जब 'PoK हमारा है' के नारों से गूंज उठा था संसद भवन, क्यों खास है जम्मू-कश्मीर; जानें क्या है आज का इतिहास

New Delhi: आज ही के दिन संसद भवन में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने प्रस्ताव पारित करके संकल्प व्यक्त किया था कि पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू और कश्मीर भारत का अटूट अंग है।
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नई दिल्ली, विकास सक्सेना (हि.स.)। बीते कुछ वर्षों में देश की सामरिक और विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं। पड़ोसी देशों के दुस्साहस का सीमा पर हमारी सेना मुंहतोड़ जवाब दे रही है तो दूसरी ओर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर सार्थक कूटनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं।

PoK में रह रहे लोगों के मानवाधिकारों को रौंदा जा रहा

दुनियाभर में भारत की साख और प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। इसके बावजूद हमारे देश का बड़ा भू-भाग और उसमें रह रहे नागरिक पाकिस्तान और चीन के कब्जे में हैं। इन क्षेत्रों में रह रहे हमारे नागरिक नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। पाकिस्तान की सेना यहां के बाशिंदों के मानवाधिकारों को आए दिन रौंदती रहती है। हालांकि 3 दशक पहले देश की संसद ने इन क्षेत्रों को दोबारा हासिल करने का संकल्प पारित किया था। लेकिन संसद द्वारा पारित इस संकल्प की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जाने का लोगों को बेसब्री से इंतजार है।

आज ही के दिन संसद में कौन-सा प्रस्ताव पारित हुआ?

देश के इतिहास में 22 फरवरी, 1994 का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन हमारी संसद ने ध्वनिमत से एक प्रस्ताव पारित करके संकल्प व्यक्त किया था कि पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू और कश्मीर भारत का अटूट अंग है। पाकिस्तान को वह हिस्सा छोड़ना होगा जिस पर उसने कब्जा जमा रखा है। संसद में पारित इस संकल्प में पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकी शिविरों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। और कहा गया कि भारत में अशांति, वैमनस्य और विध्वंस पैदा करने के स्पष्ट उद्देश्य से पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकियों को प्रशिक्षण देने के साथ उन्हें हथियार और धन मुहैया कराया जा रहा है। इसके अलावा भारत में घुसपैठ करने के लिए भी आतंकियों की मदद की जा रही है।

इन चार बिंदुओं पर लिया संकल्प

प्रस्ताव में चार बिंदुओं में संकल्प व्यक्त करते हुए कहा गया कि यह सदन भारत की जनता की ओर से घोषणा करता है कि पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। भारत अपने इस भाग के विलय का हरसंभव प्रयास करेगा। दूसरे बिंदु में कहा गया है कि भारत में इस बात की पर्याप्त क्षमता है कि वह उन अलगाववादी और आतंकवादी शक्तियों का मुंहतोड़ जवाब दें, जो देश की एकता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ हों। तीसरे बिंदु में मांग की गई है कि पाकिस्तान जम्मू कश्मीर के उन क्षेत्रों को खाली करे, जिन्हें उसने कब्जाया और अतिक्रमण किया हुआ है। चौथे बिन्दु में स्पष्ट तौर पर चेतावनी दी गई भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी तरह के हस्तक्षेप का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

शिमला समझौता

कुछ लोगों का कहना है कि शिमला समझौते के चलते भारतीय संसद द्वारा पारित इस संकल्प के कोई मायने नहीं हैं। दरअसल 1972 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते में नियंत्रण रेखा (एलओसी) को दोनों देशों के बीच सीमा के रूप स्वीकार करने की ऐतिहासिक भूल हुई थी।

जानकारों का मानना है कि शिमला समझौते का कूटनीतिक समझदारी से प्रयोग करके पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर को दोबारा भारत में शामिल किया जा सकता है। शिमला समझौते में दोनों देशों ने तय किया था कि वे इन विवादों को आपसी बातचीत से हल करेंगे। इन्हें अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन पाकिस्तान लगातार इस शर्त का उल्लंघन करता रहता है यानी उसने खुद शिमला समझौता तोड़ दिया है।

PoK कश्मीरी नहीं जम्मू का है भाग

इसके अलावा यहां सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि हम जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी (पीओके) और पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है वह कश्मीर का हिस्सा है ही नहीं वह तो जम्मू का भाग है। वह न तो कश्मीर का अंश था और न ही इस रूप में उसका समझौता हो सकता था। पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर की भाषा भी कश्मीरी नहीं थी यहां के लोग जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वह डोगरी और मीरपुरी का मिश्रण है।

ऐसे जम्मू और कश्मीर का भारत में हुआ विलय

आजादी के बाद लगभग 500 रियासतों का भारत में विलय हुआ लेकिन राजनैतिक नेतृत्व की ढुलमुल नीति के चलते जम्मू और कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया। दरअसल स्वतंत्र राज्य की चाहत में कश्मीर के महाराजा हरी सिंह लम्बे समय तक असमंजस की स्थिति में रहे। निर्णय लेने में देरी के चलते शेख अब्दुल्ला जो पहले भारत के साथ विलय के पक्षधर से उनका मन बदलने लगा और वह स्वतंत्र राज्य की मांग करने लगे। इस बीच पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार और सेना ने कबाइली लड़ाकों के साथ मिलकर कश्मीर पर हमला कर दिया। अत्याधुनिक हथियारों के साथ आए इन हमलावरों ने मानवता को तार-तार करते हुए गैर मुस्लिमों की हत्या, लूटपाट और महिलाओं के साथ बलात्कार शुरू कर दिए। हालात इतने खराब हो गए कि खुद महाराजा हरीसिंह ने श्रीनगर से पलायन कर 25 अक्टूबर 1947 को जम्मू आकर सुरक्षित स्थान पर शरण ली। कश्मीर को बचाने के लिए उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।

पाकिस्तान और चीन ने भारत की जमीन पर किया हुआ है कब्जा

कश्मीर के भारत में विलय के बाद 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सैनिकों का पहला जत्था जम्मू-कश्मीर पहुंचा। उसने बहादुरी से पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों को कश्मीर से बाहर धकेल दिया। हालांकि महाराजा हरी सिंह ने बिना शर्त पूरे कश्मीर का भारत में विलय कर दिया था लेकिन इसे रणनीतिक चूक और नासमझी कहा जाए या अपनी छवि चमकाने की कवायद कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस मामले के संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए सामरिक बढ़त के बावजूद पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र को खाली कराए बिना संघर्ष विराम पर सहमति जता दी गई।

नतीजन जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लगभग 1 लाख 26 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर पाकिस्तान और चीन का अवैध कब्जा है। इसमें मीरपुर मुजफ्फराबाद (जम्मू और कश्मीर) का 14 हजार वर्ग किलोमीटर, गिलगित बाल्टिस्तान (लद्दाख) का लगभग 75 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल है। गिलगित बाल्टिस्तान की शक्सगाम घाटी जिसका क्षेत्रफल लगभग 5600 वर्ग किलोमीटर है को पाकिस्तान ने मार्च 1963 में चीन को उपहार में दे दिया। इसके अलावा 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से लद्दाख के लगभग 37 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है जिसे अक्साई चीन कहा जाता है।

जब विपक्ष ने भारत की सीमा अफगानिस्तान से न लगने की बात कही

तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने 22 फरवरी 1994 को संसद में एकमत से संकल्प पारित किया कि विदेशी कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को वापस लेने के लिए भारत हर संभव प्रयास करेगा। लेकिन संसद में दिसम्बर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून पर चर्चा के दौरान हैरानी तो तब हुई जब कई विपक्षी सांसदों ने भारत की सीमा अफगानिस्तान से न लगने की बात कही। या तो उन्हें भारत की भौगोलिक स्थिति की जानकारी नहीं थी या वे पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र को भूल चुके हैं। उस समय गृहमंत्री अमित शाह ने इन सांसदों को संसद के संकल्प का स्मरण कराया था।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करके और धारा 35ए को हटाकर सरकार ने एक ठोस कदम बढ़ाया है। लेकिन वहां की हालत लगातार जटिल होती जा रही है। आर्थिक गलियारा के चलते इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियां और हस्तक्षेप तेजी से बढ़ा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में रह रहे भारतीय नागरिकों के मानवाधिकारों का पाकिस्तानी फौज बेरहमी से हनन कर रही है। ऐसे में भारत सरकार को मूकदर्शक बने नहीं रहना चाहिए। इन भारतीय नागरिकों और भारतीय क्षेत्र को भारत में शामिल करने के लिए प्रभावी प्रयास करने चाहिए क्योंकि बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से भारत की साख अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी है उससे पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र में रह रहे लोगों की उम्मीदें जगी हैं कि उन्हें नारकीय जीवन से आजादी मिलेगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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