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दो दिवसीय राष्ट्रीय कृषि संगोष्ठी समारोह पूर्वक शुरू

धनबाद, 13 मार्च (हि.स.)। देश के कृषि वैज्ञानिकों की दो दिवसीय राष्ट्रीय कृषि संगोष्ठी शनिवार को संबोधी रिट्रीट गोविंदपुर में समारोह पूर्वक शुरू हुई। इसमें देश के 24 राज्यों के 150 कृषि वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं, और 350 कृषि वैज्ञानिकों की ऑनलाइन भागीदारी है। कार्यक्रम में कृषि पुस्तिका का विमोचन भी हुआ। ग्रीन एग्री प्रोफेशनल सोसाइटी धनबाद के तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी में कुल 16 सत्र होंगे, जिसमें देशभर से आए कृषि वैज्ञानिक शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। संगोष्ठी की अध्यक्षता गजेंद्र परमार एवं संचालन डॉ. अरुण कुमार तिवारी, डॉ. अमरेंद्र कुमार, डॉ. वर्षा रानी एवं सतीश कुमार ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर डॉ. काली कांत चौधरी को आरवाईएन परमार अवार्ड, डॉ. वर्षा रानी को प्रमिला देवी अवार्ड, डॉ. एस सुनील सिंह को जानकी देवी मेमोरियल अवॉर्ड, डॉ. आरपी मुथुरमन को अगैया एडुनरी अवार्ड और डॉ. मिजानुल हक को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। संगोष्ठी में आयोजन सचिव डॉ. अनिल कुमार, डॉ. अखलाक अहमद, बीके यादव, डॉ. जयप्रकाश, डॉ. शांति भूषण, डॉ. पीसी ओझा, श्रीनिवास पांडेय आदि हिस्सा ले रहे हैं। संगोष्ठी का समापन रविवार को होगा। समारोह को संबोधित करते हुए भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के तकनीक एवं प्रशिक्षण प्रमुख डॉ. रमन पिल्लई मुथुरमन ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में देशभर के कृषि वैज्ञानिक लगातार अनुसंधान कर रहे हैं। देश के जलवायु में तेजी से परिवर्तन हो रहा है और इसके अनुरूप कृषि तकनीक का विकास नहीं हुआ तो किसान पिछड़ जाएंगे। उन्होंने कहा कि एक ओर मौसम में तेजी से बदलाव और दूसरी ओर ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती है। इससे मुकाबले के लिए कृषि वैज्ञानिक और देश के नीति निर्धारक संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलसचिव डॉ. मिनहाज हक ने कहा कि मौसम के अनुरूप खेती की टेक्नोलॉजी वैज्ञानिक ला रहे हैं। हरित क्रांति और सदाबहार क्रांति के बाद अब इंद्रधनुषी क्रांति की जरूरत है ताकि समावेशी संपूर्ण एवं टिकाऊ खेती हो सके। संगोष्ठी के मुख्य संयोजक चावल अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. ब्रजेंद्र ने देश के कोने-कोने से आए कृषि वैज्ञानिकों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी से वैज्ञानिक एक निष्कर्ष पर पहुंचेंगे, जिससे मौसम में बदलाव के बाद भी खेती में नुकसान न हो। इन सुझावों से भारत सरकार के कृषि मंत्रालय को अवगत कराया जाएगा। डॉ. बृजेंद्र ने कहा कि कोयलांचल में भी खेती हो सकती है। यहां फलदार पौधे, बागवानी, दूध उत्पादन, कोयला निकासी के बाद बेकार पड़े खदानों में मत्स्य पालन किया जा सकता है। लोगों में यह धारणा गलत है कि कोलियरी क्षेत्रों में खेती नहीं हो सकती। यहां सब्जी की अच्छी पैदावार की जा सकती है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची की वैज्ञानिक डॉ. वर्षा रानी ने कहा कि आम के गुच्छा में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। नर फूल ज्यादा और मादा फूल कम हो जाते हैं। इससे आम के फल नहीं लगते और लगते हैं तो मटर के दाने के बराबर होकर गिर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए 200 पीपीएम एनएए का छिड़काव अक्टूबर के पहले हफ्ता करना चाहिए। इसके बाद 500 पीपीएम का छिड़काव फरवरी के पहले 15 दिन के अंदर करना चाहिए। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलसचिव डॉ. मिजानुर हक ने कहा कि जलवायु में जिस हिसाब से परिवर्तन हो रहा है उसी के अनुरूप अनाज के विभिन्न प्रभेद की खोज कृषि वैज्ञानिक कर रहे हैं। इसलिए किसानों को नुकसान नहीं होगा। मौसम में बदलाव के अनुरूप कृषि अनुसंधान जारी है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिक डॉ. अमरेंद्र कुमार ने कहा कि झारखंड की मिट्टी के अनुरूप यहां फल एवं सब्जी की अच्छी खेती की जा सकती है। यहां की जमीन ऊंची नीची है। यहां वर्षा भी प्रतिवर्ष 12 मिली मीटर होती है। फल और सब्जी की खेती के साथ बकरी पालन, मुर्गी पालन, सूअर पालन आदि कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची के वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार तिवारी ने कहा कि मसालों की खेती कर झारखंड के किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं। यहां हल्दी, अदरक, धनिया, लहसुन, मिर्च आदि की अच्छी खेती की जा सकती है। यहां की जलवायु इसके अनुरूप है। ओडिशा से आए किसान नेत्रानंद लंका ने किसानों से ऑर्गेनिक खेती करने की अपील की। उन्होंने कहा कि परंपरागत खेती भी लाभप्रद है। किसानों को अपने घरों में गाय बैल रखने होंगे और उसके गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर अच्छी फसल पैदा कर सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार /बिमल/चंद्र

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