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महिला दिवस विशेष: आदिवासी अनपढ़ महिला ने समझा पढ़ाई का महत्व

बेटियों को पढ़ाने के लिए मां ने खुद को मजदूरी में झौंका खरगौन, 07 मार्च (हि.स.)। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आजाद ने कहा कि था कि "जब राह में अंधेरा ही अंधेरा हो और दूर तक रास्ता नहीं दिखाई दे, तो थोड़ा आगे चलकर देखना चाहिए। हो सकता है आगे उजला सवेरा मिल जाएं। ये विचार जिले में भगवानपुरा के बहादरपुरा की सारिका शांतिलाल शायद ही जानती हो या उसे पता हो। क्योंकि एक तो वो अपनढ़ है और दूसरा जिंदगी ने ऐसा मौका नहीं दिया कि वो कोई कहानी सुने या टीवी देखकर ज्ञानार्जन करें। अनजाने में ही सही, अपनी सूझबूझ के साथ सारिका अपने हौसले के सहारे चलकर अंधेरों से कही दूर निकलकर उजले उजाले तक तो पहुंच गई है, लेकिन आज भी उसे साफ और स्वच्छ उजाले की तलाश है। आज से 15 वर्ष पूर्व एक सडक़ दूर्घटना में उनके पति ने स्पॉट पर ही दम तोड़ दिया था। बस इसी दिन से सारिका के जीवन में अंधेरे ने अपना बसेरा कर लिया था। शांतिलाल अपने पीछे बूढ़े मां-बाप और एक 6 माह की शिवानी और 18 माह की नैना को सारिका के सुपुर्द कर गए थे। अब परिवार में केवल 4 सदस्य जिनकों पालने की जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर आ गई और पैतृक संपत्ति के नाम पर बस एक झोपड़ी ही है कोई खेत भी नहीं। ऐसे हालात में आदिवासी महिला सारिका ने हिम्मत नहीं मानी और मजदूरी को अपना हथियार बनाया। 150 से 200 रुपये मिलती है मजदूरी सारिका ने बताया कि वह आज भी मजदूरी करती है उसे कभी 150 तो कभी 200 रुपये मजदूरी से मिलते है। सप्ताह में 1200 रुपये की कमाई के 4 हिस्से कर घर गृहस्थी का मैनेतमेंट करती है। एक हिस्सा बूढ़े सांस-ससुर का, दूसरा हिस्सा बड़ी बेटी की पढ़़ाई के लिए, तीसरा हिस्सा छोटी बेटी के लिए और चौथा हिस्सा अन्य खर्चों व आपात समय में काम लाती है। इसी हिस्से से सारिका बड़े मैनेजमेंट के साथ सभी सदस्यों की देखभाल कर रही है। हालांकि कभी-कभी बड़ी बेटी नैना भी अपनी मां के साथ छुट्टी के दिनों में मजदूरी कर हाथ बंटाती है। बड़ी बेटी एग्रीकल्चर विषय लेकर 12वीं में है और वो शासकीय सेवा में जाना चाहती हैं और छोटी बेटी डॉक्टर बनना चाहती है। मां सारिका का भी यही सपना है कि वो उसके सपने पूरे हो। महिला दिवस पर सारिका के जीवन में छाएं अंधेंरे को दूर करने के लिए शुभकामनाएं। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश / उमेद

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