नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। सुप्रीम कोर्ट आज CAA यानि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली लगभग 200 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इन याचिकाओं में CAA की नागरिकता संशोधन नियम 2024 पर रोक लगाने की मांग है। दिसंबर 2019 में संसद में पारित होने के 5 साल बाद केंद्र सरकार ने 11 मार्च को CAA लागू किया।
इन देशों से आए लोगो को मिलेगी नागरिकता
CAA नागरिकता अधिनियम 1955 में एक संशोधन है। इस नए अधिनियम के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के प्रवासी जो हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध या ईसाई समुदायों के लोग हैं और अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे। इन देशों से आए हुए लोगों को भारत सरकार कानूनी रुप से भारतीय नागरिकता प्रदान करेगी।
CAA मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि CAA मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है। यह तर्क दिया गया है कि यह धार्मिक अलगाव अनुचित है और अनुच्छेद 14 के गुणवत्ता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
केरल ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
2020 में केरल ने CAA को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाला पहला राज्य बना क्योंकि इसके अनुसार, भारतीय संविधान की समानता के अधिकार की गारंटी का उल्लंघन किया था। केरल ने CAA नियमों को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में दूसरा मामला भी दायर किया है।
इन लोगों ने SC में दायर की याचिका
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत के समक्ष केरल स्थित इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) द्वारा दायर एक याचिका पेश की थी। याचिका में IUML ने लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले CAA लागू करने के केंद्र के कदम पर सवाल उठाया। इन याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी, असम कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, TMC नेता महुआ मोइत्रा, गैर सरकारी संगठन रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, कुछ कानून के छात्र और असम एडवोकेट्स एसोसिएशन शामिल हैं।
BJP पर बरसे ओवैसी
असदुद्दीन ओवैसी ने CAA पर BJP के रुख की आलोचना करते हुए कहा कि "देश में धर्म के आधार पर कानून बनाने की अनुमति नहीं है। यह केवल राजनीतिक दलों तक ही सीमित मामला नहीं है। यह पूरे देश का मामला है।" क्या आप 17 करोड़ मुसलमानों को राज्यविहीन बनाना चाहते हैं? यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
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