जहां छठ में उमड़ती थी लाखों की भीड़, वहां पसरा है मातमी सन्नाटा
जहां छठ में उमड़ती थी लाखों की भीड़, वहां पसरा है मातमी सन्नाटा

जहां छठ में उमड़ती थी लाखों की भीड़, वहां पसरा है मातमी सन्नाटा

- गलत राजनीति के कारण थम गया भरौल छठ महोत्सव का सिलसिला बेगूसराय, 19 नवम्बर (हि.स.)। बेगूसराय जिले के सुदूर देहात में मक्के व सरसों के खेतों में विगत 12 वर्षों से लोक आस्था के महापर्व के मौके पर सामाजिक समरसता , जातीय विषमताओं को दूर कर एवं धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सजने वाला सांस्कृतिक मंच भरौल छठ महोत्सव राजनीतिक विद्वेष की भेंट चढ़ गया। दीपोत्सव के तुरंत बाद भरौल की ओर जाने वाली हर सड़क आगंतुकों के स्वागत में सज-संवर कर पिछले 12 वर्षों से तैयार रहती थी। बेगूसराय ही नहीं कई जिले के लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती थी। लेकिन इस बार किसी सुहागन के उजड़े सुहाग की भांति सारी सड़कें वीरान पड़ी हैं, पूरा गांव शोकाकुल है। विगत 12 वर्षों में अनुराधा पौडवाल, कुमार सानू, अलका याज्ञनिक, मोहम्मद अजीज, लखबीर सिंह लक्खा, विपिन सचदेवा, बाबुल सुप्रियो, सपना चौधरी, सुदेश भोसले, मनोज तिवारी मृदुल, हंसराज हंस समेत देश के कई अन्य नामी-गिरामी कलाकार यहाँ आ चुके हैं। लेकिन पिछले साल सारी तैयारियों के बाद अंतिम समय में प्रशासन ने इस पर रोक लगा दी जिसके बाद से सभी लोग उदास पड़े हुए हैं। इस बार भी कोई कार्यक्रम नहीं किया गया। इससे ग्रामीणों में दुख और आक्रोश है। भरौल छठ महोत्सव के आयोजक सुभाष कुमार ईश्वर उर्फ कंगन ने कहा कि सांस्कृतिक धरोहरों के लिए भारत के वैश्विक पटल पर इसकी अहम पहचान रही है। इसका संरक्षण हमारे लिए बहुत जरूरी है। विरासत वर्षों से अर्जित की गई सम्पदा होती है और यह हमारे अलग-अलग दौर के इतिहास की गवाह होती है। राजनीति की खातिर धरोहरों को बर्बाद नहीं होने देना चाहिए। धरोहरों का संरक्षण ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि धरोहरों का निर्माण दोबारा नहीं हो पाता है। हरेक नागरिक का धरोहर संरक्षण का दायित्व होता है, यह उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी में शामिल है। भरौल छठ महोत्सव बेगूसराय की उसी सांस्कृतिक धरोहर का एक हिस्सा था जिसपर बेगूसराय के तथाकथित बुद्धिजीवियों एवं राजनेताओं की शह पर प्रशासनिक पदाधिकारियों ने रोक लगा दी , जो बेगूसराय की ही नहीं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के लिए भी शोक का विषय बना। आयुष ईश्वर ने कहा कि एक ओर जहां सरकार लोक आस्था के महापर्व छठ के मौके पर विभिन्न प्रकार की तैयारियों के माध्यम से जनजन से आत्मीय लगाव बनाकर सम्पूर्ण सूबे के गौरवशाली इतिहास को सुदृढ़ता प्रदान करने का काम कर रही है वहीं बेगूसराय ही नहीं बल्कि संपूर्ण बिहार में ख्याति प्राप्त कर चुके ऐसे कार्यक्रम का रुकना दुर्भाग्यपूर्ण है। भरौल के ग्रामीणों ने कहा कि हमारा गांव आगंतुकों के स्वागतार्थ हर्षोल्लास से तैयारियां करता था, उस हर्षोल्लास की हत्या की गई है, जिसके परिणाम दुखदायी होंगे। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/विभाकर-hindusthansamachar.in

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