कोदो-कुटकी की ब्रांडिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, आर्थिक मदद शून्य
कोदो-कुटकी की ब्रांडिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, आर्थिक मदद शून्य

कोदो-कुटकी की ब्रांडिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, आर्थिक मदद शून्य

अनूपपुर, 25 जुलाई (हि.स.)। कोदो-कुटकी आदिवासी क्षेत्रों में उपजाई जाने वाली विशेष फसल है। जिले में कोदो कुटकी की खेती अब धीरे-धीरे जोर पकडऩे लगी है। पांच वर्ष पूर्व जिले में जहां 8 हजार हेक्टेयर लक्ष्य की भूमि पर पैदावार हुआ करता था, आज 2020 में यह रकबा 15.20 हजार हेक्टेयर तक के आंकड़ों तक पहुंच गया है। वर्तमान में जिले में 8 हजार से अधिक किसान कोदो-कुटकी की खेती से जुड़े हैं। लेकिन प्रति हेक्टेयर 3-4 क्विंटल उपज होने के बाद भी यह फसल शासकीय समर्थन मूल्य उपार्जन की अन्य श्रेणियों में शामिल नहीं हो सकी है। किसानों को खेती सहित उसके बाजार के लिए कोई सहायता नहीं दी गई है। जिसके कारण यहां के किसान कोदो-कुटकी की खरीद और बिक्री भी स्थानीय बाजार में कर रहे हैं। वर्ष 2019 में जिला प्रशासन, कृषि विभाग, आत्मा परियोजना और एलबीआई इंगाराजविवि अमरकंटक द्वारा बहपुरी में कोदो प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किया गया है। जिसका संचालन लक्ष्मी और सतगुरू जैसे महिला स्वसहायता समूह द्वारा किया जा रहा है। कोदो कुटकी के उत्पादन में प्रोत्साहन के लिए अनूपपुर जिला मुख्यालय में बिक्री के लिए दुकान खोली गई है। इसके अलावा 2019 में ही अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने विश्व व्यापार मेले में मृगनयनी एम्बोलिका के द्वारा भेजा गया था। यहां तक जिले के विधायकों ने विधानसभा भवन में वितरण, और अन्य कार्यक्रमों के माध्यमों के द्वारा इनका ब्रांडिंग करने का प्रयास किया है। नोनघटी गांव के किसान महेश प्रसाद बताते हैं कि इस वर्ष लगभग 3 एकड़ में कोदो की बुवाई की है। लेकिन स्थानीय बाजार व मूल्य के अभाव में इसे खुद के उपयोग के साथ व्यापारियों को ही बेच देते हैं। शासकीय स्तर पर खेती के लिए भी कोई सहायता नहीं दी जाती है। प्रोससिंग यूनिट दूर है जिसमें खर्च अधिक और लाभ कम मिल पाता है। बहपुरी गांव के किसान सुरेन्द्र बताते हैं कि इस वर्ष 5 एकड़ में खेती किया है। पूर्व में स्थानीय व्यापारी बीज 20-25 रूपए प्रति किलो के अनुसार उपलब्ध कराते थे, लेकिन इसी तैयार फसल को वे 15-17 रूपए की हिसाब से खरीदी करते थे। लेकिन पिछले साल से वह अपनी फसल को प्रोसेसिंग यूनिट में भेज रहे है, इस वर्ष 100 रूपए किलो की दर के कारण इसका कुछ लाभ दिखने लगा है। उपसंचालक कृषि अनूपपुर एनडी गुप्ता के अनुसार कोदो स्वास्थ्यबर्धक और परम्परागत खाद्य श्रेणी में शामिल हैं। प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के साथ स्थानीय स्तर पर आउटलेट की दुकान की व्यवस्था बनाई जा रही है। प्रशासन द्वारा ब्रांडिंग, पैकजिंग, और प्रोसेसिंग पर ध्यान दिया जा रहा है। यह सही है कि अबतक समर्थित मूल्य और बेहतर बाजार का अबतक अभाव होने के कारण इसमें किसानों ने ज्यादा रूचि नहीं दिखाया है। हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला-hindusthansamachar.in

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