Parakram Diwas: जानें 23 जनवरी को 'पराक्रम दिवस' क्यों मनाया जाता है, यहां पढ़ें नेताजी से जुड़ी खास बातें

New Delhi: स्वतंत्रता संग्राम के महान् नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज जयंती है। देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजाद हिंद फौज और इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की।
Nataji Subash Chandra
Nataji Subash Chandra Raftaar.in

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। देश-दुनिया के इतिहास में 23 जनवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारत के महान क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस के जीवन के लिए खास है। नेताजी के नाम से प्रख्यात सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ओडिशा के कटक में हुआ था। संपन्न बंगाली परिवार में जन्मे सुभाष चंद्र बोस से अंग्रेज थर-थर कांपते थे। उनका पूरा जीवन ही साहस व पराक्रम का उदाहरण है। नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी।

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'

पराक्रम दिवस पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। बच्चों को स्कूल-काॅलेज में इस दिन का महत्व बताया जाता है और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की याद को ताजा किया जाता है। यह वही नेताजी हैं, जिन्होंने नारा दिया था, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'। इस नारे ने भारतीयों के दिलों में आजादी की मांग को लेकर जल रही आग को और अधिक तेज कर दिया था। बोस का संपूर्ण जीवन हर युवा और भारतीय के लिए आदर्श है।

नेताजी ने भारत की आजादी की जंग विदेशों तक पहुंचाई

नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए बोस इंग्लैंड पढ़ने गए लेकिन देश की आजादी के लिए प्रशासनिक सेवा का परित्याग कर स्वदेश लौट आए। यहां उन्होंने आजाद भारत की मांग करते हुए आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज का गठन किया। इतना ही नहीं उन्होंने खुद का आजाद हिंद बैंक स्थापित किया। इसे 10 देशों का समर्थन मिला। उन्होंने भारत की आजादी की जंग विदेशों तक पहुंचाई।

नेताजी के जीवन पर कई फिल्में और वेब सीरीज बनी

नेताजी के जीवन पर कई फिल्में और वेब सीरीज बन चुकी हैं। ऐसी ही एक फिल्म समाधि (1950) है। डायरेक्टर रमेश सहगल की इस फिल्म में फ्रीडम फाइटर्स के स्ट्रगल और सोच को दिखाया गया है। इस कड़ी में पीयूष बोस की बंगाली फिल्म सुभाष चंद्र (1966) भी अहम है। एक अन्य फिल्म नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो (2004) है। इसमें सचिन खेड़ेकर नेताजी की भूमिका में हैं। फिल्म की कहानी महात्मा गांधी और नेताजी के बीच जर्मनी से जाने के मामले पर हुई असहमति पर केंद्रित है।

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