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समाज की गतिकी को लक्ष्मीबाई की तरह पकड़ने की जरूरतः रक्षा दुबे

शिवपुरी, 18 जून (हि.स.)। भारतीय महिलाओं में समाज की आंतरिक गतिकी को समझने की अंतर्निहित शक्ति होती है लेकिन यह शक्ति कतिपय कारणों से पिछले कुछ कालखंड में कमजोर हुई है। महारानी लक्ष्मीबाई ने इस गतिकी को समझ कर परिवार,समाज और राष्ट्र के समक्ष एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। आज समाज में महिलाओं को अपनी इस अंतर्निहित सुसुप्त चेतना को जाग्रत करने की आवश्यकता है। यह बात शुक्रवार महारानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस पर आरएसएस की मातृशक्ति द्वारा आयोजित ई संगोष्ठी में श्रीमती रक्षा दुबे सहायक जीएसटी आयुक्त भोपाल ने कही।संगोष्ठी में प्रख्यात स्तंभकार दर्शनी प्रिया ने नईदिल्ली से शिरकत की।कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला महिला बाल विकास अधिकारी देवेंद्र कुमार सुंदरियाल द्वारा की गई। मुख्यवक्ता के रूप में संगोष्ठी को संबोधित करते हुए रक्षा दुबे ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई सच्चे अर्थों में भारतीय स्वराज के विचार और कार्य रूप को सुस्थापित करने वाली महान योद्धा थी। आज की महिलाएं उनके व्यक्तित्व से प्रबंधन,आत्म कौशल,प्रशासन,तनाव प्रबंधन और उत्कर्ष के गुर सीख सकती है। क्योंकि रानी का अनुकरणीय जीवन दोहरी ,तिहरी जिम्मेदारियों के बीच निर्मित था इसलिए पारिवारिक माहौल में भी हमें उनके जीवन से प्रेरणा ले सकते है। श्रीमती चौबे ने कहा कि आज महिलाओं को स्वानुशासन,स्वावलंबन,स्वसरंक्षण,एवं स्वधर्मपरायणता के लिए रानी के जीवन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि स्वावलंबन का आशय केवल धनोपार्जन नही है बल्कि अपने हर कार्य मे आत्मनिर्भर होना है।स्व सरंक्षण को सामयिक आवश्यकता बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें यह मणिकर्णिका से सीखना चाहिये कि बिना वजह अंगुली भी नही उठे और आवश्यकता पर तलवार भी उठाने से संकोच न हो।श्रीमती चोबे ने विस्तार से रानी के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश भी डाला। स्तंभकार दर्शनी प्रिया ने कहा कि एक पुरुष सम्मत माहौल में रानी ने शौर्य,अदम्य साहस और प्रशासन की अनुकरणीय नजीर आधुनिक समाज को दी है। उन्होंने कहा कि आज महारानी लक्ष्मीबाई से प्रेरणा लेकर महिलाओं को अनावश्यक रूप से बगैर रुके,बगैर झुके अपने स्वत्व का विकास करना चाहिये।सुश्री प्रिया ने विस्तार से रानी के शौर्य और साहस पक्ष का रेखांकन किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे देवेंद्र सुंदरियाल ने कहा कि सृष्टि में ऊर्जा शास्वत और अविनाशी है इसे प्रभु के सिवाय कोई पैदा नही कर सकता है।हर व्यक्ति इस ऊर्जा से युक्त है हमें केवल इसका सकारात्मक रूपांतरण करने की आवश्यकता होती है। रानी लक्ष्मीबाई ने इस ऊर्जा को परिवार,समाज,राष्ट्र के उत्कर्ष में रूपांतरित कर हमारे लिये चिरकालिक आदर्श प्रस्तुत किया है। सुंदरियाल ने कहा कि भारत सदैव से नारी को वैशिष्ट्य स्थान पर रखता रहा है इसलिए महिलाओं के नाम के आगे देवी लगाया जाता है पुरुषों के नही। हिन्दुस्थान समाचार/ रंजीत गुप्ता

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