मप्र: मुख्यमंत्री शिवराज ने साहित्यकार बाबू गुलाबराय को किया नमन

मप्र: मुख्यमंत्री शिवराज ने साहित्यकार बाबू गुलाबराय को किया नमन

हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार बाबू गुलाबराय की गुरुवार को पुण्यतिथि है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें याद करते हुए नमन किया है।

भोपाल, एजेंसी । हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार बाबू गुलाबराय की गुरुवार को पुण्यतिथि है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें याद करते हुए नमन किया है।

मुख्यमंत्री शिवराज ने अपने ट्वीटर संदेश में लिखा, ''अपनी अहर्निश साहित्य साधना द्वारा हिंदी शब्द जगत को समृद्ध करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार बाबू गुलाबराय जी की पुण्यतिथि पर नमन करता हूँ। बाबू जी ने बहुत श्रम, धैर्य और निष्ठा के साथ लेखन करते हुए मानव जीवन की समग्रता को अपने साहित्य में समेटा है।''

एक अन्य संदेश में उन्होंने लिखा कि ''हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार बाबू गुलाबराय जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। नवरस, नाट्य विमर्श, भारतीय संस्कृति की रूपरेखा, जीवन-पशु-ठलुआ क्लब आदि आपकी रचनाएं साहित्य जगत को सदैव सुवासित करती रहेंगी''।

उल्लेखनीय है कि बाबू गुलाबराय हिन्दी साहित्य के एक ऐसे प्रकाश पुंज थे जिनके दिव्य आलोक हिन्दी जगत दैदीप्यमान होता रहा। उनकी साहित्य साधना उनके विराट व्यक्तित्व की साकार अभिव्यक्ति है। उनकी कृतियों द्वारा कोई उन्हें श्रेष्ठ समीक्षक, अप्रतिम, निबंधकार, दार्शनिक, अध्यापक एवं सुयोग्य सम्पादक बताना चाहता है।

बाबू गुलाबराय का जन्म 17 जनवरी, 1888 तद्नुसार माघ कृष्णा चतुर्थी संवत् 1944 को इटावा में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा मैनपुरी में हुई। उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु आगरा में आए। 1913 में सेंट जॉन्स कॉलेज से एम.ए. (दर्शनशास्त्र), तथा 1917 में आगरा कॉलेज से एल.एल.बी. करने के पश्चात् छतरपुर राज्य के महाराजा सर विश्वनाथ सिंह जू के दार्शनिक सलाहकार, निजी सचिव, दीवान एवं मुख्य न्यायाधीश के रूप में 18 वर्षों तक कार्य किया। छतरपुर से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने आगरा को ही अपनी कर्मभूमि बनाया। आगरा में आकर सबसे पहले वे जैन बोर्डिंग स्कूल के वार्डन बने। तत्पश्चात् सन् 1934 में वे सेंट जॉन्स कॉलेज में हिन्दी के अवैतनिक प्राध्यापक बने। सन् 1935 से उन्होंने ‘साहित्य संदेश’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया। इस पत्रिका के माध्यम से बाबू जी ने उस समय हिन्दी विषय की उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों, प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने ‘शान्तिधर्म’ नामक कृति की रचना सन् 1913 में की, तब से लेकर जीवन पर्यन्त वे लेखन में रत रहे। जिसमें कि उन्होंने हिन्दी वाङ्मय को लगभग 50 ग्रन्थ प्रदान किए।

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