Maratha Reservation: आरक्षण की मांग पर फिर मचा संग्राम, मनोज जारांगे ने 'रास्ता रोको' आंदोलन का किया ऐलान

Mumbai News: मराठा आरक्षण को मंगलवार को विधानसभा में पूर्ण समर्णन मिला। निर्विरोध मराठा आरक्षण बिल विधानसभा में पास हो गया। इसके बावजूद मनोज जारांगे ने 'रास्ता रोको' आंदोलन का ऐलान किया है।
Manoj Jarange
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। महाराष्ट्र सरकार द्वारा मंगलवार को मराठों को आरक्षण प्रदान करने वाला बिल पारित करने के बावजूद मनोज जारांगे ने अपनी भूख हड़ताल खत्म करने से इनकार कर दिया। मनोज जारांगे ने आज 3 मार्च से 'रास्ता रोको' आंदोलन का ऐलान किया है। उन्होंने कहा- सरकार ने आधी-अधूरी मांगे पूरी की।

3 मार्च को 'रास्ता रोको' आंदोलन होगा शुरु

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, मराठा आरक्षण के नायक मनोज जारांगे ने आज महाराष्ट्र में 'सेज सोयरे' (परिवार के पेड़ से संबंधित) अध्यादेश अधिसूचना को लागू करने की मांग को लेकर 3 मार्च को पूरे राज्य में 'रास्ता रोको' की घोषणा की। महाराष्ट्र सरकार द्वारा मंगलवार को मराठा समाज को आरक्षण प्रदान करने वाला बिल पारित करने के बावजूद पाटिल ने अपनी भूख हड़ताल खत्म करने से इनकार कर दिया। जबकि पाटिल ने इस कदम का स्वागत किया, उन्होंने इस बात पर संदेह व्यक्त किया कि क्या ये बिल कानूनी जांच से गुजर पाएगा या नहीं?

जारांगे पाटिल क्यों जारी रख रहे हैं भूख हड़ताल?

पाटिल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी में आरक्षण पर जोर दिया है क्योंकि इस तरह का बिल कानूनी जांच पास नहीं कर सका और 2021 में रद्द कर दिया गया था। पाटिल की मांग है कि सभी कुनबियों को महाराष्ट्र में OBC के तहत एक जाति माना जाए और इसके अनुसार आरक्षण दिया जाए। मनोज जारांगे का मांग है कि 'किसी के रक्त संबंधियों को भी कुनबी पंजीकरण की अनुमति दी जाए।'

'सेज-सोयारे' पर मसौदा अधिसूचना मराठों के रिश्तेदारों को उनके कुनबी पूर्वजों को साबित करने वाले दस्तावेजों के साथ-साथ एक ही वंश के लोगों और विवाह द्वारा रिश्तेदारों को कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने की सुविधा प्रदान करती है, भले ही वे एक ही जाति के हों। कुनबी प्रमाणपत्र OBC कोटा में मराठों को शामिल करना सुनिश्चित करते हैं, यही कारण है कि मराठा अपने कोटे पर एक बड़े अतिक्रमण की आशंका से हथियार उठा रहे हैं।

एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा पेश हुआ बिल

इस बीच महाराष्ट्र के दोनों सदनों ने मराठा आरक्षण बिल पारित कर दिया, जिससे राज्य में मराठों को 10% अतिरिक्त कोटा दिया गया, जो वर्तमान 50% की सीमा को तोड़ देगा। यह बिल तत्कालीन एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा पेश किए गए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 के समान आता है। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में निर्धारित 50% की सीमा का हवाला देते हुए 2018 अधिनियम को रद्द कर दिया।

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