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किसानों को खेती-बारी की नवीनतम तकनीकों से अवगत कराने का हो सार्थक प्रयास: राज्यपाल

रांची, 05 मार्च (हि.स.)। राज्यपाल सह कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि प्रदेश के किसानों के हित में कृषि तकनीकी नवीनता के साथ आयोजन इस मेले की प्रमुख विशेषता है। मुझे अवगत कराया गया कि इस वर्ष मेले का केन्द्रीय विषय-वस्तु ‘कृषि उद्यमों के विविधिकरण द्वारा ग्रामीण सम्पन्नता’ रखा गया हैI बदलते वैश्विक कृषि परिवेश एवं कोरोनाकाल के मद्देनजर इस विषय से विश्वविद्यालय के दूरगामी सोच की एक झलक देखने को मिलती है। राज्यपाल शुक्रवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची की ओर से आयोजित पूर्वी क्षेत्र प्रादेशिक किसान मेला एवं एग्रोटेक-2021 किसान मेला का उद्घाटन के बाद संबोधित कर रही थीं। राज्यपाल ने कहा कि विगत कुछ वर्षों से इस किसान मेला में अपने किसान भाइयों-बहनों से निरंतर मिलने आ रही हूं। एक किसान परिवार में जन्म लेने और जुड़े रहने की वजह से कृषकों की कठिनाइयों एवं आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझ सकती हूं। देश के विकास, खाद्य और पोषण सुरक्षा तथा राष्ट्र की स्थिरता के लिए किसानों का सम्मान, उनकी आवश्यकता आधारित तकनीकी जरूरतों की पूर्ति एवं उनकी हितों की रक्षा करना हमारी प्राथमिकता सूची में पहले पायदान पर होना जरूरी हैI उन्होंने कहा कि किसानों को खेती-बारी की नवीनतम तकनीकों से अवगत कराने के लिए आयोजित यह तीन दिवसीय किसान मेला अत्यन्त सार्थक प्रतीत हो रहा हैI इस मेला में तकनीकों का, सेवाओं का, उपादानों और उत्पादों का जीवंत प्रदर्शन किया जाता है तथा किसानों-पशुपालकों की तकनीकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्येक विषय के विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक भी उपलब्ध रहते हैंI राज्यपाल कहा कि भारत देश की 70 फीसदी से अधिक आबादी गांवों में बसती हैI इसलिए ग्रामीण सम्पन्नता और खुशी का हरेक प्रयास ग्रामीण क्षेत्रों में बसे बहुतायत किसानों के हितों की रक्षा के बिना सफल नहीं हो सकता हैI बहुतायत आबादी छोटे एवं सीमांत किसानों की हैI वर्षा आधारित खेती इन किसानों का कृषि से आय में कमी की मुख्य वजह हैI सुनिश्चित सिंचाई के अभाव में झारखण्ड राज्य में हरेक वर्ष धान की कटाई के बाद बहुत-सी कृषि भूमि बिना किसी उपयोग के परती रह जाती हैI उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक धान कटाई के बाद भूमि में बची नमी से रबी फसलों की कम अवधि वाली फसल किस्मों को विकसित करने की ओर लगातार शोध कर रही है। हाल ही में विश्वविद्यालय की Ravi Research Council की बैठक में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न दलहनी एवं तेलहनी फसलों की तेरह किस्मों एवं बैंगन सब्जी की तीन किस्मों को चिन्हित किया गया है। स्टेट वेरायटी रिलीज कमेटी के अनुमोदन के बाद इन फसल किस्मों का लाभ प्रदेश के किसानों को मिलने लगेगाI इसी बैठक में कम लागत वाले लघु कृषि यंत्रों को प्रदेश के किसानों के उपयोग के लिए अनुशंसित किया गया है। इस सफलता के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन एवं सभी वैज्ञानिक बधाई के पात्र है, जिसे आगे भी कायम रखने की जरूरत है। इन सफ़लताओं के बावजूद विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को प्रदेश के बहुतायत छोटे एवं सीमांत किसानों के आजीविका एवं पोषण सुरक्षा के लिए इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर सिस्टम को प्रभावी प्राथमिकता दिये जाने की आवश्यकता है। पशुधन क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए छोटे और सीमांत जोतदार किसानों को आजीविका एवं पोषण सुरक्षा तथा आय में बढ़ोतरी में पशु, मत्स्य, बकरी-पालन एवं कुक्कुट पालन सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकल्प साबित हो सकता है। राज्यपाल ने कहा कि देश में कृषि योग्य सीमित भूमि एवं देश की भावी खाद्यान जरूरतों को कम भूमि, कम जल एवं कम श्रमिक आधारित अधिक उत्पादन एवं लाभ वाली तकनीकों से ही पूरा किया जाना संभव होगा। इस दिशा में वैज्ञानिकों को सदैव लाभकारी नवाचार तकनीकों को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगाI नये तकनीकों के उपयोग से ही भावी आवश्यकताओं की पूर्ति संभव है। इस दिशा में प्रदेश के किसानों के बीच अधिकाधिक जागरूकता एवं कौशल विकास कार्यक्रम को चलाये जाने की जरूरत हैं। राज्य के इस एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत चार वर्ष पूर्व तक मात्र 4 कॉलेज थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब 11 हो गयी हैI अब राज्य के दूर-दराज के जिलों के छात्र-छात्राओं को उनके द्वार पर ही तकनीकी शिक्षा की सुविधा उपलब्ध हो रही हैI देवघर, गोड्डा और गढ़वा में स्थापित नए कृषि महाविद्यालयों के साथ हंसडीहा, दुमका में डेयरी प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, गुमला में फिशरीज सांइस कॉलेज, खूंटपानी, चाईबासा में हॉर्टिकल्चर कॉलेज तथा बीएयू के कांके, रांची स्थित एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग कॉलेज का संचालन किया जा रहा है। इन विषयों के तकनीकी महाविद्यालय झारखण्ड में पहले नहीं थेI विश्वविद्यालय के विस्तार के साथ-साथ इस संस्थान से लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ गयी हैं। राज्यपाल ने कहा कि जानकर प्रसन्नता हुई कि कृषि विश्वविद्यालयों की आईसीएआर रैंकिंग में विश्वविद्यालय को अच्छा स्थान मिला है। लॉकडाउन की अवधि में भी सभी महाविद्यालयों में ऑनलाइन निर्बाध कक्षाएं एवं परीक्षाएं निर्बाध जारी रहीं। ससमय स्नातक पाठ्यक्रमों का परीक्षाफल जारी की गई और कृषि अनुसंधान एवं प्रसार की गतिविधियां अनवरत जारी रहीं। डिजिटल प्लेटफार्म पर राज्य स्तरीय पशु मेला का आयोजन किया गया। हिन्दुस्थान समाचार/वंदना

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