किशनगंज, (हि.स.)। बिहार के 40 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक किशनगंज भी है। इस क्षेत्र को कृष्णाकुंज के नाम से भी जाना जाता था। यह क्षेत्र बंगाल, नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं से सटा हुआ है। यहां का खगड़ा मेला पूरे देश में मशहूर है। यहां के नेहरू शांति पार्क, चुर्ली किला लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां से गंगटोक, कलिंगपोंग, दार्जिलिंग जैसे पर्यटन स्थल भी कुछ ही दूरी पर स्थित है। किशनगंज पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं से सटा हुआ है। कभी कृष्णाकुंज कहा जाने वाला यह क्षेत्र आज देश में कश्मीर के बाद दूसरी सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक आबादी वाला जिला है।
अब तक सिर्फ एक बार हिंदू प्रत्याशी को मिली जीत
किशनगंज लोकसभा सीट बहादुरगंज, कोचाधामन अमौर, बायसी, किशनगंज और ठाकुरगंज से मिलकर बना है। सीमांचल लोकसभा सीट पर 1957 में लोकसभा सीट बनने के बाद से अब तक एक बार सिर्फ हिंदू प्रत्याशी को जीत हासिल हुई है। 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की लहर चल रही थी तब भी यह सीट भाजपा हार गई थी और तो और इस सीट पर 2019 में भाजपा-जदयू ने जब मिलकर चुनाव लड़ा था तो यही बिहार की वह सीट थी जिसे जदयू के उम्मीदवार को गंवाना पड़ा था। 1967 में इस सीट पर सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से हिंदू उम्मीदवार एलएल कपूर ने जीत हासिल की थी। यहां के अल्पसंख्यक मतदाता ही किसी उम्मीदवार की हार और जीत तय करते हैं। वर्तमान में कांग्रेस से अभी मो. जावेद आजाद यहां के सांसद हैं।
इस सीट से कांग्रेस ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की है
कांग्रेस नेता ने जदयू के उम्मीदवार सैय्यद मोहम्मद अशरफ को 2019 के लोकसभा चुनाव में हराया था। इस सीट से कांग्रेस ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की है। साल 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता असरारुल हक ने लगातार दो बार जीते थे। इसके बाद यहां से कांग्रेस के ही नेता मो. जावेद ने यह सीट पार्टी के झोली में डाली है। 2019 के चुनाव परिणाम की बात करे तो कांग्रेस उम्मीदवार मो. जावेद को 3,67,017 मत मिले हुए थे। जदयू के उम्मीदवार सैय्यद मोहम्मद अशरफ को इस सीट पर 3,32,551 मत ही प्राप्त हुए थे। एआईएमआईएम के प्रत्याशी अख्तरुल ईमान को 2,95,029 मत मिले थे। कांग्रेस उम्मीदवार ने 34,461 मतों से जीत दर्ज की थी। इस सीट पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी के लिए जमकर प्रचार प्रसार किया था। इस वजह से उनकी पार्टी के उम्मीदवार को भी इस सीट पर करीब 3 लाख मत मिले। किशनगंज लोकसभा सीट में 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, अमौर और बैसी विधानसभा सीट है। किशनगंज में जहां एक तरफ 68 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यकों की है, वहीं 32 प्रतिशत के करीब आबादी हिंदुओं की है। ऐसे में इस सीट पर पार्टी कोई भी हो उम्मीदवार अल्पसंख्यक ही होता है और उसका दबदबा बना रहता है।
भाजपा उम्मीदवार शाहनवाज हुसैन ने हासिल की थी जीत
चुनावी इतिहास में बस एक बार लोकसभा चुनाव 1999 में अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व के चलते किशनगंज लोकसभा सीट पर चौंकाने वाला परिणाम आया था। तब त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा उम्मीदवार शाहनवाज हुसैन ने जीत हासिल की थी। फिलहाल किशनगंज में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मो. आजाद हुसैन के बेटे और विधायक से सांसद बने डा. मो. जावेद आजाद ही इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का उम्मीदवार बन सकते हैं। पिता से विरासत में राजनीति पाने वाले आजाद की कांग्रेस में गहरी पकड़ बताई जाती है। किशनगंज में अल्पसंख्यक आबादी में सूरजापुरी का दबदबा रहता है। जिले में अल्पसंख्यक हिंदुओं में जातीय आधार पर यादव, सहनी, शर्मा, पासवान, रविदास, आदिवासी, बाह्रमण, मारवाड़ी और पंजाबी हैं। इसलिए चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टी किशनगंज में अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को प्राथमिकता देती है। बिहार में किशनगंज इकलौता जिला है जहां चाय के बागान हैं। किशनगंज से कुछ ही दूरी पर गंगटोक, कलिंगपोंग, दार्जिलिंग जैसे पर्यटन स्थल हैं। यहां का खगड़ा मेला देश भर में मशहूर है।
किशनगंज को बिहार का चेरापूंजी भी कहा जाता है
पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे कहे जाने वाले किशनगंज को बिहार का चेरापूंजी भी कहा जाता है। किशनगंज सीट का इलाका हरा-भरा और खूबसूरत भी है। एक समय जब यह पूर्णिया का हिस्सा था तो यह वन संपदा से आच्छादित क्षेत्र था यही वजह है कि आज भी यहां हरियाली बरकरार है। इसे पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे भी कहा जाता है। किशनगंज में इतनी हरियाली की वजह से यहां बरसात भी जमकर होती है। इसके बारे में गौर करे कि यहां सूर्यवंशियों का शासन था और इसे सुरजापुर भी कहा जाता है। इसका इलाका पश्चिम बंगाल से सटा है और यही वजह है कि इसकी सियासी जमीन का सीधा असर वहां भी देखने को मिलता है।
इस सीट पर चुनाव जीतने में यें हुए कामयाब
गौर करे कि 1957 में एम. ताहिर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1962- एम. ताहिर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1967-लखन लाल कपूर, पी एस पी, 1971-जमीलुर्रहमान, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1977-हलीमुद्दीन अहमद, भारतीय लोक दल, 1980-जमीलुर्रहमान, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1985- सैयद शहाबुद्दीन, जनता पार्टी, 1989-एम जे अकबर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1991-सैयद शहाबुद्दीन, जनता दल, 1996-मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, जनता दल, 1998- मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, राष्ट्रीय जनता दल, 1999-सैयद शाहनवाज हुसैन, भारतीय जनता पार्टी, 2004-मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, राष्ट्रीय जनता दल, 2009-मोहम्मद असरारुल हक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 2014-मोहम्मद असरारुल हक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और 2019 में मोहम्मद जावेद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं।
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