नई दिल्ली, रफ्ताक डेस्क। देश की राजनीति में एक ऐसे भी राजनेता थे जिन्होंने देश अपने गांव जाने के लिए बैग पैक कर लिया था। तभी उनके घर पर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने दस्तक दी और बन गए देश के प्रधानमंत्री। 1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर देश की बागडोर संभाली।
इंदिरा-राजीव के करीबी थे नरसिम्हा राव
1991 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन पीवी नरसिम्हा राव को पार्टी ने कोई टिकट नहींं दिया। तब उन्होंने सोचा कि उनका राजनीतिक करियार खत्म हो गया है। उन्होंने दिल्ली से आंध्र प्रदेश की टिकट कटवा ली लेकिन हुआ कुछ यूं कि उनके साथ-साथ देश की किस्मत भी बदल गई। वैसे तो पीवी नरसिम्हा राव इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दोनों के ही करीबी रह चुके थे। आपातकाल के बाद, 1977 में कांग्रेस जब दो पार्ट में विभाजित हुई तब नरसिम्हा राव ने इंदिरा गांधी का पक्ष लिया। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले इंदिरा और राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री का औदा संभाला।
नरसिम्हा राव कैसे बने प्रधानमंत्री?
1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई तब पार्टी शोक में डूब गई। कांग्रेस को उस समय ऐसे नेता की जरुरत थी जो पार्टी का भार संभाल सके। पीवी नरसिम्हा राव कांग्रेस के वरिष्ठ और दिग्गज नेता थे, उनके पास राजनीति और मंत्रिमंडल का अच्छा अनुभव था। उस समय सोनिया गांधी ने भी पार्टी की बागडोर संभालने से इनकार कर दिया था। इसलिए पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने।
कैसे बदली देश की आर्थिक स्थिति?
पीवी नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया जिसने देश की राजनीति के साथ-साथ देश की आर्थिक रणनीति को भी बदल दिया। साल 1991 में देश के वित्त मंत्री थे डॉ. मनमोहन सिंह जो कि 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री बने। उस समय देश के ऊपर करोड़ों का कर्जा चढ़ गए। अन्न के नाम पर शून्य था। देश की अर्थव्यवस्था पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी नीचे गिर गई थी। तब पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) के पास मदद की गुहार लगाई। IMF ने भारत को अर्थव्यवस्था की नीति को बदलने का सुझाव दिया। आर्थिक तंगी से परेशान होकर नरसिम्हा राव सरकार ने Globalization, Privatization और Liberalization पोलिसी को हरी झंडी दिखाई। उसके बाद विदेशों से लोगों ने भारत में निवेश करना शुरु किया। आज देश की आर्थिक स्थिति पूरी दुनिया में छटें स्थान पर है। इसका श्रेय पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह को जाता है।
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