भारत ही संस्कार और संस्कृति की भूमि-मुनिश्री शैल सागरजी
गुना, 09 मार्च (हि.स.)। फैशन के नाम पर संस्कृति और संस्कार दोनों ही इंसान के जीवन से दूर होते जा रहे हैं। जिन फटे कपड़ों को पहनना आप फैशन समझ रहे हो, वास्तव में वह दरिद्रता का प्रतीक है। फैशन के नाम पर यदि तुम्हारे घर में ऐसा पारिधान आ रहा है तो समझो तुम्हारे घर दरिद्रता आ रही है। पाश्चात्य संस्कृति के अंधा अनुकरण करने से हमने अपनी संस्कृति और संस्कार छोड़ दिए हैं। आप अपनी सांस्कृतिक पहचान का कपड़े पहनो तो निश्चित ही और अधिक सुंदर लगोगे। भारत ही एक ऐसी जगह है जहां संस्कृति और संस्कार मिलते हैं, विदेशों में नहीं। जब स्वयं महसूस करना जब भी आप भारतीय परिधान पहनोगे तो खुद को हल्का महसूस करोगे। उक्त धर्मोपदेश जैनाचार्य विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री शैल सागरजी महाराज ने मंगलवार को चौधरी मोहल्ला स्थित महावीर परिसर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मुनिश्री प्रसाद सागरजी महाराज भी मंचासीन थे। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्यश्री के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन एवं मंगलाचरण से हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री शैलसागरजी महाराज ने कहा कि आपके वाचनों और आपके रहनसहन से आपके खानदान का पता चलता है। लेकिन आज की पीढ़ी बिना सोचे समझे ही फैशन की पीछे भाग रहा है, यह वास्तव में अपने आपको धोखा देने जैसा है। दुकानों को लिखा रहता है फैशन के दौर में गारंटी की इच्छा न करें। जिस फैशन की दुकान के बाहर तक गारंटी नहीं है उस पर आप कैसे विश्वास कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि बच्चों में संस्कार देने का पहला दात्यिव मां का है फिर पिता, शिक्षक और फिर गुरु का। आज की संतानों को माता-पिता ने लाड़-प्यार में इतना बिगाड़ दिया कि उसे वह संस्कार दे ही नहीं पा रहे हैं। आज बच्चों से थोड़ा सा कुछ बोलो तो बच्चे धमकी देते हैं कि घर छोड़ के चला जाऊंगा या मार जाऊंगा। क्या आज के माता-पिता को थोड़ा भी डांटने का अधिकार नहीं है? इसके लिए जिम्मेदार माता-पिता ही है। मुनिश्री ने कहा कि माता-पिता के बच्चों को संस्कार देने की फुर्सत ही नहीं है। घरों में स्थिति यह है कि परिवार के सदस्य सब कुछ छोड़ देंगे लेकिन मोबाईल नहीं छोड़ेंगे। मोबाईल नहीं मिलता तो हालत खराब हो जाती है। पहले माता कुमाता नहीं होती थी लेकिन आज मोबाईल के आदी हो चुकी आधुनिक मां के कुमाता बनने के मामले अक्सर सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि घर में यदि चार सदस्य हैं तो चारों के हाथों में मोबाईल हैं। एक कोने में बैठे लेकिन एक-दूसरे से मतलब नहीं है। घरों में बच्चों को सिखाया ही नहीं जा रहा है कि बड़ों के पैर छुओ, फिर वो तुम्हारी क्या बात मनेगा। वर्तमान आधुनिक युग में यदि सबसे अधिक पतन हुआ है तो वह नैतिक शिक्षा है। इसलिए आज के माता-पिता को जरूरत है कि वह इतनी फुर्सत तो निकाले कि बच्चों को संस्कार दे सकें। हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक