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भारत की वन-चाइना नीति को निरस्त करने के मकसद से मैकलोड़गंज से दिल्ली के लिए पैदल मार्च पर निकलेंगे तिब्बती लेखक तेंजिन

धर्मशाला, 09 फरवरी (हि.स.)। तिब्बती लेखक और कार्यकर्ता तेंजिन सुंडू भारत की वन-चाइना नीति को निरस्त करने के मकसद से मैकलोड़गंज से दिल्ली के लिए पैदल मार्च पर निकल रहे हैं। तेंजिन अपनी इस यात्रा को 12 फरवरी से शुरू हो रहे तिब्बतियों के नववर्ष यानि ‘लोसर’ से शुरू कर रहे हैं तथा करीब एक माह के बाद 10 मार्च को तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस पर दिल्ली पंहुचेंगे। उन्होंने बताया कि उनके इस पैदल मार्च का मुख्य उद्देश्य तिब्बत पर भारत का ध्यान केंद्रित करना है। उनका कहना है कि अपने इस पैदल मार्च के दौरान वह मैकलोड़गंज से दिल्ली तक करीब 500 किलोमीटर का सफर अकेले तय करेंगे। हालांकि उनके साथ दो समर्थक साथ रहेंगे। अपने पैदल मार्च के दौरान वह हिमाचल से पंजाब में एंटर करने पर श्री आंनदपुर साहिब गुरूद्वारा में माथा टेकेंगे तथा फिर वहां से मोहाली, पंचकुला और चंडीगढ़ तथा करनाल, अंबाला और सोनीपत होते हुए दिल्ली पंहुचेंगे। इस दौरान वह हर रात सड़क के किनारे बने रैन बसेरों में गुजारेंगे। वहीं मार्च के दौरान लोगों से जागरूक करने तथा उनका समर्थन लेने के लिए हस्ताक्षर भी करवाऐंगे। तेंजिन का कहना है कि चीन न केवल भारत के साथ, बल्कि उसके अन्य पड़ोसी देशों के 14 देशों के साथ सीमा विवाद पैदा कर रहा है। चीन का साम्राज्यवादी डिजाइनों का उद्देश्य न केवल अपनी भूमि और समुद्री क्षेत्रों का विस्तार करना है बल्कि शी-जिंगपिंग ने यह साबित कर दिया है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का वास्तविक उद्देश्य रणनीतिक रूप से वैश्विक सुपर पावर बनना है। उनका कहना है कि भारत की वन-चाइना नीति के पालन के बावजूद, चीन इस नीति का समर्थन नहीं करता है। इसके बजाय बीजिंग भारत के अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों सहित सिक्किम और भारत को कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र में ले गया है। इस सब के चलते एक महीने की यात्रा के दौरान वह भारत सरकार से उसके वन-चाइना नीति को निरस्त करने के लिए याचिका दायर करेंगे। उनका कहना है कि वह एक वैश्विक अभियान का नेतृत्व करेंगे जिसमें विभिन्न देशों के प्रमुखों को उनकी वन-चाइना नीति को निरस्त करने और मान्यता देने के लिए याचिका दायर की जाएगी। गौर हो कि तिब्बत की आजादी के समर्थकों में से एक तंेजिन एक बेहतरीन लेखक भी हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। चीन के खिलाफ किसी भी तरह के संर्घष और आंदोलन के लिए वह हमेशा आगे रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार/सतेंद्र/सुनील-hindusthansamachar.in

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