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बंगाल में पनपने के बजाय , गर्त में गिरी वाममोर्चा और कांग्रेस

बेगूसराय, 02 मई (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बंगाल में हार कर भी जीत गई। भाजपा तीन एमएलए से 83 एमएलए की पार्टी बन गई। हो सकता है कुछ को यह बात अटपटी लगे। लेकिन, चुनाव के सतही और राजनीतिक विश्लेषण के बाद यही चित्र उभरकर आता है। हालांकि, देखने और आलोचना का नजरिया अलग-अलग हो सकता है। यह कहना है समसामयिक मुद्दों को लेकर लगातार लिखने-पढ़ने वाले वरिष्ठ पत्रकार महेश भारती का। रविवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद त्वरित टिप्पणी करते हुए महेश भारती ने कहा कि वास्तव में हार तो लगातार वहां 34 वर्षों तक सत्ता में रही वाम मोर्चा और 30 वर्षों तक सत्ता में रही कांग्रेस की फिर से हुई। हालांकि वे दोनों सत्ता की वर्तमान लड़ाई में पहले से बाहर थी। वह फिर से पनपने के बजाय गर्त में गिरते हुए दो-दो सीटों पर सिमट गई। कभी राज्य में इन पार्टियों की तूती बोलती थी, राज्य की सत्ता और सत्ता की प्रतियोगिता इन्हीं के बीच होती थी। खुद आज की विजेता ममता बनर्जी भी तब उसी प्रतियोगिता का हिस्सा हुआ करती थी। ममता बनर्जी ने बंगाल में एक अदना महिला की तरह राजनीतिक समर क्षेत्र में वैसे 34 वर्षीय शासन से लोहा लिया, जो अपने सांगठनिक और सैद्धांतिक लौह आवरण के लिए जाना जाता था। इस अदना महिला ने ना उस गठबंधन को कहीं का छोड़ा और ना ही उस संगठन को, जिससे अलग होकर उसने बंगाल की राजनीति में पैठ बनाई। भाजपा की बंगाल में नई उपस्थिति इस चुनाव में थी। उसकी केन्द्र में सरकार है और एक दमदार और बहुमत की पार्टी का प्रधानमंत्री और गृहमंत्री उसके पास है। भाजपा ने आक्रमकता के साथ चुनाव लड़ा और बंगाल में ममता की सरकार को अपने तरीके से कड़ी चुनौती दी। भाजपा के नेताओं की फौज में देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी थे, इस चुनावी अभियान के उत्प्रेरक बने रहे। बंगाल में ममता की सरकार तो थी ही। यह सरकार सिर्फ और सिर्फ ममता के विचारों, उनकी पार्टी और बंगाल की अस्मिता की सरकार थी, जिसने वाममोर्चा को कभी उखाड़ा था। जिसने कभी अपने दल के ही नेताओं को चुनौती दी थी और पिछले तीन चुनावों में वह अपनी स्थिति मजबूत करते हुए जीतती रही। वह लगातार जीत रही है, यह जीत कोई अप्रत्याशित नहीं है। वाम और भाजपा को हराकर देश में एक नई लोकतांत्रिक राजनीति की वह सितारा बन चुकी है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र

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