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कोरोना के कहर से तरबूज की मिठास पर संकट

- खेतों में ही सड़ रही है फसल, - लगातार दूसरे साल किसान नहीं बेच पा रहे हैं अपने उत्पाद खूंटी, 19 मई(हि. स.)। गर्मी के शुरुआती दिनों में तरबूज की रसीली मिठास लोगों का गला तर कर देती है। लेकिन पिछले दो वर्षों से कोरोना तरबूज की मिठास पर कहर बनकर टूटा है। इस बार भी खूंटी जिले में तरबूज की बंफर उपज हुई है। लेकिन लॉकडाउन के चलते तरबूज उत्पादक किसान इस समय चिंता में डूबे हैं। उनके सामने समस्या है कि स्थानीय तरबूज को बाहर कैसे भेजा जाए। गौरतलब है कि खूंटी के तरबूज कोलकाता, राउरकेला, बिहार के साथ ही नेपाल तक भेजे जाते थे, पर पिछले दो साल से लाल तरबूज पैदा करने वाले किसानों के चेहरे पीले पड़े हुए हैं। स्थानीय बाजार में तरबूज की खपत काफी कम हैं। कोरोना संकट के पहले दूसरे जिलों और राज्यों के लोग खेतों से ही तरबूज की खरीदारी कर लेते थे, पर 2020 और 2021 के लाॅकडाउन के कारण किसान अपने उत्पाद बेच नहीं रहे हैं। कई लोगों ने ब्याज पर रुपये लेकर तरबूज की खेती की, तो कई किसानों ने बैंक से ऋण लिया। लॉकडाउन के चलते कुछ दिनों से कई किसानों ने फसल में सिंचाई कम कर दी थी, ताकि तरबूज जल्दी न पके। इसके बावजूद समय पर फसल तैयार हो गयी और किसान अपनी किस्मत पर रोने को विवश हो गये। डेढ लाख की पूंजी लगायी, 25 हजार के भी तरबूज नहीं बिके: सनिका धान कर्रा प्रखंड के कांटी पोड़हाटोली गांव के तरबूज उत्पादक किसान सनिका धान बताते हैं कि उन्होंने तरबूज की खेती में एक लाख 50 हजार रुपये से अधिक पूंजी लगायी। पूरा परिवार दिन भर खेतों में मेहनत करता है। अभी तरबूज पूरी तरह तैयार हो चुके हैं, पर खरीदार नहहीं है। अभी तक 25 हजार रुपये के भी तरबूज नहीं बिके हैं। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष भी उन्हें एक लाख रुपये से अधिक का नुकसान हुआ था। इस साल भी उन्हें एक लाख से अधिक का घाटा होने की आशंका है। सनिका ने कहा कि पहले जमशेदपुर, कोलकाता, रांची, छत्तीसगढ़ सहित अन्य शहरों के व्यवसायी खेतों से ही तरबूज ले जाते थे। पर इस साल कोई खरीदार अब तक नहीं पहुंचा है। उनकी पत्नी नीमी धान कहती हैं कि लाॅकडाउन ने उनकी कमर ही तोड़ दी है। हाड़तोड़ मेहनत के बाद तरबूज की अच्छी फसल हुई, पर खरीदार नहीं मिलने के कारण तरबूज खेतों में ही सड़ रहे हैं। तोरपा डेली मार्केट में कोरकोटाली गांव की से तरबूज बेचने आयी पूजा देवी कहती हैं कि तरबूज की तो काफी अच्छी फसल हुई है, पर बाजार बिल्कुल मंदा है। खेतों तक व्यवसायी पहुंच नहीं रहे हैं। स्थानीय बाजार में इसकी मांग काफी कम है। उन्होंने कहा कि इस बार भी उन्हें लाखों का घाटा सहना पड़ सकता है। वहीं, सोसोटोली की बीणा देवी कहती हैं कि खेतों में तरबूज सड़ न जाए, इसिलए घर का काम छोड़ कर डेली मार्केट में तरबूज बेचने आयी है, पर मांग से अधिक बाजार में तरबूज की आपूर्ति अधिक होने के कारण उन्हें उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार/अनिल/वंदना

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