शिवरात्रि नाट्य महोत्सव: वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है, सुना है आज मकतल में हमारा इम्तिहान होगा

भगत सिंह की वापसी नाटक आजादी के क्रांतिकारी आंदोलनों में शहीद भगत सिंह की भूमिका को रेखांकित करता है। यूं तो शहीद ए आज़म भगत सिंह के बलिदान पर अनेक नाटक और फिल्में दर्शकों तक पहुंची है।
शिवरात्रि नाट्य महोत्सव: वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है, सुना है आज मकतल में हमारा इम्तिहान होगा

मंडी, एजेंसी। अंतर्राष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि महोत्सव के अवसर पर संस्कृति सदन मोतीपुर में आयोजित किए जा रहे नाटय महोत्सव के पहले दिन दो नाटकों का मंचन हुआ। दोनों ही नाटकों अपने-अपने तरीके से सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार किया गया। पहला नाटक नाग बेदस द्वारा लिखा थैंकू बाबा लोचन दास जिसका निर्देशन रंगकर्मी वेद कुमार द्वारा किया गया। जबकि हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान रंगमंडल के कलाकारों द्वारा सागर सरहदी द्वारा लिखित और अयाज खान द्वारा निर्देशित नाटक भगत सिंह की वापसी सागर की बेहतरीन प्रस्तुति दी गई। इस अवसर पर एसपी मंडी शालिनी अग्रिहोत्री बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रही।

पेचिदा संबंधों की परतों का उघाड़ता चला जाता है

नाटय संध्या का पहला नाटक थैंकू बाबा लोचन दास नर-नारी के पेचिदा संबंधों की परतों का उघाड़ता चला जाता है। वहीं पर स्त्री -पुरूष संबंधों को किस तरह से जीव वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, अनुवांशिक, पारंपरिक, सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक न जाने कितने पहलु प्रभावित करते हैं। हास्य से प्रारंभ यह नाटक दुखांत तक जाते-जाते फिर हास्य पर खत्म होता है। इस नाटक में पंकज, कैलाश, छाया, संजय कुमार, अरूण शर्मा, राकेश कुमार, अंजली, तिलकराज, अरूण, भाविक कुमार, रूपेश और सुनील ने मंच पर अभिनय किया। वहीं पर्दे के पीछे वेशभूषा-रिंपल व मनीषा, मंच सज्जा संजय कुमार, कैलाश, पंकज और परिकल्पना वेद कुमार की रही।

भगत सिंह की जरूरत 1931 में ही नहीं थी आज भी है

वहीं भगत सिंह की वापसी नाटक आजादी के क्रांतिकारी आंदोलनों में शहीद भगत सिंह की भूमिका को रेखांकित करता है। यूं तो शहीद ए आज़म भगत सिंह के बलिदान पर अनेक नाटक और फिल्में दर्शकों तक पहुंची है। परंतु सागर सरहदी का नाटक भगत सिंह की वापसी वर्तमान समय में समाज के सामने खासकर युवाओं से तीखे प्रश्न पूछने की ताकत रखता है। नाटककार की कल्पना है कि यदि भगत सिंह आज फिर से जन्म लेकर उसी आत्मा के साथ हमारे सामने आकर खड़े हो जाएं और हमसे पूछे कि जिस आजा़दी को पाने के लिए हमने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था। इस देश के लिए अपनी जान न्योछावर की थी, क्या यह वही आजाद भारत है। जिसका तसव्वुर हमने किया था ,क्या यह वही भारत है जहां अमीर गरीब का भेदभाव नहीं होगा। जहां छुआछूत नहीं होगी जहां संप्रदायिकता नहीं होगी, तब हमारे पास क्या उत्तर होगा। नाटक जब अपनी संपूर्णता को पहुंचता है तो नाटक के अंतिम दृश्य में भगत सिंह दर्शकों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मेरे और तुम्हारे बीच सिर्फ मौत की वादी है। यदि मैं जीवित होता तो अभी तुमसे एक एक चीज पर उंगली रख कर बताता कि तुम भगत सिंह हो, तुम आजाद हो, तुम गुरु राजगुरु हो, तुम सुखदेव हो और तुम उन से भी बढक़र हो क्योंकि तुम जिंदा हो। आज यह जिम्मेदारी हम तुम पर डालते हैं। क्योंकि भगत सिंह की जरूरत 1931 में ही नहीं थी आज भी है। आज भी मजदूरों को उनका हक नहीं मिला है , आज भी किसान भूखा है। इसलिए राष्ट्र निर्माण के लिए क्रांति की शम्मां को बुझने मत दो। उसे रौशन करो और फिर से सोने की चिडिय़ा कहे जाने वाले भारत का निर्माण करो ।

एक सच्ची रचनात्मक श्रद्धांजलि है

सागर सरहदी का नाटक भगत सिंह की वापसी एक सम सामयिक रचना होने के साथ-साथ भगत सिंह और उनके साथियों की बलिदान के लिए एक सच्ची रचनात्मक श्रद्धांजलि है। इस नाटक में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका में राहुल भगत,भगत सिंहके रूप में फ्रेंडी, राजगुरु रोशन, सुखदेव विवेक विजय कुमार सिन्हा व नीलेश, बटुकेश्वर दत्त ओमकार, भगवतीचरण व नंबरदार नीरज, साइमन -जज धु्रव, व टोडी, प्रॉसिक्यूटर्स देवांग ,भगत सिंह की मां सीमा शर्मा ने अपना किरदार निभाया। वहीं नाटक का निर्देशन अयाज खान किया। जबकि प्रकाश व्यवस्था दीप कुमार, मंच सामग्री विवेक व नीरज, मंच सज्जा राहुल एवं रोशन, वस्त्र विन्यास सीमा शर्मा और पूजा तथा मुख्य सज्जा ध्रुव, निलेश और राहुल की रही।

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