बाद बीजेपी से उनको निष्कासित किया गया, जिसके चलते उनका टिकट कटा। कैलाश मेघवाल निर्दलीय प्रत्याशी हैं। उनकी जीत की संभावना अधिक है। भवानी सिंह राजावत कोटा की लाडपुरा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बार भाजपा ने उनका टिकट काटा। राजावत भी वसुंधरा के करीबी नेता हैं। टिकट नहीं मिलने से नाराज भवानी सिंह अब लाडनू से निर्दलीय चुनाव लड़े हैं। यूनुस खान वसुंधरा के सबसे करीबी माने जाते हैं। डीडवाना से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं।

बागियों की सूची में यूनुस खान भी

उनको फिर टिकट नहीं मिला है। यूनुस खान भी बागियों की सूची में शोभा बढ़ा रहे। अनीता सिंह नगर भी वसुंधरा की करीबी रही हैं। पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर वो निर्दलीय चुनाव लड़ी हैं। चित्तौड़गढ़ पर भाजपा के मौजूदा विधायक चंद्रपाल सिंह भी टिकट न मिलने पर बागी हुए हैं।

गहलोत ने 2018 में कांग्रेस के खिलाफ बागियों का किया था इस्तेमाल

अशोक गहलोत ने 2018 के चुनावों में ऐसी चाल चली थी कि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत न मिल सके। गहलोत ने कांग्रेस के डेढ़ दर्जन बागियों को चुनाव मैदान में उतारा था। गहलोत को मालूम था कि इनमें दर्जन भर तो चुनाव जीतेंगे। चुनाव बाद नतीजे वैसे ही आए जैसी गहलोत ने तैयारी की थी। 2018 में गहलोत नहीं पार्टी के सभी लोग यही समझ रहे थे कि कांग्रेस बहुमत में आती है तो सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनना तय था पर गहलोत की प्लानिंग काम आई।

गहलोत की चाल चल गई वसुंधरा

राजस्थान के कुछ वरिष्ठ पत्रकार बता रहे 2018 की तरह ही 2023 में चुनाव परिणाम होने वाला है। इस बार बस गहलोत की जगह वसुंधरा ने ले ली है। वसुंधरा राजे की यही प्लानिंग है कि बीजेपी को 85 से 90 सीट मिले। वसुंधरा राजे के खास 20 नेता बागी की हैसियत से चुनाव मैदान में हैं। अगर, यह जीतते हैं तो वसुंधरा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी के साथ आएंगे। नहीं तो ये कांग्रेस की सरकार बनवाएंगे।

गहलोत और वसुंधरा अपनी-अपनी पार्टी से कर सकते हैं अंदरूनी डील

किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो गहलोत और वसुंधरा अपनी-अपनी पार्टी से अंदरूनी डील कर सकते हैं। गहलोत की ओर से लड़ रहे बागी उम्मीदवार मौका पड़ने पर वसुंधरा के लिए खुलकर सामने आ सकते हैं। इसी तरह वसुंधरा के लोग मौका पड़ने पर गहलोत की मदद कर सकते हैं। राजनीतिक पत्रकारों के मुताबिक वसुंधरा की तरह गहलोत भी अपनी पार्टी के बागियों के खिलाफ प्रचार करने नहीं गए। गहलोत ने व्यक्तिगत रूप से न कभी बागियों को मनाने का प्रयास किया, न उन्हें ऐसा न करने का दबाव बनाय, क्योंकि गहलोत को भी मालूम है कि पार्टी को बहुमत से कम सीटें मिलने पर उनकी पूछ होगी, नहीं तो हाईकमान का मन तो कहीं और है।

लोकसभा चुनाव पर भाजपा का फोकस

पत्रकार विनोद शर्मा बताते हैं कि भाजपा की प्राथमिकता में इस समय राजस्थान में सरकार बनाने के बजाय 2024 का लोकसभा चुनाव है। पार्टी चाहती है कि राजस्थान में जैसे 2019 में क्लीन स्वीप हुआ था, वैसा ही कुछ 2024 के लोकसभा चुनाव में हो। बीजेपी सारी गोटियां 2024 चुनाव को लेकर सेट कर रही। चूंकि वसुंधरा शुरू से केंदीय नेतृत्व से पंगा लेती रही हैं, इसलिए शायद सीएम पद के लिए उनके नाम पर केंद्रीय नेतृत्व राजी हो।

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