MP Election: निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भगवती चौरे बिगाड़ सकते हैं भाजपा प्रत्याशी डॉ.सीताशरण का गणित

Madhya Pradesh Election: होशंगाबाद विधानसभा 137 में भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भगवती प्रसाद चौरे भाजपा प्रत्याशी डॉ.सीताशरण शर्मा का गणित बिगाड़ सकते हैं। मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार।
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नर्मदापुरम, (हि.स.)। होशंगाबाद विधानसभा 137 में भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भगवती प्रसाद चौरे का आटो चुनाव चिन्ह भाजपा प्रत्याशी डॉ.सीताशरण शर्मा के चुनावचिन्ह कमल को कुचलकर उनके बड़े भाई गिरिजाशंकर शर्मा के हाथ मजबूत कर विजयी दिला सकते है, यह यहॉ के मतदाताओं के द्वारा किए गए मतदान के ऑकड़ों से सामने आती है जिसमें 5 बार जीत का सेहरा पहन चुके भाजपा प्रत्याशी डॉ सीताशरण शर्मा एवं 2 बार जीत एवं एक बार हार का स्वाद चख चुके कॉग्रेस प्रत्याशी को प्राप्त मतों के प्रतिशत से समझी जा सकती है, पर राजनैतिक गलियारें में यह त्रिकोणीय दिलचस्प मुकाबला बन गया है।

वर्ष 2008 एवं 2003 में भाजपा को मिले थे रिकार्ड मत

मध्य प्रदेश की 137 विधानसभा होशंगाबाद में वर्ष 2018 में भाजपा के 38 साल तक सांसद-विधायक मंत्री रहने वाले सरताजसिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी बनकर भाजपा प्रत्याशी डॉ. सीताशरण शर्मा के विरूद्ध चुनाव लड़ा जिसमें इस विधानसभा में 2 लाख 703 मतदाताओं में से 66999 कुल 42 प्रतिशत मतदाताओं ने कांग्रेस के सरताजसिंह को वोट किये वहीं 82216 अर्थात 52 प्रतिशत मतदाताओं ने डॉ.सीताशरण शर्मा को वोट करके विजयीश्री दिलवार्यी चॅूकि इसमें 14 प्रत्याशी शामिल हुए थे जो मतदान का एक प्रतिशत भी वोट न पा सके थे। इसी प्रकार हम वर्ष 2013, वर्ष 2008 एवं 2003 के ऑकड़ों पर दृष्टि डाले तो वर्ष 2013 में कुल 164864 मतदाताओं में से 84 प्रतिशत 91760 मतदाताओं ने भाजपा के डॉ. सीताशरण शर्मा को रिकार्ड मतों से जिताकर कांग्रेस प्रत्याशी रविकिशोर जायसवाल 42464 वोट देकर घर बिठाया था।

55 प्रतिशत 54523 मतदाताओं ने दिखाया था अपन विश्वास

कांग्रेस प्रत्याशी गिरिजाशंकर शर्मा वर्ष 2008 में भाजपा के प्रत्याशी थे तब उन्हें भाजपा के चुनावचिन्ह के कारण 55 प्रतिशत 54523 मतदाताओं ने अपन विश्वास व्यक्तकर जिताया था चॅूंकि इसमें उनके प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के पूर्व मंत्री विजय दुबे काकू भाई थे जो जो 29203 वोटों पर सिमिट कर चुनाव हारे थे। सवाल वहीं है कि इस बार पॉच बार के विजयी प्रत्याशी डॉक्टर सीताशरण शर्मा को इस बार मुश्किलें क्यों उठानी पड़ रही है, इस मर्म को वे अपने घर में भाईयों के साथ बैठक में तय होने के बाद यह नौबत आने के दर्द को स्वयं समझते है जिसमें जहॉ लगतार उनकी जीत और पार्टी का उनपर विश्वास करने के पश्चात दूसरे किसी पार्टी कार्यकर्ता को टिकिट नहीं मिलने से उनके प्रति संगठन में असंतुष्टों का जमावड़ा हो गया जो किसी भी तरह डॉ. शर्मा की जीत नहीं चाहते है, ऐसी स्थिति में जबकि 35 साल तक कॉग्रेसियों को बेईमान, भ्रष्ट्राचारी जैसे कई चारित्रिक दोष जड़कर उन्हें नीचा दिखाकर भाजपा का झण्डा थामे उनके बड़े भाई गिरिजा शंकर शर्मा को भाजपा में कोई जिम्मेदारी या बड़ा पद नहीं मिलने से वे अपने को अकेला उपेक्षित समझकर भाजपा को ऑख दिखाकर अब कॉग्रेस को कौसने की बजाय उसमें उसमें शामिल हो प्रत्याशी बने गिरिजाशंकर शर्मा को कांग्रेसियों ने गले लगाकर उनके साथ जनसम्पर्क में निकल पड़े है।

भाजपा वर्ष 2003 से 2018 तक रिकार्ड मतों से रही विजयी

भाजपा वर्ष 2003 से 2018 तक रिकार्ड मतों से विजयी होती रही है, परन्तु उनके सामने भगवती चौरे जैसे प्रत्याशी का सामना करने जैसी नौबत नहीं आयी थी, यही कारण है कि डॉक्टर सीताशरण शर्मा के वोटबैंक में सेंध लगाकर जातिगत वोटों एवं फूलछाप कांग्रेसियों के सहयोग से वे 25 हजार से ज्यादा वोट तो पा सकते है, किन्तु इसमें हार डॉ.सीताशरण शर्मा की होगी जिनके वोटबैंक उनसे छिनेगें, और जीत कॉंग्रेस के गिरिजाशंकर शर्मा की हो सकती है। इस पूरी लड़ाई में भगवती चौरे के हारने का मतलब कॉग्रेस का जीतना है, अगर सौभाग्य से डॉ. सीताशरण शर्मा यह सीट निकाल भी ले तो शहर के उन दिलजलों के दिलों में छॉले पड़ना संभव है जो बगीचे की जीत को थामना चाहते है, यह उनकी हार होगी।

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