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गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव प्रसारण से परिष्कार सत्र का आयोजन

सहरसा,20 जून(हि.स.)।गायत्री शक्तिपीठ में यूट्यूब लाइव प्रसारण के माध्यम से रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र एवं गायत्री जयंती, गंगा दशहरा और महाप्रयाण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर डॉक्टर अरूण कुमार जायसवाल ने सत्र को संबोधित करे हुए कहा की आज का दिन हम सभी गायत्री परिवार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अतुलनीय है।आज के दिन हीं धरती पर सद ज्ञान की देवी, सद्बुद्धि की देवी हमारे प्राण का त्राण करनेवाली हमे अनगढ से सुगढ बनानेवाली माँ गायत्री का प्रकटीकरण हुआ था।आज गंगा दशहरा भी है।गंगा-त्रिपदगा हैऔर गायत्री त्रिपदा है।गंगाजल मूर्ति "है और गायत्री "शब्द मूर्ति" है।जब हम गंगा की चेतना की अनुभूति करते हैं ठीक वही अनुभूति गायत्री से करते हैं। आज के दिन ही हमारे गायत्री परिवार के जनक !वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं.श्री राम शर्मा आचार्य जी अस्सी साल की जिन्दगी जी कर 1990 में अपनी चेतना को माँ गायत्री के चेतना में विलिन कर दिए। उन्होंने कहा विश्वामित्र अपने उन्माद को देखा, अपने अंदर की चेतना की अनुभूति किए।विश्वामित्र अपनी भूलों से सीखा,अपने अहंकार को विसर्जित किया।विश्वामित्र अहंकार के उन्माद को भी देखा और अहंकार के विसर्जन को भी देखा।उन्होंने क्षत्रित्व को ब्रह्मणत्व में परिवर्तित किया।और विश्वरथ से विश्वामित्र बने। संसार के दोस्त बने।यानी अपने अंदर के आत्मतत्व की अनुभूति को देखा और अहंकार का विसर्जन किया तथा नये सृष्टि की रचना की।उन्होने फिर सोचा बाहर कुछ कुछ करने से कुछ घटित नहीं होता, जबतक आंतरिक परिवर्तन न हो तबतक बाहर की विभूतियां ,वैभव सभी हम समेट लें।हम छूंछ के छूंछ हीं रहेंगे,खाली के खाली हीं रहेंगे,रिक्त हीं रह जायेंगे।विना विश्वामित्र बने कल्याण नहीं होगा यानी विश्व के मित्र बने।विश्वरथ और विश्वामित्र में फर्क है।गायत्री के ऋषि विश्वामित्र कहे जाते हैं। गायत्री मंत्र का उद्भव है बक्सर यहीं विश्वामित्र का आश्रम है जिसे सिद्धाश्रम बोलते हैं।यहां भगवान राम और लक्ष्मण ने "बला"और "अतिबला"शक्ति प्राप्त की थी।गायत्री मंत्र का उदघोष बिहार के धरती से हुआ और पूरे विश्व में गया।पूरे विश्व को ज्ञान देने का काम बिहार से हुआ। इस प्रकार हम कह सकते हैं।ज्ञान की देवी गायत्री मंत्र का उदघोष बिहार से हुआ जैसे कि लोकतंत्र का उदघोष बिहार के वैशाली से हुआ। उन्होंने कहा विश्वरथ का मतलब होता है विश्व हमारी जागीर है।विश्वामित्र बनने का मतलब है अपने आत्मा को विश्व के रूप मेंअनुभव करना वैश्विक एकता की अनुभूति है।सार विश्वामित्र बनने में नहीं विश्वरत बनने में है।अंत में गंगा दशहरा और गायत्री जयंती का देव पूजन शक्तिपीठ की देवकान्याओं ने करवाई। पूजनोपरान्त व्यक्तित्व परिष्कार सत्र मे कहा की एक शिक्षक होते हैं जो बताते हैं संसार में कैसे सफल हों और एक गुरू होते हैं जो जीवन विद्या सिखाने का काम करते हैं। जीवन जीने की कला हमें आना चाहिए। आज एक समस्या है भावनात्मक अस्थिरता। इसके लिए प्राण उर्जा बढाईये। प्राण उर्जा बढाने के लिए गायत्री मंत्र का जप कीजिए। गय-मतलव " प्राण"और"त्रय"मतलव त्राण करने वाली। प्राण उर्जा को बढाने वाली। गायत्री मंत्र प्राण उर्जा को बढाने वाली है।उन्होने कहा संसार से एक दिन हर रिश्ते को विदा होना ही पड़ता है,इसके लिए आपके अंदर संसार और सांसारिकता के समझने के लिए शक्ति है तो समझ लीजिए। हिन्दुस्थान समाचार/अजय

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