श्राद्ध भोज, पितरों के सम्मान में किए जाने वाला सर्वोत्कृष्ट अनुष्ठान : शंकराचार्य
दरभंगा, 25 फरवरी (हि.स.)।गोवर्धन मठ- पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद् गुरु शंकराचार्य श्री श्री 1008 निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है और मृत्यु या श्राद्ध भोज अपने पितरों के सम्मान में किया जाने वाला सर्वोत्कृष्ट अनुष्ठान है।इसके माध्यम से ही हमारी पितरों को भोजन की प्राप्ति होती है। गुरुवार को टटुआर गांव में अरुण कुमार झा के दलान पर आयोजित धर्म दर्शन संगोष्ठी के दौरान अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि मृत्यु भोज का विरोध करने वाले लोगों को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। उन्हें अपने ज्ञान का विकास करने की भी निहायत जरूरत है। उन्हें पाश्चात्य संस्कृति का पिछलग्गु बनकर निराधार अपना विचार थोपने की बजाय अपने गौरवशाली सनातन धर्म में निहित विचारों, सिद्धांतों एवं पुरातन समय से चली आ रही परंपराओं का अनुसरण करने की जरूरत है। श्रीमद् गुरु शंकराचार्य ने अंतरजातीय विवाह के बढ़ते चलन पर निराशा व्यक्त करते कहा कि अंतरजातीय विवाह को संस्कृति या संस्कार कभी भी नहीं माना जा सकता। हां, इसे मैरिज शब्द भले दे सकते हैं लेकिन परिणय संस्कार में निहित भावों का निरूपण इसमें कदापि नहीं हो सकता। उन्होंने अंतरजातीय विवाह को शास्त्र विरूद्ध बताते कहा कि ऐसे विवाह में मैडम या वाइफ नामक प्राणी की प्राप्ति तो हो सकती है, लेकिन इसमें पत्नी का स्थान कथमपि प्राप्त नहीं हो सकता। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि यह परम सत्य है कि लोग आपको उसी समय तक याद करते हैं जब तक आपकी सांसें चलती हैं। इन सांसों के रुकते ही आपके क़रीबी रिश्तेदार, दोस्त और यहां तक की पत्नी भी दूर चली जाती है। सत्य को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी कोई भाषा नहीं होती। इसकी भाषा मनुष्य द्वारा बनाई गई है, लेकिन सत्य कभी भी मनुष्य का निर्माण नहीं हो सकता। इसे प्रमाणित करने के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं होती, बल्कि अंत: मन से इसे महसूस किया जाता है। इस कार्यक्रम में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ शशि नाथ झा ने विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव बैद्यनाथ चौधरी बैजू, मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा, जहानाबाद के पूर्व सांसद डॉ अरुण कुमार, समाजसेवी दुर्गानंद झा, प्रो चन्द्रशेखर जा बूढ़ा भाई आदि भी उपस्थित हुए। हिन्दुस्थान समाचार/मनोज