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उमरिया : एक जिला एक उत्पाद से चंदिया के माटी व्यवसाय को मिली अलग पहचान

उमरिया, 11 मार्च (हि.स.)। मिट्टी तेरे कई रंग, जिसने जैसा ढाला तूने धारण की वैसी ही काया। प्राणी जगत के जन्म से लेकर मृत्यु तक मिट्टी का महत्व है। आजीविका संचालन में भी मिट्टी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जिला प्रशासन ने भी "एक जिला उत्पाद" से जिले के चंदिया नगर के माटी व्यवसाय का चयन कर कारीगरों की तस्वीर बदल दी। इन कारीगरों को मिट्टी के उन सामाग्रियों को बनाने का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है, जिनकी बाजार में अधिक मांग है। उल्लेखनीय है कि जिले के चंदिया नगर में कुम्हार जाति के लोग स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले से मिट्टी के बर्तन सुराही एवं घड़े बनाते रहे है। चंदिया की सुराही एवं घड़े की अपनी अलग पहचान है। विक्रय के लिए जहां भी रखे जाते है तो उनकी मांग सर्वाधिक होती है। इसका कारण चंदिया की मिट्टी को जाता है। मिट्टी हल्की रेतीली होने के कारण पकाने के बाद पोरस हो जाता है। जिससे पानी का रिसाव बना रहता है और पानी ठण्डा हो जाता है। यही वजह रही है कि चंदिया के घडे एवं सुराही को देशी फ्रिज के नाम से जाना जाता है। चंदिया में तैयार घडे एवं सुराही में चंदिया की मोहर लगाई जाती है तथा उनकी फिनसिंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। चंदिया नगर के 200 परिवार इस कार्य से जुड़े हुए है। जनवरी आते ही सभी परिवार मटके एवं सुराही के निर्माण मे जुट जाते है। मार्च महीने तक प्रत्येक परिवार 3 हजार मटके एवं सुराही तैयार कर लेते है। एक सुराही की कीमत 60 से 70 रुपये होती है। इस प्रकार चंदिया नगर के कुम्हार जाति के लोग वर्ष में 2 से 2.5 करोड़ रुपये का व्यवसाय कर लेते है। चंदिया के बने सुराही एवं मटके कटनी, जबलपुर, रीवा, बिलासपुर, रायपुर, मनेन्द्रगढ़, अनूपपुर, धनपुरी, शहडोल, उमरिया मे काफी लोकप्रिय है। रेल्वे स्टेशनों में भी सुराही एवं मटके विक्रय के लिए उपलब्ध रहते हैं। चंदिया के मिट्टी व्यवसाय से जुड़े कारीगरों को वर्ष में केवल तीन माह का ही काम मिल पाता है। लेकिन जिला प्रशासन द्वारा स्टार्टअप इंडिया के तहत एक जिला एक उत्पाद के रूप में चंदिया के माटी व्यवसाय का चयन कर कौशल उन्नयन एवं मूल्य संवर्धन की दिशा में पहल की गई है। प्रदेश के माटीकला बोर्ड के माध्यम से मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षक जितेन्द्र कुमार मालवीय सोहागपुर जिला होशंगाबाद के माध्यम से टेराकोटा शिल्प का 45 दिवसीय प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है। इन कारीगरों को वास्तु शास्त्र से जुडे कछुआ, चाय की केटली, ब्रिनचेज, लेटर बाक्स, मुखौटे, गृह सज्जा सामग्री, जिनकी बाजार में मांग है का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षक मालवीय ने गुरुवार को जानकारी देते हुए बताया कि हमने महाराष्ट्र भद्रावती से टेराकोटा शिल्प तैयार करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। मैं स्वयं सोहागपुर होशंगाबाद में टेराकोटा शिल्क की दुकान संचालित करता हूं। वर्तमान में माटीकला बोर्ड के माध्यम से मास्टर ट्रेनर के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रानिक चाक के माध्यम से इन 35 कारीगरों को विभिन्न वस्तुएं तैयार करने का 45 दिवसीय प्रशिक्षण 15 फरवरी से प्रारंभ किया गया है जो 31 मार्च तक चलेगा। उन्होंने बताया कि घड़ा एवं सुराही तैयार करने के लिए मिशन युक्त मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी में गाय का गोबर, घोडे की लीद या बुरादा मिलाने से मिशन युक्त हो जाती है। ऐसा करनें से बर्तन के पकने के बाद उसमे पोरस हो जाता है तथा पानी ठण्डा रहता हैं। हिन्दुस्थान समाचार / उमेद

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