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जिनवाणी को मनवाणी के हिसाब से बना लिया-मुनिश्री पदम सागरजी

जिनवाणी को मनवाणी के हिसाब से बना लिया-मुनिश्री पदम सागरजी गुना 24 मार्च (हि.स.)। रूठियाई में चल रहे सिद्धचक्र महामंडल विधान में जैन समाज द्वारा उत्साह के साथ भाग लिया जा रहा है। इस मौके पर प्रात: मंगलोदय तीर्थ पर श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा उपरांत इंद्र-इंद्राणी बने श्रद्धालुओं द्वारा सिद्ध भगवान की आराधना की जा रही है। वहीं रात्रि में महाआरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। मुनिश्री पद्म सागरजी महाराज ने विधान के दौरान धर्मसभा में चौसठ रिद्धियों को प्राप्त कर सिद्धत्व अवस्था को किस प्रकार प्राप्त किया जाता है, पर प्रकाश डाला। मुनिश्री ने कहा कि पूजन भक्ति को ही मुक्ति का कारण माना जाता है। भक्त नहीं भगवान बनने यह आज जो परम्परा चल रही है यह बिल्कुल गलत है। मुनिश्री पद्मसागरजी ने कहा की आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने कल्याण मन्दिर के स्तोत्र के 38 वें काव्य में कहा कि भगवान मैंनें वर्षों से आपके दर्शन, भक्ति, पूजन, अभिषेक आदि किए। लेकिन आज तक हमें अपने कार्य की सिद्धि क्यों नही हुई? हमारी मनोकामनाएं उद्देश्य की पूर्ति क्यों नहीं हुई ? तो भगवान ने कहा कि तुम्हारी भक्ति इसलिए निष्फल है क्योंकि तुमने आगम के अनुसार काम नहीं किया। जिनवाणी को मनवाणी के हिसाब से बना लिया। यदि एक बार जिनवाणी और गुरु के अनुसार भक्ति की होती जो वर्षो से जो रिद्धि सिद्धि प्राप्त नही हुई वो एक अंतरमुहूर्त में प्राप्त हो जाती है। मुनिश्री ने अंजन चोर का उदाहरण देते हुए कहा कि जिंदगी पर सप्त व्यसन में लिप्त रहने वाला एक चोर ने आस्था के साथ णमोकार मंत्र का जाप किया तो उसका जीवन तर गया। इस अवसर पर मुनिश्री विशवाक्ष सागरजी महाराज ने भी संबोधित किया। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक

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