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कला के माध्यम से संस्कार जागृत करती है संस्कार भारती :राष्ट्रीय मंत्री

बेगूसराय, 17 मार्च (हि.स.)। संस्कार भारती के राष्ट्रीय मंत्री अशोक तिवारी ने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में कहा कि संस्कार भारती कलाकारों को जोड़ता है, उनका वर्कशॉप करवाता है और मंच देता है। इसका मुख्य उद्देश्य केवल कला का ही विकास नहीं, बल्कि कला के माध्यम से भारतीय संस्कारों के प्रति सभी व्यक्ति और समाज के अंदर भाव खरा करना है। बेगूसराय में चल रहे आठवें आशीर्वाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में शामिल होने आए अशोक तिवारी ने कहा कि समाज की संवेदना खड़ी होगी तो कला जीवंत होगा। संवेदना नहीं होने से कला मनोरंजन का माध्यम बनकर रह जाएगा। जब मनोरंजन के भाव को लेकर आते हैं तो हमारे अंदर केवल लेने का भाव आता है, देने का भाव नहीं आता है, देने का भाव संवेदना से होगा। जब तक समाज के अंदर कला को संरक्षण देने का भाव पैदा नहीं होगा, तब तक कला का विकास नहीं होगा। हमारे ऋषि-महात्माओं ने समाज के अंदर संवेदना पैदा करने के लिए कला को जीवंत किया था। हमारा उद्देश्य कला के माध्यम से संस्कार को जागृत करना है। अशोक तिवारी ने कहा कि संस्कार भारती केवल कलाकारों के विकास की दृष्टि से काम नहीं करती है, बल्कि कला और कला प्रेमी को सही दिशा देने के लिए काम करती है। कला मनुष्य के जीवन में संवेदना जागृत करने का माध्यम है, यही कारण है कि भारत की पहचान संस्कृति को लेकर संपूर्ण विश्व में है। यहां की कला संस्कृति समृद्ध है और इसे ऋषि महात्माओं ने जीवन का अंग बनाया तथा बताया था। कला ही एक ऐसा माध्यम है जो मनुष्य को पशुता से मनुष्यता की ओर ले जाता है। यह साधना और लगन है, साधना से ही संवेदना जागृत किया जा सकता है और कला हमारे अंदर संवेदना जागृत करती है तो समाज के अंदर संवेदना जागृत होता है। उन्होंने कहा कि संवेदना के जागृत होने से संवेदनशील होने पर परिवार, गांव, जिला, राज्य, देश और विश्व विकास की ओर जाता है। यही एक माध्यम है जो शांति की ओर ले जाता है। कला संस्कृति को इसी तरह से बढ़ावा मिलता रहे तो बेगूसराय की चर्चा देश नहीं, पूरे विश्व में होगी। बेगूसराय में चल रहे इस राष्ट्रीय महोत्सव में नाटक समाज के अंदर एकता का प्रतीक बनाता है, इसके प्रति नकारात्मक भाव नहीं पैदा होना चाहिए। विविधता में एकता खड़ा करना चाहिए, तभी देश की संस्कृति समाज के सामने आ सकेगी। उन्होंने कहा कि पिछले साल कोरोना के कारण संस्कार भारती की गतिविधि नहीं हो सकी। अभी जून तक देशभर में संगठनात्मक संरचना को मजबूत किया जा रहा है। इस साल होने वाले तीन वर्षीय चुनाव की भी तैयारी हो रही है। जनवरी में गुवाहाटी में तीन दिवसीय शंकरदेव महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें तीन हजार कलाकार शामिल हुए। शंकरदेव ने भारत के संत परंपराओं से अलग हटकर काम किया, तमाम संतो ने सनातन संस्कृति को बढ़ावा दिया। लेकिन शंकरदेव ने एक अलग असमिया संस्कृति को जागृत किया, अध्यात्म को कला के माध्यम से बढ़ावा दिया। संस्कार भारती देश के तमाम राज्यों में इसी तरह के कार्यक्रम कराते रहती है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र

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