रणछोड़ धाम में पचमड़ी की तरह आभाष कराता प्रकृति सौंदर्य
रणछोड़ धाम में पचमड़ी की तरह आभाष कराता प्रकृति सौंदर्य

रणछोड़ धाम में पचमड़ी की तरह आभाष कराता प्रकृति सौंदर्य

अशोकनगर, 26 जुलाई (हि.स.)। जिले के मुंगावली नगर से महज 30 किलोमीटर दूर जिले व प्रदेश की सीमा से लगे हुए उत्तरप्रदेश के ख्यात रणछोड़ धाम में बरसात के मौसम ने यहां की सुंदरता में चार चांद लगा दिए हैं। जिले के सीमांत गांव मदऊखेड़ी से सटे हुए इस पर्यटन स्थल में लॉकडाउन होने के बाद भी बड़ी संख्या में आगंतुक पहुंच रहे हैं। यहां आने वाले लोग प्रकृति की गोद में बसे हुए इस मनोहारी स्थल की सुंदरता से आश्चर्य चकित हुए बिना नहीं रह पाते। घने जंगलों के बीच और वेतवा नदी के किनारे बने 12वीं सदी के पाषाण मंदिर और महाभारत कालीन गुफा में प्रकृति ने सौंदर्य बिखेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यहां उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर बेतवा नदी के दाएं तट पर भगवान श्री कृष्ण का प्राचीनतम मंदिर स्थित है, जो रणछोड़ धाम के नाम से जाना जाता है। जनश्रुति के अनुसार यह स्थल राक्षस कालयवन और श्री कृष्ण की लड़ाई से जुड़ा हुआ है। प्राचीन मंदिर पुरातत्व विभाग के लखनऊ मंडल द्वारा संरक्षित है, जिसका वर्तमान स्वरूप 12 वीं शताब्दी का बताया गया है। इस मंदिर में मंडप अर्धमंडप गर्भग्रह विद्यमान है तथा समतल छत्त का प्रावधान है। मंदिर के गर्भ गृह के मध्य में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र युक्त चतुर्दशी विष्णु (रणछोड़) की गरुणारुण प्रतिमा स्थापित है। गर्भ ग्रह में प्रतिष्ठित दूसरी उमामहेश की प्रतिमा भी अत्यंत कलापूर्ण है।हिन्दू धर्म मेँ खंडित मूर्ति की पूजा वर्जित है ,मगर रणछोर धाम इसका प्रत्यक्ष अपवाद है, जहाँ आज भी भगवान विष्णु की प्रतिमा में गर्दन पर उसके काटे जाने के निशान हैं। मुख्य द्वार पर भी सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर के पूर्वोत्तर कर्ण पर स्थित लघु देवालय से यह आभास होता है कि यह पंचायतन मंदिर था। मध्यकालीन वास्तुकला की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण मंदिर है। रणछोड़ धाम में मकर सक्रांति के दिन विशाल मेला का आयोजन किया जाता है इस दिन बेतवा नदी में हजारों लोग आस्था की डुबकी लगाने दूर दूर से आते हैं। मुचकुंद गुफा देती है पचमढ़ी सा आभाष: मंदिर से 3 किलोमीटर जंगल की तरफ मुचकुन्द गुफा स्थित है जो कि विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में प्रकृति की गोद में स्थित अत्यंत अत्यंत रमणीय स्थल है। यह गुफा त्रेतायुग से लेकर द्वापरयुग तक की मानी जाती है। एक कथा अनुसार मुचकुन्द जो श्री राम के पूर्वज थे। असुरो के खिलाफ देवों की सहायता करने के लिए उन्हें निद्रा का वरदान दिया गया थ। देवों के कार्यों में सहायता के लिए इंद्रदेव ने उन्हें मुक्ति के सिवाह कोई भी वर मांगने को कहा। उन्होंने बिन-अवरोध निद्रा मांगी, और यह भी अन्तर्गत किया गया की उनकी निद्रा भंग करने वाला तुरंत भस्म हो जायेगा 7 कालयवन, जो यवन महारथी थे, उनका संहार मुचुकुन्द की दृष्टि के प्रकोप से हुआ। दैविक आशीर्वाद के कारण, कालयवन को पराजित करना असंभव था। उसे पता चला कि सिर्फ श्री कृष्ण ही उनको पराजित कर सकते हैं। इस कारण कालयवन ने द्वारका पर आक्रमण किया। कालयवन के आशीर्वाद की वजह से उसे पराजित करना कठिन था। श्री कृष्ण ने युक्ति लगाकर रण छोड़ दिया। इस कारण उन्हें रणछोड़दास का नाम मिला। श्री कृष्ण मुचुकुन्द की गुफा में घुस गए, उन पर अपने वस्त्र डाल दिये। इस कारण कालयवन को लगा की श्री कृष्ण वहां आकर सो गए हैन। अँधेरे में बिना देखे मुचुकुन्द को ललकार कर जगाया, इसका परिणाम यह हुआ कि कालयवन भस्म हो गया7 श्री कृष्ण ने मुचुकुन्द को आशीष दिए, और मुक्ति की ओर मार्ग दर्शन कराए। पहुंच मार्ग न होने से परेशान होते हैं आगंतुक: उत्तरप्रदेश के वनांचल में बसे इन रमणीक पर्यटन स्थल पर पहुंच मार्ग आज भी एक समस्या है। पुरातत्वविद प्रशांत गोयल ने बताया कि जिले से धौर्रा की ओर जाने वाले मार्ग पर मदऊखेड़ी से अंतरराज्यीय पुल तक एक किलोमीटर, धौजरी गांव से मंदिर तक दो किलोमीटर और मंदिर से मुचकुन्द गुफा तक तीन किलोमीटर रास्ता कच्चा और पथरीला है। यहां दोपहिया वाहन ही बहुत मुश्किल से पहुंच पाते हैं। रणछोड़ धाम तक पहुंचना तो एक बार सुलभ भी है लेकिन मुचुकुन्द गुफा का मार्ग दुर्गम है। इसके चलते प्रकृति प्रेमियों को या तो पैदल ही यह सफर तय करना पड़ता है अन्यथा अधिकांश लोग थक हार कर वापिस लौट आते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/ आदित्य/ देवेन्द्र-hindusthansamachar.in

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