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गायत्री शक्तिपीठ में परिष्कार सत्र का आयोजन

सहरसा,06 जून (हि.स.)। गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव प्रसारण के माध्यम से रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन किया गया। सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य ट्रस्टी डाॅ अरूण कुमार जायसवाल ने जीवन और मृत्यु के संबंध में कहा कि पूरे जीवन हम मौत का इंतजार करते हैं।हमें कौन सा जीवन कैसी उपलब्धि मिली। भारतीय संस्कृति में भारतीय दर्शन में आदिकाल से "जीवन" मृत्यु से जुड़ा है।परन्तु आज कोरोनाकाल में मृत्यु से भय लगता है।यह दौर भी गुजर जायेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना से पैतीस प्रतिशत लोग त्रस्त और भयभीत हैं। वहीं 27 प्रतिशत लोग डिप्रेशन में है और सर्वे के अनुसार 95 प्रतिशत लोग ठीक हो रहे हैं और मात्र एक प्रतिशत लोग मर रहे हैं। भारत के पुराने आध्यात्मिक ज्ञान,पश्चिम के आधुनिक मनोविज्ञान- भय को घातक मानते हैं निरोलाॅजिस्ट और साइकोलाॅजिस्ट सभी का एक मत है की सकारात्मकता से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।इसपर पहले से हीं रिसर्च है और अभी और भी ज्यादा रिसर्च हो रहा है।कहा गया अगर जब मौत का खौफ हो डर होता हो तो ऐसे में हम प्रार्थना करते हैं,कर्म करते हैं।अगर हमारा कर्म सही है,हम सत्कर्म करते हैं तो अंदर से भय नहीं रहता है।एक ठोस चिंतन होता है,एक ठोस विचार होता है तो हम घबराते नहीं हैं,खोखले नहीं होते हैं,बीमार नहीं पड़ते हैं। उन्होंने कहा हमारे जीवन की व्यवस्था प्रकृति करती है।प्रकृति हमारे कर्मो की नियामक और नियन्ता है।प्रकृति हम से कर्म नहीं कराती है।हमें कर्म फल प्रदान करती है।प्रकृति के साथ हम चलें,प्रकृति के साथ हमारा सहजीवन होना चाहिए। यह महामारी हम पर भारी नहीं पड़ेगा अगर हम प्रकृति के साथ सहचर्य करेंगे। जियेगें जितना हमें जीने का हक है।उक्त बातों की जानकारी गायत्री शक्तिपीठ के वरिष्ठ सदस्य श्यामा नन्द लाल दास ने दी। हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा

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