
नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। देश में हो रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र होने वाले मिजोरम विधानसभा चुनाव 2023 पे सबकी नज़रे टिकी हुई हैं। इस विधानसभा चुनाव में जहां एक तरफ राष्ट्रीय दलों (बीजेपी, कांग्रेस) ने अपने अपने चुनावी मुद्दों से क्षेत्रीय दलों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं, तो वहीं क्षेत्रीय दलों ने भी अपने मुद्दों से राष्ट्रीय दलों की राजनीति में हलचल पैदा कर रखी है। सभी दल जनता को लुभाने के लिए हर प्रकार के जतन कर रहे हैं। कोई दल किसी से कम नहीं हैं। क्षेत्रीय दलों ने अपने मुद्दों से राष्ट्रीय दलों के मुद्दों को फीका कर दिया है। क्षेत्रीय दल पूरी तरह से राष्ट्रीय दलों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। मिजोरम विधानसभा के चुनाव के बाद आने वाले परिणामो से तय होगा कि कौन किस पर भारी रहा है। हम यहां आपको मिजोरम राज्य की स्थापना से लेकर के उसके राजनीतिक इतिहास से रूबरू कराने की कोशिश कर रहे हैं।
मिजोरम राज्य की स्थापना
मिजोरम 21 जनवरी 1972 को पहले केंद्र शासित राज्य बना और फिर 1976 में मिज़ो नेशनल फ्रंट के साथ हुई संधि के मुताबिक 20 फरवरी 1987 को मिजोरम को भारत के 23 वें राज्य का दर्ज़ा प्राप्त हो गया। मिजोरम में लोकसभा की एक सीट है और विधान सभा की 40 सीटें हैं। विधानसभा की इन्ही 40 सीटों के लिए राजनीतिक दलों में काफी प्रतिस्पर्धा चल रही है। हर राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।
राजनीतिक दलों का समीकरण
बीजेपी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने पूरी रणनीति से विधानसभा चुनाव में अपने अपने प्रत्यासी उतारे हैं। क्षेत्रीय दलों में मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM), ज़ोरम नेशनलिस्ट पार्टी (ZNP), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी (पीसीपी) आदि क्षेत्रीय दल शामिल हैं। वर्ष 2018 के मिजोरम विधानसभा चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट ने 40 में से 26 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। जोरम पीपुल्स मूवमेंट 8 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी। मिजो नेशनल फ्रंट फिर से सत्ता में आने के लिए चुनाव की तैयारी में लगी हुई है । 7 नवंबर को होने वाले चुनाव के परिणाम के बाद ही उनके भविष्य का पता चल पायेगा। वहीं कांग्रेस 2018 में मिजोरम विधानसभा चुनाव में मिली हार के कारणों में कार्य कर, सत्ता में आने की पूरी तैयारी कर रही है। बीजेपी ने भी मिजोरम विधानसभा चुनाव में जीत के लिए हर संभव प्रयास कर, अपने मुद्दे जनता के सम्मुख रखे हैं।
मिजोरम के 2018 विधानसभा का परिणाम
मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ)-26
जोरम पीपुल्स मूवमेंट - 8
कांग्रेस-5
बीजेपी -1
कुल 174 उम्मीदवार मैदान में
मिजोरम विधानसभा चुनाव 2023 के लिए कुल 174 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 27 निर्दलीय प्रत्याशी हैं, बाकी प्रत्यासी अन्य पांच राजनीतिक दलों के उम्मीदवार हैं। कुल 8,56,868 मतदाता इस चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
मणिपुर हिंसा भी कई प्रत्याशियों के वोटो के समीकरण बिगाड़ सकती है
2018 विधानसभा में बीजेपी 39 सीटों में चुनाव लड़ी थी और केवल एक ही सीट पर उन्हें संतुष्ट होना पड़ा था। इस बार बीजेपी ने 23 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्यासी उतारे हैं। इस बार के चुनाव में मणिपुर हिंसा भी कई प्रत्याशियों के वोटो के समीकरण बिगाड़ सकती है। भाजपा की नजर राज्य के दक्षिणी हिस्से में रहने वाले भाषाई अल्पसंख्यकों जैसे चकमा, ब्रू, मारा और लाई समुदाय के लोगों के वोटों पर है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लालसावता ने मिजोरम में अगली सरकार बनाने का दावा किया
वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लालसावता ने मिजोरम में अगली सरकार बनाने का दावा किया है। उनके दावों की सच्चाई का पता चुनाव के परिणाम आने पर ही चलेगा। लालसावता ने कहा है कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो 1 लाख लोगों के लिए नौकरियां पैदा करेगी। कांग्रेस ने प्रत्येक परिवार को 15 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करने का भी वादा किया है। सभी दलों ने जनता को लुभाने के लिए अपने अपने ठोस मुद्दे रखे हैं। 7 नवंबर को सभी प्रत्यासियो के भाग्य जनता के मताधिकार द्वारा तय हो जायेंगे, जिसके परिणाम 3 दिसंबर को आ जायेंगे।
सुरक्षा के इंतज़ाम पूरे
मिजोरम में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की करीब 50 कंपनियों को तैनात किया है। चुनाव आयोग ने राज्य में 30 मतदान केंद्रों को संवेदनशील मतदान केंद्रों के रूप में पहचान किया है। मतदान को सफलतापूर्वक कराने के लिए सारे सुरक्षा के इंतज़ाम पूरे हो चुके हैं।
मिजोरम में मुख्यमंत्री के तीन भावी दावेदारो की चर्चा जोरो पर है
मौजूदा सीएम जोरमथांगा एक उग्रवादी नेता थे। वे हथियार को छोड़कर राजनीति में शामिल हुए थे। उनकी पार्टी का नाम मिजो नेशनल फ्रंट है। वह इस पार्टी से मुख्यमंत्री के भावी दावेदार है। राजीव गाँधी द्वारा 1987 में जोरमथांगा के गुरु लालडेंगा से शांति समझौता में हस्ताक्षर करवाए थे, जिसके बाद जोरमथांगा हथियार छोड़कर राजनीती में प्रवेश हुए थे। वर्ष 1990 में गुरु लालडेंगा की मौत के बाद, वह एमएनएफ के अध्यक्ष बने, उनका उग्रवादी संगठन हथियार छोड़, एक राजनीतिक दल में बदल गया था. वह छह बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए और तीन बार (1998-2008 और 2018-2023) मुख्यमंत्री रहे। वह अपने निर्वाचन क्षेत्र आइजोल पूर्व-I से रिकॉर्ड सातवीं बार फिर से चुनाव लड़ रहे हैं.
लालसावता मिजोरम के सबसे लम्बे समय तक मुख्यामंत्री रहने वाले कांग्रेस के नेता हैं। वह 2018 में दो निर्वाचन क्षेत्रों से हार गए थे। वे थनहवला के तहत तीन बार के विधायक रह चुके हैं। लालसावता राज्य कांग्रेस के उपाध्यक्ष और थान्हावला की सरकार में वित्त मंत्री भी रहे हैं। लालसावता आइजोल पश्चिम-III निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। लालसावता अपनी साफ छवि के लिए जनता के बीच काफी लोकप्रिय हैं। कांग्रेस ने मिजोरम में चल रही वित्तीय समस्या के हल के लिए उन्हें योग्य नेता बताया है।
लालदुहोमा नई पार्टी, जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के नेता हैं। यह अपने विधानसभा क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है। लालदुहोमा एक पूर्व आईपीएस अधिकारी है। उन्होंने इंदिरा गांधी की सुरक्षा में भी कार्य किया है। लालडेंगा से शांतिवार्ता में हस्ताक्षर करवाने में इन्होने अपनी जिम्मेदारी बेहतरीन तरीके से निभाई थी। कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए इन्होने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। जोरम पीपुल्स मूवमेंट ने इन्हे मिजोरम से मुख्यमंत्री के लिए भावी प्रत्यासी बनाया है।
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