महिला आरक्षण बिल को मिली मोदी कैबिनेट की मंजूरी, जल्द संसद में होगा पेश; जानें क्या कुछ है बिल में खास?

Modi Cabinet Decisions: संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे कर सभी को सरप्राइज कर दिया है। सरकार आज इस बिल को नई संसद भवन में लोकसभा के पटल पर रख सकती है।
Women Reservation Bill
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। Women Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र का आज दूसरा दिन है। इसी बीच सोमवार (18 सितंबर) को मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे कर सभी को सरप्राइज कर दिया। सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लोकसभा और विधानसभाओं जैसी निर्वाचित संस्थाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी गई है। अब ऐसा माना जा रहा है कि केंद्र सरकार जल्द इसे लोकसभा में पेश कर सकती है। सूत्रों ने बताया कि दोपहर एक बजे के बाद इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा।

महिला आरक्षण बिल सदन के पटल कई बार बन चुका है मुद्दा

आपको बता दें यह पहला मौका नहीं है, जब महिला आरक्षण बिल सदन के पटल पर रखा जा रही है। 1996 से 27 साल में कई बार यह अहम मुद्दा संसद में उठ चुका है। लेकिन अभी तक एक बार भी दोनों सदनों में पास नहीं हो सका है। 2010 में तो हंगामे के बीच राज्यसभा में पास भी हो गया था। लेकिन लोकसभा से पारित नहीं हो सका था। पिछले कुछ हफ्तों में, बीजद और बीआरएस समेत कई दलों ने बिल को फिर से लाने की मांग की थी।

हैदराबाद कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में रखा प्रस्ताव

कांग्रेस ने भी रविवार को अपनी हैदराबाद कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया था। जिसमें 2008 के विधेयक को कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था, लेकिन यह अपनी अंतिम रिपोर्ट में आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहा। समिति ने सिफारिश की कि विधेयक को संसद में पारित किया जाए और बिना किसी देरी के कार्रवाई में लाया जाए। कमेटी के दो सदस्य, जोकि समाजवादी पार्टी के थे, वीरेंद्र भाटिया और शैलेन्द्र कुमार ने यह कहते हुए असहमति जताई कि वे महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने के खिलाफ नहीं थे, लेकिन जिस तरह से इस विधेयक का मसौदा तैयार किया गया था, उससे असहमत थे। उन्होंने सिफारिश की थी कि प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने 20 प्रतिशत टिकट महिलाओं को वितरित करने चाहिए, आरक्षण 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

सबसे पहले 1996 में लाया गया था महिला आरक्षण बिल

गौरतलब है कि, सबसे पहले महिला आरक्षण बिल 1996 में लाया गया था। इसके बाद 1998 और 1999 में भी सदन के पटल पर रखा गया था। हलांकि उस समय यह बिल पस नहीं हो पया था। इसके बाद साल 2008 में गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति के 1996 के विधेयक की जांच करने के दी गई 7 सिफारिशों के साथ इस बिल को पेश किया गया था। जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए 15 साल की आरक्षण अवधि और उप-आरक्षण को शामिल किया गया था। इस बिल में अगर किसी राज्य में तीन से कम लोकसभा की सीटें हों तो दिल्ली विधानसभा में आरक्षण और कम से एक तिहाई आरक्षण को शामिल किया गया था। हांलाकि, उस वक्त कमेटी की दो सिफारिशों को 2008 के विधेयक में शामिल नहीं किया गया था। जिसमें पहला राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करने के लिए था और दूसरा संविधान द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण के लिए था।

क्या है महिला आरक्षण बिल?

महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है।

इस बिल में SC/ST और अन्य पर क्या है प्रस्ताव?

विधेयक में 33 फीसदी कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है।

विधेयक में क्या है प्रस्ताव?

विधेयक में प्रस्तावित है कि प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं। इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा।

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