क्या हैं कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' देने के सियासी मायने?

Karpoori Thakur Jayanti: कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने से उनके समर्थक, बिहार के पिछड़े और गरीब वर्ग के लोग काफी खुश नजार आ रहें है, जिसका फायदा भाजपा को लोकसभा चुनाव 2024 में मिल सकता है।
क्या हैं कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' देने के सियासी मायने?

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। बिहार के बड़े समाजवादी नेताओं में शुमार और पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को केंद्र सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया है। कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में भी रही है। कर्पूरी ठाकुर की मौत के 36 साल बाद उनको देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' देने का फैसला लिया गया है। आज 24 जनवरी को कर्पूरी जयंती है और उससे एक दिन पहले केंद्र सरकार ने यह एलान कर के बड़ा राजनीतिक दांव खेल दिया है।

कौन थे कर्पूरी ठाकुर?

कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक बेहतर राजनेता भी थे। कर्पूरी ठाकुर वो समाजवादी नेता रहे हैं जिन्होंने समाज के पिछड़े और गरीब वर्गों के लोगों को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई थी। कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। पहली बार वे 22 दिसंबर 1970 से 02 जून 1971 तथा दूसरी बार 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के सीएम पद पर रहे थें। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। बिहार की सियासत में कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता रहा है।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म

कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में हुआ था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म एक साधारण नाई परिवार में हुआ था। इनके नाम पर ही उनके गांव के नाम से कर्पूरी ग्राम स्टेशन का नाम पड़ा था। कर्पूरी ठाकुर ने अपना सामाजिक जीवन देश के स्वतंत्रता संघर्ष से शुरू किया था। वे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 26 महीने जेल में भी रहे थे। कहा जाता है कि कर्पूरी ठाकुर ने पूरी जिंदगी कांग्रेस की विचारधारा का विरोध किया था। उनकी राजनीति में कांग्रेस के विरोध ने उनको अलग-अलग सियासी मुकाम तक पहुंचाया था। आपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार करवाने में असफल रहीं थीं।

कर्पूरी ठाकुर के कार्य

कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी थी। इसके साथ उन्होंने राज्य के सभी विभागों में काम काज को हिंदी में करने के लिए अनिवार्य बना दिया था। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आया था। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए थे। कर्पूरी ठाकुर ने देश में पहली बार पिछड़ों और अति पिछड़ों को आरक्षण दिया था। 1978 में उन्होंने पिछड़ों और अति पिछड़ों के लिए अलग-अलग आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी। उन्होंने अति पिछड़ों के लिए 12 प्रतिशत, पिछड़ों के लिए 08 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। वहीं, गरीब सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की थी। कर्पूरी ठाकुर बिहार के मौजूदा दौर के राजनेताओं लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरू माने जाते हैं।

क्या है कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के सियासी मायने?

बिहार में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के कई सियासी मायने भी निकाले जा रहें है। कोई भाजपा के इस कदम को राजनीति से प्रेरित बता रहा है, तो कोई इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जता रहा हैं। लेकिन इस फैसले के बाद बिहार की सियासत में चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोगों का कहना है कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर भाजपा बिहार के पिछड़े और OBC वोट बैंक को साधन चाहती है। ऐसे में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने से उनके समर्थक, बिहार के पिछड़े और गरीब वर्ग के लोग काफी खुश नजार आ रहें है, जिसका फायदा उन्हें लोकसभा चुनाव 2024 में मिल सकता है।

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