Lok Sabha Election: योगी के गढ़ में इस बार भी जारी रहेगा रिकॉर्ड या बदलेगी सत्ता? जानें गोरखपुर का इतिहास

Uttar Pradesh News: साल 1998 में महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से संयास ले लिया और अपनी विरासत अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया। तभी से यहां BJP का उदय हुआ।
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। लोकसभा चुनाव की तारीखों का बिगुल बज चुका है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर लोकसभा सीट को BJP ने पिछले 25 सालों से अपने खाते में कर लिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गृह भूमि गोरखनाथ की सबसे खास बात ये है कि गुरु गोरक्षनाथ के आशीर्वाद के बिना इस सीट को अपने नाम पर करना मुश्किल है।

कांग्रेस और गोरखपुर का कैसा रहा रिश्ता?

बात अगर करें गोरखपुर के इतिहास की तो देश में आजादी के बाद लगातार 3 लोकसभा चुनाव तक यहां कांग्रेस का बिगुल बजा। इसके बाद साल 1967 में कांग्रेस पार्टी की अंदरुनी समस्याओं का असर इस सीट पर भी नजर आया। गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने कांग्रेस के शिब्बल लाल सक्सेना को रिकार्ड मतों से पराजित कर पहली बार इस सीट पर पीठ की उपस्थिति दर्ज कराई। कांग्रेस ने अंदरुनी कलह पर नियंत्रण की कवायद तेज की तो उसके सकारात्मक परिणाम मिले। अगले चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर नरसिंह नारायण को प्रत्याशी बनाकर सीट कब्जा ली।

इंदिरा गांधी काल में गोरखपुर ने ऐसे रचा इतिहास

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में 1975 में जब देश में इमरजेंसी लगा दी गई तब से कांग्रेस का इस सीट पर और बुरा हाल हो गया। 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को न सिर्फ गोरखपुर जबकि पूरे देश में हार का सामना करना पड़ा। इमरजेंसी से नाराजगी का असर चुनावों के परिणाम में साफ दिखाई दिया। भारतीय लोकदल के प्रत्याशी हरिकेश बहादुर ने कांग्रेस को पछाड़कर इस सीट पर जीत दर्ज की। हरिकेश बहादुर ने 5 साल के अंदर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। इसके बाद हरिकेश बहादुर कांग्रेस (आई) से दोबोरा जीत दर्ज की। साल 1984 में इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर उमड़ पड़ी। गोरखपुर सीट पर एक बार फिर कांग्रेस ने अपनी छाप छोड़ी। कांग्रेस प्रत्याशी मदन पांडेय ने आसानी से इस सीट पर अपनी जीत दर्ज की।

इस दौर से शुरु हुआ BJP का उदय

जब लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन का आह्वाहन किया तब ही से गोरखनाथ की हवा दिशा बदल गई। इसी के साथ कांग्रेस का किला भी ध्वस्त हो गया और BJP का कमल खिल गया। साल 1989 में नौवीं लोकसभा के चुनाव में गोरक्षपीठ की सक्रियता का असर जनादेश के तौर पर नजर आया। सोशलिस्टों की लहर के बावजूद महंत अवेद्यनाथ अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के टिकट पर जनता दल प्रत्याशी रामपाल सिंह को हराकर पहली बार लोकसभा पहुंचे। उनकी जीत का यह क्रम 1996 तक जारी रहा।

योगी आदित्यनाथ के बाद गोरखपुर हो गई BJP की

साल 1998 में महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से संयास ले लिया और अपनी विरासत अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया। योगी ने लगातार 5 बार सांसद बनकर इस सीट पर पीठ के प्रभाव को इतना मजबूत कर दिया कि लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक भाजपा का डंका बजता रहा। योगी आदित्यनाथ आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनकी नीतियों से पूरे प्रदेश में बड़े-बड़े क्रांतिकारी बदलाव आए। उन्होंने माफिया राज की प्रदेश में कमर तोड़ दी। अब देखना ये है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी BJP अपना इतिहास बरकरार रखेगी।

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