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मारवाड़ में पाण्डुलिपियों का समृद्ध भंडार: भाटी

जोधपुर, 22 मार्च (हि.स.)। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सौजन्य से एवं राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी के तत्वावधान में सात दिवसीय पाण्डुलिपि पठन एवं संरक्षण कार्यशाला के पांचवे दिन राजस्थानी शोध संस्थान के सहायक निदेशक डॉ. विक्रमसिंह भाटी ने कहा कि मारवाड़ में विभिन्न विषयों की पाण्डुलिपियां अलग-अलग शोध संस्थानों में संग्रहित है। आज उनकी संख्या कई लाखों में है। मारवाड़ में पाण्डुलिपियों का समृद्ध भण्डार रहा है। उन्होंने सनद बही से उदाहरण देते हुए मुडिय़ा लिपि का शोधार्थियों को ज्ञान कराया। तत्कालीन समय में पत्र कैसे लिखे जाते थे? उनमें किस तरह के शब्दों का प्रयोग होता था? पट्टों में किस तरह की शब्दावली का प्रयोग किया जाता था? बहियों एवं पट्टों में तिथि, संवत्, वार आदि कैसे लिखे जाते थे? वि.सं. का क्या निशान होता था? अमावस्या तिथि का क्या निशान होता था? भिन्न-भिन्न समय में शब्दों की बनावट में क्या अन्तर आया? पाण्डुलिपि पठन के लिए भाषा एवं लिपि का ज्ञान जरूरी है। उन्होंने इन सभी के बारे में विभिन्न दस्तावेजों से उदाहरण देते हुए शोधार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान करवाया। डॉ. भाटी ने राठौड़ों की ख्यात जिसे जोधपुर राज्य की ख्यात भी कहते हैं से शोधार्थियों को रूबरू कराया। राठौड़ परंपरा की दी जानकारी: राठौड़ों की ख्यात से उदाहरण देकर उन्होंने जहां सामाजिक रीति-रिवाजों के बारे में बताया वहीं राजनीतिक परम्पराओं के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बहियें, पत्र, पट्टे आदि दस्तावेज राजस्थानी भाषा को जानने की दृष्टि से अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हैं। यदि शोधार्थी इनमें उल्लिखित भाषा एवं लिपि को समझ लें तो पाण्डुलिपि पठन का काम उनके लिए आसान हो जाएगा। अत: वर्तमान में यह दस्तावेज नव इतिहास लेखन की दृष्टि से उपयोगी हैं। यदि शोधार्थी पुरालेखीय सामग्री का पठन करने लगेंगे तो इतिहास के कई नवीन तथ्य सामने आएंगे। हिन्दुस्थान समाचार/सतीश

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