लू लगने से बीमार पड़े भगवान जगन्नाथ स्वामी, पवित्र जल से हुआ स्नान
पन्ना, 24 जून (हि.स.)। भव्य मंदिरों की नगरी पन्ना मे स्थित प्राचीन व आस्थामयी भगवान श्री जगदीश स्वामी जी मंदिरों में आज पूर्णमासी के अवसर पर प्राचीन परम्परा एवं मान्यता के अनुसार भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी जी को गर्भगृह से निकालकर पवित्र जल को हजार छिद्र वाले घड़े से स्नान कराया गया। कुछ ही देर बाद भगवान जब वापस जाने लगे तभी जगत के नाथ जगन्नाथ जी को लू लग गई और वह बीमार पड़ गये। तब भगवान के इस तरह बीमार पड़ने पर श्रद्धालुभारी निराश व आश्चर्यचकित थे उनके जल्द ठीक होने की मन्नतें मांगी जा रही है। भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी जी को जब पवित्र जल से स्नान कराया जा रहा था उसी समय बैंड बाजों की मधुर ध्वनि एवं शंख घड़ियाल की थाप एवं पंडितों के मंत्रोच्चारण घोस से मंदिर के पूरे वातावरण की आव-हवा कुछ और ही थी। उक्त रस्में व कार्यक्रम के समय बहिन सुभद्रा जी एवं भइया बलराम भी थे। विधि-विधान से स्नान कराने के उपरांत भगवान जगन्नाथ स्वामी, बहिन सुभद्रा जी एवं बलभद्र जी की आरती हुई। इस अवसर पर चवर डुलाया गया। इसके उपरांत भगवान श्री की सुध-बुध में खोये घट लूटने में लगे हुये थे। जिसकी छटा देखते ही बनती थी। भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी जी को लू लगने से अब 15 दिनों तक कोई कार्यक्रम नहीं होगे मंदिर के कपाट बंद हो गये है। जगत के पालनकर्ता जल्द से जल्द ठीक हों इसके लिए प्रसिद्ध वैद्य व हकीमों द्वारा भगवान का विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों से इलाज किया जा रहा है। प्राचीन किवदंती व मान्यता के अनुसार श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने प्रतिदिन जाते हैं लेकिन कपाट बंद होने के कारण उदास हो जाते है इस स्थिति में भगवान के जल्द स्वस्थ्य होने की कामना को लेकर विनती करते है। पन्ना नरेश किशोर सिंह जू देव 1816 में प्रतिमा लेकर आए थेः- पुरी में मंदिर के करीब समुद्र हैं तो पन्ना के मंदिर के सामने इंद्रामन नाम का सरोवर है जो मंदिर के आकर्षण को और बढ़ा देता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 1816 में तत्कालीन पन्ना नरेश किशोर सिंह जू देव पुरी से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाएं पन्ना लेकर आए थे। राजा के साथ कई और लोग भी गए थे, प्रतिमा को रथ से पन्ना लाया गया था। पन्ना नरेश रथ के पीछे पीछे पैदल चलकर आए थे, प्रतिमा को लाने में चार माह का समय लगा था। भगवान के लिए भव्य मंदिर बनाया गया! पुरी की तर्ज पर मंदिर, समुद्र की जगह तालाबः- जिस तरह पुरी में समुद्र है, उसी तर्ज पर पन्ना में मंदिर के सामने तालाब का निर्माण कराया गया और भगवान की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गई। मंदिर के पुजारी राकेश गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के 36 वर्ष बाद पन्ना में भी आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकालने की शुरूआत हुई। बीते 163 वर्षो से रथयात्रा निकालने का सिलसिला यहां अनवरत चला आ रहा है। इस रथ यात्रा में हजारों की भीड़ के साथ घोडे हांथी, उंट की सवारी निकलती है। पूर्व काल में यात्रा की शुरूआत तोपों की सलामी के साथ होती थी। आजादी के बाद पुलिस द्वारा यात्रा के प्रारंभ में गॉड ऑफ आनर देने की शुरूआत हुई। यह परंपरा आज भी जारी है। रथयात्रा की शुरूआत किशोर सिंह के पुत्र महाराजा हरवंश सिंह द्वारा की गई थी। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेश/राजू