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धूए से परेशान ग्रामीण, हादसे का भी अंदेशा

गुना, 26 अप्रैल (हि.स.) । गेहूं की कटाई का लगभग काम पूरा हो चुका है। अब किसान खेतों में खड़ी नरवाई में आग लगा रहे हैं। नरवाई में आग लगाने से जहां एक तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाल लोग धुएं से परेशान हैं। वहीं हादसा होने की आशंका बनी हुई है। हर साल कृषि विभाग, जिला प्रशासन की समझाइश के बावजूद भी कुछ किसान नरवाई में आग लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल प्रशासनिक अमला कोरोना कर्फ्यू की व्यवस्थाओं में जुटा है। इसी बीच गांवों में नरवाई जलाने के नाम पर न केवल पर्यावरण से खिलवाड़ किया जा रहा है बल्कि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। म्याना, बमोरी, पगारा, आरोन, धरनावदा सहित अन्य क्षेत्रों में नरवाई जलाने के मामले सामने आए। इन्हें जलाने के पीछे किसानों के अपने तर्क भी हैं। उनका कहना है कि न जलाएं तो क्या करें? आखिर हमें अगली फसल की बोवनी भी करनी है। नरवाई में आग लगने के बाद किसान अज्ञात कारणों से नरवाई में आग लगने की बात कहते हैं, जबकि किसान खुद खेतों में आग लगा रहे हैं। यदि इसी तरीके से नरवाई में आग लगती रही तो आगामी दिनों में नगर के पशु पालकों व गोशालाओं में भूसे की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। क्षेत्र में आए दिन आग लगने से दमकलें यहां से वहां सायरन बजाती हुई भागती नजर आती हैं।किसान शार्ट कट अपना रहे राज्य सरकार व कृषि विभाग के अधिकारियों की तमाम समझाइशों के बाद भी किसान इसे नजरअंदाज कर बड़ी नादानी कर रहे हैं। इस वजह से प्रकृति, पर्यावरण और जान-माल की क्षति के रूप में समाज को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। किसानों की इस गलत आदत की वजह से वायुमंडल में धुंआ फैल जाता है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक फसलों के गिरते उत्पादन और किसानों को हो रहे घाटे के पीछे नरवाई का जलाना एक मुख्य वजह है। फसल कटने के बाद खेतों को साफ करने के लिए अनेक किसान शार्टकट का तरीका अपनाते हैं और खेतों में कटाई के बाद बचे डंठलों जिन्हे नरवाई कहा जाता है। इसे नष्ट करने के लिए आग लगा देते हैं। इससे जहां प्रदूषण फैलता है, खेतों के उपयोगी जीवाणु एवं पोषक तत्व नष्ट होते हैं। वहीं हवा चलने पर जलने के अवशेष कालिख के रूप में ऊपर तक उड़ते हैं जो दूर दूर तक जाकर लोगों के घरों पर गिरते हैं। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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