i-want-to-see-hindustan-as-hindustan
i-want-to-see-hindustan-as-hindustan

मैं हिंदुस्तान को हिंदुस्तान देखना चाहता हूं !

खामोश शख्स साहित्यकार : सुरेश 'आनन्द रतलाम, 26 जून (हि.स.)। अक्सर खामोश रहने वाला यह शख्स इतना खामोश निकला कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी खामोशी से अलविदा हो गया। हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर , गांधीवादी प्रदेश के सुप्रसिद्व साहित्यकार, सुरेश 'आनन्द' गांधीवादी विचारों की जीती जागती मिसाल रही है । वे अपने जीवन मे सिर्फ खादी वस्त्रों को धारण इसलिये करना पसंद करते थे, कि वे कहते थे खादी सिर्फ वस्त्र ही नही एक विचार भी है । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अंग्रेज शिष्या सरला बहन, आचार्य प्रवर बिनोवा भावे के साथ पदयात्रा कर ग्राम जीवन को उन्होंने नजदीकी से देखा है, लिहाजा मजबूरों को मजबूत बनाने के लिये डटे रहना और आत्मनिर्भर बनाना उनका मुख्य उद्देश्यों में शरीक रहता था। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 18 अप्रैल 1938 को जन्मे आनन्दजी के विराट साहित्य ने यह साबित कर दिया कि वे सिर्फ व्यक्ति ही नही वरन एक संस्था थे। उनके साहित्य में व्यवस्था , भाईभतीजा के खिलाफ प्रहार होता था। उन्होंने बीस से अधिक मौलिक पुस्तकों की रचना की जिन्हें विभिन्न प्रकाशकों ने प्रकाशित कर जनता के हाथों तक पहुँचाई । वही डेढ़ हजार से अधिक पत्र पत्रिकाओं में अपनी कलम चला चुके है । उन्हें साहित्यालंकार सहित दर्जनों उपाधियों से सम्मानीत भी किया जा चुका है। आकाशवाणी , दूरदर्शन पर उनकी रचनाएं प्रसारित हो चुकी है। ग्वालियर में पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी, जगदीश तोमर, शैवाल सत्यार्थी, स्व भवानी प्रसाद मिश्र, गोपाल दास नीरज , शैल चतुर्वेदी , जैसे अनेको साहित्यकारों के साथ रह चुके है । ' छन छन कर आती है धूप , मेरे पर्दे से मेरे कमरे में , लड़ा बैठी आंखे मेरी दीवारों से उनका चर्चित गीत रहा है । उनके तीखे व्यंग्य किसी तीर के वार से कम नही रहे है ... मैं हिंदुस्तान को हिन्दुस्तान देखना चाहता हूं , जिसने भी उठाई आंख उसे भेदना जानता हूँ , क्या हुआ मेरे पास तलबार नहीं है , मैं कलम में ही बारूद भरना चाहता हूँ जैसे पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने अपनी कलम का परिचय भी दे दिया था। हमेशा सादगी से रहने वाला ये गुमनामी चेहरा प्रचार प्रसार से दूर रहकर हिंदी साहित्य की अंतिम समय तक रतलाम में ही सेवा करते हुए 27 जून 2020 को बड़ी ही खामोशी से अलविदा हो गया। जिनके साहित्य में दूरदृष्टि, आत्मनिर्भरता के साथ ही आंशकाओ में आशा की किरण तराशने की प्रेरणा देती है, जो अब उनकी स्मृति शेष और मार्गदर्शन की भूमिका निभा रही है। हिन्दुस्थान समाचार / शरद जोशी

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in