The combination of perseverance and intelligence is the Bhima-Koregaon conflict - senior journalist Bhalerao
The combination of perseverance and intelligence is the Bhima-Koregaon conflict - senior journalist Bhalerao

दृढ़ता और बुद्धि का मेल ही भीमा-कोरेगांव संघर्ष है - वरिष्ठ पत्रकार भालेराव

मुंबई,02जनवरी ( हि स ) ।अगर दृढ़ता और बुद्धि को मिला दिया जाए तो दुनिया की कोई भी लड़ाई जीतना मुश्किल नहीं है, भीमा-कोरेगांव की लड़ाई भी इसी माध्यम से लड़ी गई थी। इसलिए, तत्कालीन महार समुदाय के लिए दासता और अस्पृश्यता की बेड़ियों को तोड़ना संभव हो सका । यह विचार वरिष्ठ पत्रकार और कोंकण सकाल के कार्यकारी संपादक संजय भालेराव ने व्यक्त किए हैं। तुरईपाड़ा में रमाई अम्बेडकर नगर के स्थानीय लोगों ने भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस के अवसर पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था। वह इस बार मुख्य वक्ता के रूप में भालेराव संबोधित कर रहे थे । इस मौके पर आयोजन की अध्यक्षता गतई चर्मकार समाज कामगार संगठन के अध्यक्ष राजभाऊ चव्हाण द्वारा की गई । कार्यक्रम में पत्रकार संजय भालेराव ने कहा कि भीमा कोरेगांव की लड़ाई सत्ता और धन की लड़ाई नहीं थी बल्कि आत्म-सम्मान की लड़ाई थी। तत्कालीन महार पाटला द्वारा छत्रपति संभाजी राजे के शव का अंतिम संस्कार किया गया। छत्रपति शिवाजी-संभाजी महाराज द्वारा छुआछूत के कारण उनकी छूत वापस पेशवा में आ गई। अंकम्बरे को अपनी गर्दन के चारों ओर झाड़ू और एक बर्तन मिला। इन प्रतिबंधों को तोड़ने के लिए केवल मराठा ही नहीं बल्कि 28 ,हजार पेशवा सैनिक 500 महार सैनिकों द्वारा मारे गए थे। शिवशाही में, तत्कालीन महारों और मराठों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे। यही कारण है कि जीजाऊ का महल पचरा के महारवाड़ा में शिवराय द्वारा बनाया गया था। भीमा कोरेगांव की लड़ाई शिवालय के प्रति वफादार समाज की अस्पृश्यता का बदला लेने के लिए लड़ी गई थी। भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर ने हमें यह इतिहास बताया। लेकिन, हमें ध्यान रखना चाहिए कि बाबासाहेब ने हमें अपने हाथ में महज एक पत्थर ही नहीं दिया बल्कि एक कलम और कागज दिया। इसलिए हमें अपना हक पाने के लिए कागज पर लड़ाई लड़नी होगी, इसके लिए उन्होंने भी चुनौती दी। राजभाऊ चव्हाण ने कहा कि भीमा कोरेगांव की लड़ाई हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। यदि यह जंग नहीं हुआ होती , तो लोग यह नहीं समझ पाते कि हम सेनानी हैं। इस लड़ाई ने सामाजिक सुधार की शुरुआत को चिह्नित किया। सिदक महार को हम सेनापति के रूप में जानते हैं। लेकिन, यह कहना अनुचित नहीं होगा कि वह सामान्य से अधिक सामाजिक सुधार के प्रस्तावक थे। आज हमारे साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है क्योंकि हम संगठित नहीं हैं। सिदंक ने 500 लोगों को इकट्ठा किया। यदि आप 100 लोगों को एक साथ लाते हैं, तो कोई भी आपके साथ अन्याय करने की हिम्मत नहीं करेगा। इसलिए बाबासाहेब द्वारा दिए गए इस मूल मंत्र को जानें, एकजुट करें, संघर्ष करें। कार्यक्रम में इस अवसर पर किसान पायकराव, अरुण हटकर, राजू चौरे, मिलिंद पाइकराव, कैलास बर्डे, रवि डोंगरे, प्रवीण बर्डे, सुधाकर खंडारे, रवि खंदारे, सुभाष सोनवणे, अरुण राउत, गौतम गायकवाड़, प्रकाश बागुल, संदीप शेल्के, पूनमिमा, पूनमिमा बडेराव भी उपस्थित थे। हिन्दुस्थान समाचार/रविन्द्र-hindusthansamachar.in

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