Zero Shadow Day 2023: जब आपकी परछाई छोड़ देती है आपका साथ, जानिए क्या होता है 'जीरो शेडो डे'?

Zero Shadow Day 2023 in India: आज के दिन देश में किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब आपको नहीं दिखाई देगा। ऐसा साल में दो बार होता है। इस दुर्लभ खगोलीय घटना को 'जीरो शेडो डे' कहा जता है।
Zero Shadow Day
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमरे सौर मंडल में आठ ग्रह है। इनमें से एक ग्रह पृथ्वी पर हम अपना जीवन यापन करते है। हमारे ग्रह पृथ्वी पर कई घटनाएं ऐसी होती हैं जो यहां कभी-कभी ही होती हैं। इसमें से कुछ घटनाएं पृथ्वी के अपनी धुरी और सूर्य के चारों ओर की जा रही परिक्रिमा के कारण होती हैं। तो कुछ सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण जैसी कई खगोलीय घटनाएं भी इनमें शामिल हैं। ऐसे ही एक घटना ‘जीरो शैडो डे’ होती है। इसी साल बेंगलुरू में स्कूली बच्चों और विज्ञान के छात्रों ने जीरो शैडो डे मनाया. धरती के कई हिस्‍सों में यह विशेष खगोलीय घटना साल में दो बार आती है, जब इसे देखा जाता है। देश में आज है जीरो शैडो डे है। आज के दिन देश में किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई देगा। यह जानकारी शुक्रवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पांडेय ने दी।

बेंगलुरु में यह एक वर्ष में दो बार होता है

उन्होंने बताया कि यह वह दिन है जब ऊर्ध्वाधर वस्तुओं की छाया गायब हो जाती है। बेंगलुरु में यह एक वर्ष में दो बार होता है, एक उत्तरायण के दौरान और दूसरा दक्षिणायन के दौरान। 18 अगस्त को भारत में किसी भी चीज की परछाई नहीं दिखेगी, क्योंकि उस दिन जीरो शैडो डे है।

क्या होता है 'जीरो शैडो डे'?

उन्होंने बताया कि अक्सर लोग सोचते हैं कि हर दिन दोपहर में सूर्य ठीक सिर के ऊपर आ जाता है और हमारी छाया की लंबाई शून्य हो जाती है। पर, यह सच नहीं है। ऐसा साल में केवल दो दिन होता है, वह भी तब जब आप कर्क और मकर रेखा के बीच में कहीं रहते हों। हमारी छाया की लंबाई क्षितिज से सूर्य की ऊंचाई पर निर्भर करती है। दिन के आरंभ में यह लंबी होती है और जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, छाया छोटी होती जाती है। मध्याह्न के समय तो हमारी परछाई सबसे छोटी हो जाती है। लेकिन, हर रोज छाया की लंबाई मध्याह्न के समय शून्य नहीं होती।

कैसे होती है छाया की लंबाई शून्य?

पांडेय ने बताया कि पृथ्वी की धुरी जिस पर वह घूमती है उसकी कक्षा (जिसमें वह सूर्य का चक्कर लगाती है) से 23.4 अंश पर झुकी रहती है। इसी कारण ऋतु परिवर्तन, सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायण, दिन की लंबाई का घटना-बढ़ना इत्यादि होता है। यही वजह है कि सूर्य खगोलीय विषुवत रेखा से 23.4 अंश उत्तर और इतना ही आकाश में दक्षिण की ओर जाता है। खगोलीय विषुवत से सूर्य के विस्थापन को क्रांति कोण या डेकलिनेशन कहा जाता है। वर्ष में अलग-अलग समय पर सूर्य की स्थिति बदलती रहती है और वह शून्य से 23.4 अंश उत्तर और इतना ही दक्षिण की ओर जाता है। इस कारण सूर्य के कर्क, विषुवत और मकर रेखाओं के ठीक ऊपर चमकने के कारण मध्याह्न के समय सूर्य सिर के ठीक ऊपर होता है। इसीलिए, उन अलग-अलग तिथियों पर वहां किसी सीधी खड़ी वस्तु की छाया की लंबाई शून्य हो जाती है।

क्या है इसका कारण?

उन्होंने बताया कि वर्ष में केवल वर्ष में दो दिवस 21 मार्च (वसंत विषुव) और 23 सितंबर (शरद विषुव) ऐसे होते हैं जब दिन और रात्रि की लंबाई समान होती है। ग्रीष्म अयनांत (21 जून) को सूर्य कर्क रेखा (23.4 अंश उत्तर) के ठीक ऊपर चमकता है और क्रमशः दक्षिण की ओर बढ़ते हुए 22 दिसंबर (शीत अयनांत) को मकर रेखा ऊपर आ जाता है। 21 मार्च को कर्क रेखा पर दिन का प्रकाश 13.35 घंटे और रात्रि में अंधकार 10.25 घंटे रहता है। 22 दिसंबर को मकर रेखा पर भी यही घटनाक्रम होता है। इसी कारण उत्तरी गोलार्ध में 21 मार्च से दिन के प्रकाश का समय 12 घंटे से क्रमशः बढ़ते जाता है। यही ऋतु परिवर्तन का कारण है।

कैसे होता है 'जीरो शैडो डे'?

पृथ्वी की कर्क और मकर रेखाओं के बीच के क्षेत्र में 21 मार्च से 21 जून के बीच एक दिन ऐसा आता है जब किसी स्थान पर किसी वस्तु की छाया की लंबाई शून्य हो जाती है। उस दिन किसी सीधी खड़ी बेलनाकार वस्तु की छाया उसके नीचे छिप जाती है। 21 जून और 23 सितंबर के बीच एक बार फिर ऐसा होता है। दोपहर के समय इन दो दिनों को छोड़कर छाया की लंबाई कुछ न कुछ रहती है। छाया की लंबाई शून्य होने की तिथि इस बात से तय होती है कि उस स्थान का अक्षांश कितना है। विषुवत रेखा का अक्षांश शून्य होता है। इसी से अक्षांश की माप की जाती है।

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