CAA को IUML ने बताया "असंवैधानिक", सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

Citizenship Amendment Act: CAA (नागरिकता संशोधन कानून)अधिसूचना का मामला तूल पकड़ता नजर आ रहा है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है।
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। CAA (नागरिकता संशोधन कानून)अधिसूचना का मामला तूल पकड़ता नजर आ रहा है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है। CAA के खिलाफ यह याचिका IUML ने दाखिल की है। आईयूएमएल ने CAA को असंवैधानिक और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया है। आईयूएमएल के अनुसार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रोक का विरोध करते हुए कहा था कि इसका तत्काल कार्यान्वयन नहीं होगा, उन्होंने इसका कारण नियम अधिसूचित नहीं होना बताया था।

CAA असंवैधानिक और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है

आईयूएमएल का कहना है कि CAA असंवैधानिक और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। उन्होंने कहा कि धार्मिक पहचान के आधार पर बांटना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन है। मिली जानकारी के अनुसार आईयूएमएल ही नहीं बल्कि डेमोक्रेटिक यूथ फ्रंट ऑफ इंडिया भी CAA के खिलाफ इसकी वैधता को लेकर अपनी पेंडिग याचिका की सुनवाई की मांग कर सकता है।

पूरे देश में CAA लागू

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) में 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में बसे बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों सहित प्रताड़ना झेल चुके गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देना है। यह कानून दिसंबर 2019 में संसद से पारित हो गया था। इसे राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई थी। विधेयक भारत में किसी भी अल्पसंख्यक के खिलाफ नहीं है और प्रत्येक भारतीय नागरिक के अधिकारों को समान रूप से संरक्षित किया जाएगा। CAA लागू होने के बाद लोकसभा चुनाव से पहले केन्‍द्र सरकार का यह बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है।

क्या है CAA?

CAA को दिसंबर 2019 में लोकसभा में कानून बन गया था। इसका उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करना है। विशेष रूप से यह इन देशों से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता की पात्रता प्रदान करने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करना चाहता है।

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