मुख्य संसदीय सचिव नियुक्ति मामला: हिमाचल हाई कोर्ट में सात दिसंबर तक टली सुनवाई, डबल बेंच सुनेगी मामला

Himachal News: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सुक्खू सरकार में मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) नियुक्ति मामले में प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई सात दिसम्बर तक टल गई है।
हाई कोर्ट,सुक्खू
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शिमला, (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सुक्खू सरकार में मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) नियुक्ति मामले में प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई सात दिसम्बर तक टल गई है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लगने और प्रदेश हाई कोर्ट में बेंच बदलने की वजह से बीते शनिवार को हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई नहीं हो पाई। प्रदेश हाई कोर्ट अब इस मामले पर 7 दिसंबर को सुनवाई करेगा। दरअसल प्रदेश सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की याचिका दे रखी है।

मामला अगले हफ्ते के लिए टला

यह मामला पिछले कल यानी शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में लगा था, लेकिन हिमाचल सरकार की तरफ से किए गए वकील मनु सिंघवी उपस्थित नहीं हुए, जिसकी वजह से यह मामला अगले हफ्ते के लिए टल गया है। वहीं प्रदेश हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के लिए बेंच भी बदल दी गई है। अब तक इस मामले को न्यायाधीश विवेक ठाकुर और न्यायाधीश विपिन चंद्र नेगी की बेंच सुन रही थी। लेकिन आगे से इस मामले को न्यायाधीश विवेक ठाकुर और न्यायाधीश संदीप शर्मा की डबल बेंच सुनेगी।

सुप्रीम कोर्ट में अगले हफ्ते होगी सुनवाई

हिमाचल सरकार के महाधिवक्ता अनूप रत्न ने बताया कि सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने को लेकर याचिका दायर कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट में अगले हफ्ते इस पर सुनवाई होनी है। इस कारण हाई कोर्ट में आज सुनवाई टल गई है। इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील सत्यपाल जैन ने कहा कि प्रदेश हाई कोर्ट ने 7 दिसंबर को मामले की सुनवाई तय की है।

सुक्खू सरकार में छह सीपीएस तैनात हैं

उल्लेखनीय है कि सुक्खू सरकार में छह सीपीएस तैनात हैं। भाजपा विधायक सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने उनकी नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। अर्की विधानसभा क्षेत्र से सीपीएस संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। सभी याचिकाओं में आरोप है कि पंजाब में भी ऐसी नियुक्तियां की गई थीं, जिन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने नियुक्तियों को असंवैधानिक ठहराया था। असम और मणिपुर में भी मामले को लेकर पूर्व में फैसला सुनाया जा चुका है और सर्वोच्च न्यायालय मानता है कि उनकी नियुक्ति असंवैधानिक है।

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