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महात्मा कबीर ने धार्मिक रूढि़वाद एवं पाखंड पर प्रहार कियाः मंथन

गुना, 24 जून (हि.स.)। कबीरदास जी की वाणी अनुभूति से पूर्ण है। संत कबीर ने धार्मिक रूढि़वादिता एवं दिखावे का खंडन करके एक व्यापक परब्रम्ह तत्व को स्वीकारा। अपने आराध्य के अनुराग में मस्त वे एक ऐसे अक्खड़ संत थे, जो कहीं किसी की परवा नहीं करता। महात्मा करीबदास की जयंती के अवसर पर गुरुवार को वर्चुअल चिंतन गोष्ठी में वक्ताओं द्वारा विचार यह व्यक्त किए गए। इस मौके पर विराट हिन्दू उत्सव समिति के प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि महात्मा कबीर भारतीय सैद्धांतिक सहिष्णुता एवं समन्वयवाद के उच्च आदर्श हैं। कबीर के राम सत्य स्वरूप हैं, न तो उसका आदि है न मध्य और न अंत 'राम नाम जिन पाया सारा, अबिरथा झूठ सकल संसारा’। नाम जप के विषय में भक्त कबीरदास ने स्पष्ट कहा-राम मणि राम मणि राम चिंतामणि, बड़े भाग पायो अब याहि तू छाड़ जिनि।’ मंथन ने कहा कि महात्मा कबीर ही एकमात्र ऐसे कवि हैं जिन्होंने हिन्दू एवं मुसलमानों को फटकारते हुए उनकी कट्टरपंथिता एवं दिखावे पर जमकर प्रहार किया। मुसलमानों को फटकारते हुए उन्होंने कहा 'कंकड पत्थर जोड़ के मस्जिद लई बनाए, ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय’। हिन्दूओं से कहा, कहा भयो तिलक गरे जप माला, मरम न जाने मिलन गोपाला (रमैनी 136)’। उन्होंने कहा माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुख माहिं, मनुवां तो चहूं दिस फिरै यह तो सुमिरन नाहीं’। कबीर जयंती पर आयोजित वर्चुअल संगोष्ठी में लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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