CEC Appointment Bill: राज्यसभा में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा बिल पेश, विपक्ष का विरोध, जानें मामला

CEC Selection Bill: गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया गया। तमाम विपक्षी दलों ने इसका जमकर किया विरोध।
CEC Selection Bill
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। राज्यसभा में गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और पदावधि विधेयक, 2023 पेश किया गया। विधेयक के पेश होते ही इसका तमाम विपक्षी दलों ने इसका जमकर विरोध करना शुरू कर दिया। विपक्षी दलों ने कहा सरकार इस बिल से चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास कर रही है। इस विधेयक पर राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। बिल के अनुसार आयुक्तों की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा। जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और कैबिनेट के मंत्री शामिल होंगे।

विपक्षी दलों ने किया विरोध

गौरतलब है कि राज्यसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया। इसके बाद इस बिल का विरोध शुरू हो गया। कांग्रेस ने सीईसी और ईसी की नियुक्ति वाले विधेयक को असंवैधानिक बताया और अनुचित करार दिया। कांग्रेस के संगठन के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने कहा कि पार्टी इसका हर मंच पर विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग को पूरी तरह से प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का खुला प्रयास है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी को घेरते हुए कहा कि कहा कि उनका सुप्रीम कोर्ट में विश्वास नहीं है। केजरीवाल ने पीएम पर बिल के जरिए लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाया। वहीं टीएमसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य साकेत गोखले ने कहा, 'भाजपा खुलेआम 2024 के चुनावों के लिए धांधली कर रही है।' उन्होंने आरोप लगाया, मोदी सरकार ने एक बार फिर बेशर्मी से उच्चतम न्यायालय के फैसले को कुचल दिया और आयोग को अपनी कठपुतली बना रही है।

बिल पर सरकार का क्या है पक्ष?

शुक्रवार को केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी है। मेघवाल ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में फैसला दिया था इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कानून लेकर आए है। उन्होंने कहा नए बिल में हम एक सर्च कमेटी बना रहे हैं जिसका नेतृत्व कैबिनेट सचिव करेंगे। उसके बाद, एक चयन समिति होगी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करेंगे। इसमें गलत क्या है?'

क्या है इस बिल में?

  • इस बिल में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया, उनकी सेवा शर्तों और पदावधि के बारे में नए नियम का उल्लेख है।

  • इस बिल में चुनाव आयोग में शीर्ष पदों के लिए चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की ओर से करने का प्रावधान है, जिसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक नोमिनेटेड कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे।

  • इस बिल के अनुसार चयन समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे और यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता यह भूमिका निभाएगा।

  • विधेयक में प्रमुख प्रावधानों में कहा गया है कि चयन समिति अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से रेगुलेट करेगी।

  • मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक जो पहले पूरा हो, रहेगा।

  • इस बिल के अनुसार चुनाव आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के समान होगा।

  • इस बिल के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त दोबारा नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।

  • इस बिल में एक सर्च कमेटी का भी जिक्र है, जो कि समिति के विचार के लिए पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। इस कमेटी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे।

इस बिल से पहले क्या था नियम?

आपको बता दें अभी तक मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर देश में कोई कानून नही है। नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया केंन्द्र सरकार के हाथ में थी। अभी तक की प्राक्रिया में सचिव स्तर के मौजूद या रिटायर हो चुके अधिकारियों की एक सूची तैयार किया जता था। इसके बाद इस सूची के आधार पर तीन नामों का एक पैनल तैयार कर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास विचार के लिए रखा जाता था। इसको बाद प्रधानमंत्री उन अधिकारियों से बात कर के उसमें से एक नाम राष्ट्रपती को भेजते है। इसके साथ प्रधानमंत्री एक नोट भेजते थे जिसमें उस व्याक्ति के चुनाव आयुक्त चुने जाने की वजह बताई जाती है। इसी प्रक्रिया से चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त का चुनाव किया जाता था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने आदेश दिया था- PM, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और CJI का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर इस पर लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्राक्रिया तब तक लागू रहेगी, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती। चयन प्रक्रिया CBI डायरेक्टर की तर्ज पर होनी चाहिए। कोर्ट ने इस ममले पर टिप्पणी करते हुए कहा था- लोकतंत्र चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनी रहनी चाहिए। नहीं तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। लोकतंत्र में वोट की ताकत सबसे सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि यह अपनी ड्यूटी संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।

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