वीरांगना रानी दुर्गावती की पराक्रम गाथा को याद कर दीनदयाल शोध संस्थान ने मनाई जयंती
वीरांगना रानी दुर्गावती की पराक्रम गाथा को याद कर दीनदयाल शोध संस्थान ने मनाई जयंती

वीरांगना रानी दुर्गावती की पराक्रम गाथा को याद कर दीनदयाल शोध संस्थान ने मनाई जयंती

चित्रकूट, 05 अक्टूबर (हि.स.)। वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती पर दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट ने अपने सभी प्रकल्पों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों तथा महिलाओं के बीच उन्हें नमन करते हुए उनकी जयंती पर उनके शौर्य पराक्रम की गाथा को सबके समक्ष रखा। दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव डा. अशोक पांडेय ने कहा कि उनके शौर्य, पराक्रम की गाथाएं बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देंगी, ‘दुर्गा का रूप लिए साहस, शौर्य की वह मूरत थी। मुगलों को पराभूत कराती देवी की वह सूरत थी। दुर्गावती के वीरतापूर्ण चरित्र को भारतीय इतिहास से इसलिए काटकर रखा गया, क्योंकि उन्होंने मुस्लिम शासकों के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया था और उनको अनेक बार पराजित किया था। अकबर के कडा मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाया था। अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था। अकबर ने एक विधवा पर जुल्म किया, लेकिन धन्य है रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 1564 में बलिदान दे दिया। वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। इस मौके पर संघ के जिला कार्यवाह लक्ष्मीकांत एवं अन्य वक्ताओं ने वीरांगना रानी दुर्गावती की जीवनी पर प्रकाश डाला और बताया कि रानी दुर्गावती का जन्म आज ही के दिन 5 अक्टूबर 1524 को हुआ था। रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लडक़ी थी। महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी, लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके अपनी पुत्रवधु बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अत: रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने कई मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। हिन्दुस्थान समाचार/राजू-hindusthansamachar.in

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