लाल चंद प्रार्थी की जयंती पर ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठी का आयोजन

पहाड़ी भाषा और लोक संस्कृति के पुरोधा लाल चंद प्रार्थी की 108वीं जयंती पर सोमवार को हिमालयन डिजिटल मीडिया द्वारा ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
लाल चंद प्रार्थी की जयंती पर ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठी का आयोजन

शिमला, एजेंसी । पहाड़ी भाषा और लोक संस्कृति के पुरोधा लाल चंद प्रार्थी की 108वीं जयंती पर सोमवार को हिमालयन डिजिटल मीडिया द्वारा ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रदेश भर के साहित्य प्रेमी इस संगोष्ठी में शामिल हुए।

संगोष्ठी के दौरान डॉक्टर गौतम शर्मा व्यथित ने कहा कि लालचंद प्रार्थी ने हिमाचल प्रदेश में अकादमी की स्थापना से लेकर हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की मुहिम प्रारंभ की और जीवन के अंतिम क्षणों तक उसे निभाया। उन्होंने कहा कि प्रार्थी की अभिव्यक्ति और प्रस्तुति बेजोड़ थी तथा उनका पूरा जीवन संघर्षपूर्ण रहा।

डॉक्टर प्रत्यूष गुलेरी का कहना है कि लालचंद प्रार्थी ने पहाड़ी हिमाचली भाषा का नारा दिया और पहाड़ी भाषा एवं साहित्य के प्रोत्साहन के लिए अकादमी के माध्यम से अनेकों योजनाओं का संचालन किया। पहाड़ी को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के मुद्दे को उन्होंने प्रमुखता से उठाया जो आज भी पहाड़ी लेखकों की एक मुख्य मांग है।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में डॉ. यशवंत सिंह परमार पीठ के अध्यक्ष डॉक्टर ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि लाल चंद प्रार्थी ने डॉ यशवंत सिंह परमार के मार्गदर्शन में जिस पहाड़ी हिमाचली भाषा एवं साहित्य के लिए प्रयत्न किए उसे वर्तमान में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के माध्यम से पहाड़ी भाषा और साहित्य तथा प्राचीन लिपियों पर आधारित डिप्लोमा कोर्स के माध्यम से पूरा किया जा रहा है।

प्रचण्ड समय के संपादक अश्वनी वर्मा ने कहा कि लाल चंद प्रार्थी राजनेता और साहितयकार तो थे ही वे देश भक्ति की भावना से ओतप्रात भी थे। उनमें देश प्रेम की भाावना उनके इस गीत से ही मिलती है- हे भगवान दो वरदान काम देश के आफं मैं। इस गीत को चालीस के दशक में वे खूब गाते थे। उन्होंने कहा कि वे छह- छह भाषाओं के ज्ञाता थे। जिनमें उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत और पहाड़ी है। राजनेता होने के बावजूद साहित्यकारों से वे बड़े प्रेम भाव सेमिलते थे।

परिचर्चा के दौरान मदन हिमाचली ने बताया कि पहाड़ी भाषा के माध्यम से कोई भी लेखक अपने विचारों को मौलिकता के साथ प्रस्तुत कर सकता है और पहाड़ी भाषा में कविता कहानी उपन्यास अनुवाद आदि विभिन्न विधाओं में प्रचुर साहित्य का सृजन किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि लाल चंद प्रार्थी का जन्म 03 अप्रैल 1916 को जिला कुल्लू में हुआ था। एक कद्दावर लेखक, समाजसेवी, राजनेता, कुशल नर्तक, लोकगायक, संगीतप्रेमी, आयुर्वेदाचार्य थे। वे जिला कुल्लू के नग्गर के गांव के स्कूल में मैट्रिक की शिक्षा पास करने के बाद लाहौर से आयुर्वेदाचार्य करने के बाद राजनीति में आए और हिमाचल प्रदेश सरकार में भाषा संस्कृति तथा आयुर्वेद मंत्री रहे। 1971 में हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी की स्थापना में उनका प्रमुख योगदान रहा। लालचंद प्रार्थी की 11 दिसम्बर 1982 को मृत्यु हो गई।

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