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गायत्री शक्तिपीठ में लाइव प्रसारण के माध्यम से परिष्कार सत्र का हुआ आयोजन

सहरसा,23 मई (हि.स.)। गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को मुख्य ट्रस्टी द्वारा यूट्यूब लाइव प्रसारण के माध्यम से व्यक्तित्व परिष्कार सत्र आयोजित किया गया। डाॅ अरूण कुमार जायसवाल ने कहा 26 मई को बुद्ध पूर्णिमा के दिन पूरे भारतवर्ष में सुबह 8 से 11बजे तक यज्ञ हवन अनुष्ठान का कार्यक्रम है। बैक्टिरिया, वायरस,फंगस के नाश के लिए यह कार्यक्रम चलेगा।क्योकि यज्ञ करने से सूक्ष्म विषाणु का परिशोधन होता है।भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है,इस सृष्टि का निर्माण यज्ञ से हुआ है।यज्ञ का मतलब सिर्फ हवन कुंड समिधा की आहुती नहीं है बल्कि दान,देव पूजन और संगति करना है।हम देना सीखें।लोग अधिकार की बातें करते हैं।सिर्फ प्रकृति का दोहन व शोषण करते हैं लेकिन पोषण की बात नहीं करते हैं।इसलिए आज यह स्थिति है।यज्ञ में अपने बुराई को छोड़ना है।यज्ञ में पैसा चढ़ाने का कोई अर्थ नही है।बल्कि अपने दुष्पवृति को चढ़ाना, अपने आलस,प्रमाद,क्रोध को चढ़ाना और अपनी आस्था को बढ़ाना है नहीं तो आज नरपिशाच वायरस ताण्डव कर रहा है। उन्होंने कहा की आज का इन्सान हैरान परेशान और लाचार ज़िन्दगी जी रहा है। क्योकि वह मौज के लिए जी रहा है।सच यह है कि इन्सान मौज करने के लिए जीता है।अपने जीवन का विनाश कर रहा है।उसका विनाश हो रहा है।परिवार का विनाश हो रहा है।लगता है सबकुछ नष्ट हो जायेगा।कल कौन जिन्दा रहेगा पता नहीं।यह ईश्वरीय कृपा ही है कि हमलोग जी रहे हैं नहीं तो कई लोग सावधानियां बरतने के बाबजुद इस दुनिया से चले गए।इसलिए ईश्वरीय कार्य में बुद्ध पूर्णिमा के दिन हाथ बटाएँ और यज्ञ करें।उन्होंने कहा सुख की परिणति ही दुख में होती है।उससे भी कर्म का क्षय नहीं होती है।हमे प्रारब्ध को क्षय करना चाहिए। महत्त्वहीन हो जाना सबसे महत्वपूर्ण बात है।भोग जितना बढ़ेगा रोग उतना बढ़ेगा। जीवन का उद्देश्य सुख भोगना नहीं है।आध्यात्म पथ पर चलना सहयोग प्राप्त करना नहीं है।सहयोग आपका और आशीर्वाद परमात्मा का।सुख अलग है आवश्यकता अलग है।सुख में लगातार वृद्धि करते रहना यह प्रकृति विरोधी बात है।जब जीवन की उद्देश्य की प्राप्ति हो जाय तो संतुष्टि प्राप्त होती है।जीवन के समझ केअनुसार संतुष्टि निर्भर करती है। उन्होंने कहा परम पुज्य गुरूदेव कहते हैं कोई भी ग्रह आत्मबल से प्रबल नहीं होता है।अगर ग्रह का प्रभाव है तो जप करें,दान करें शांत रहे और तप करें।ग्रह की उपस्थिति शरीर तक रहती है ज्यादा से ज्यादा मन तक।और आत्मा की उपस्थिति असीम तक होती है यानि परमात्मा तक होती है।कोई भी ऐसी चीज नहीं हैं मनुष्य की आत्मा को बांध सके। हिन्दुस्थान समाचार/अजय

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