सुखी वैवाहिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं उज्जैन के चिंतामन गणेश
सुखी वैवाहिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं उज्जैन के चिंतामन गणेश

सुखी वैवाहिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं उज्जैन के चिंतामन गणेश

उज्जैन, 09 सितम्बर (हि.स.)। कहते हैं कि जोडिय़ां स्वर्ग में बना करती है, लेकिन धरती पर जोड़ी बनाने का काम कुंडली मिलाने वाले पंडित रते हैं। कुंडली में मंगल दोष है, शनि है या फिर गुण मिलान नहीं हो रहा है, नाड़ी दोष, भृकूट दोष, खड़ा अष्टक, वर्ग बेर आदि बहुत सारे गुण दोष का मिलान कर अंततोगत्वा कुंडली मिलती है। इसके बाद भी यदि लडक़े-लडक़ी या उनके माता-पिता के बीच में व्यावहारिक मिलन नहीं होता तो विवाह टल जाता है। आज आधुनिक समय में भी कई पढ़े-लिखे युवक-युवतियां अच्छे पदों और व्यवसाय में होने के बावजूद 35 साल की उम्र में भी विवाह नहीं होने के कारण परेशान हैं, उनके माता-पिता भी कुंडली मिलान कर थक जाते हैं। यदि इन सब चीजों से मुक्ति चाहिए तो उज्जैन के चिंतामन गणेश मंदिर आइए। यहां गणेश जी की आज्ञा से बिना कुंडली मिलाए पाती के लगन लिखे जाते हैं। विवाह की ढेर सारी तिथियों में से कोई अपने अनुकूल लग्न लिखवा लीजिए और विवाह की रस्में वैदिक रीति से पूरा करिए। फिर चिंतामन गणेश मंदिर आकर खुशी खुशी गणेश जी का आशीर्वाद लीजिए और अपनी वैवाहिक जीवन यात्रा प्रारम्भ करिए। चिंतामन गणेश मंदिर की खासियत है कि यहां पर विघ्नहर्ता गणेश हर तरह के विघ्नों को हर लेते हैं। मंदिर परिसर में निवास करने वाला पंडित परिवार बरसों से पाती के लगन लिखकर विवाह तय कर रहे हैं। उज्जैन एक धार्मिक शहर है। यहां पर अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जो जग प्रसिद्ध हैं। विश्व देवाधिदेव भगवान महाकाल के मंदिर में आने वाले हजारों धार्मिक पर्यटक भगवान महाकालेश्वर, कालभैरव, सिद्धवट, भर्तृहरि की गुफाएं, मंगलनाथ, महर्षि सांदीपनी का आश्रम (जहां भगवान कृष्ण एवं बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी) के दर्शन लाभ लेकर कृतार्थ होते हैं। तीर्थ नगरी उज्जयिनी में आने वाले धार्मिक पर्यटक यह बात नहीं जानते हैं कि चिंतामन गणेश मंदिर में पाती के लगन लिखने का काम भी बरसों से हो रहा है। लग्न लिखने वाले पुजारी परिवार के 61 वर्षीय सदस्य कैलाश चंद शर्मा बताते हैं कि प्रथम परिणय पाती भगवान कृष्ण के रुक्मणी विवाह के समय रुकमणी द्वारा लिखी गई थी। रुक्मणी का विवाह शिशुपाल से तय हो गया था, किंतु उन्होंने पाती लिखकर कृष्ण भगवान को विवाह के लिए आमंत्रित किया था। उस समय कोई कुंडली मिलान नहीं किया गया, पाती की वही परंपरा आज भी जारी है। पंडित कैलाश चंद्र बताते हैं कि भगवान चिंतामन गणेश चिंता हरण है। यहां पर आकर वर एवं वधू पक्ष के लोग पूर्व से तय संबंध की अंतिम परिणति के रूप में विवाह के लिए लगन लिखवाते हैं, जिन्हें पाती के लग्न कहा जाता है। यह गणपति आस्था ही है कि जितने भी विवाह पाती से होते हैं, लगभग सभी सफल होते हैं। कोई भी व्यक्ति लौटकर नहीं आता है कि उनका पारिवारिक विवाद चल रहा है या तलाक का वाद चल रहा है। जबकि कुंडली मिलान और अन्य प्रक्रिया से होने वाले विवाहों में कई बार अस्थिरता पाई जाती है। पंडित कैलाश शर्मा बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार जब कन्या वयस्क हो जाए तो उसके विवाह के लिए किसी भी तरह के मिलान करने की आवश्यकता नहीं होती। उनका कहना है कि यही नहीं जब देव सो जाते हैं तो भी लोग चिंतामन गणेश मंदिर में आकर विवाह करते हैं, किसी तरह की कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है। पंडितजी बताते हैं कि वे वर्ष में विवाह के लिए 500 से 700 पाती के लग्न लिखते हैं। देखा गया है कि पाती के लगन लिखवाने आने वाले लोगों में मालवा अंचल के ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले बड़ी संख्या में होते हैं। यह लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं, न ही उच्च कुलीन वर्ग के, आस्था के वशीभूत गणेश जी की शरण में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है और अद्भुत गणेश जी के प्रति आस्था ही है कि यहां से लिखवाए पाती के लगन से लोगों के वैवाहिक जीवन की बाती हमेशा जलती रहती है। यहां पूरे वर्ष लगन पाती लिखी जाती है। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/राजू-hindusthansamachar.in

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