इधर चला, मैं उधर चला... जानिए नीतीश कुमार ने कब-कब बदला पाला

Bihar News: नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही बिहार के बड़े नेता रहे हैं। दोनों नेताओं का राजनीतिक सफर 1974 के बिहार छात्र आंदोलन से शुरू हुआ।
Nitish Kumar and Lalu Yadav
Nitish Kumar and Lalu Yadav

बिहार, रफ्तार डेस्क। नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही बिहार के बड़े नेता रहे हैं। दोनों नेताओं का राजनीतिक सफर 1974 के बिहार छात्र आंदोलन से शुरू हुआ। बेशक नितीश कुमार का राजनीति में विधायक के रूप में प्रवेश 1985 में हुआ, वहीं लालू प्रसाद यादव 1977 में सांसद बने। लेकिन नीतीश कुमार का बिहार की राजनीति में बहुत ही अच्छी पकड़ रही है। जब लालू यादव 1990 में पहली बार CM बने थे, उस समय नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने लालू यादव को सीएम बनाने में काफी मदद की थी। राजनीति में कब दोस्ती का रिश्ता बिगड़ जाये कह नहीं सकते है, ऐसा ही कुछ इन दोनों वरिष्ठ नेताओं के बीच होता रहा है।

बिहार में नीतीश कुमार ने लालू यादव के खिलाफ 1994 में पहली बार विद्रोह किया था

बिहार में नीतीश कुमार ने लालू यादव के खिलाफ 1994 में पहली बार विद्रोह किया था। उन्होंने लालू यादव पर उपेक्षा का आरोप लगाया और पटना के गांधी मैदान में 'कुर्मी अधिकार रैली' का 1994 में आयोजन किया था। उन्हें लालू प्रसाद यादव से बड़ी नाराजगी थी, उन्होंने लालू को सीएम बनाने में काफी मदद की थी। जब उन्हें पार्टी में महत्व नहीं दिया जा रहा था तो नीतीश कुमार ने तत्कालिन जनता दल को छोड़ दिया और वर्ष 1994 में समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस, ललन सिंह के साथ जुड़कर समता पार्टी का गठन कर डाला। जब 1995 में नीतीश ने वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने CPI से अपना गठबंधन तोड़ने का निर्णय लिया और NDA से हाथ मिला डाला।

नरेंद्र मोदी का भाजपा में बड़े नेता के रूप में उभरने के कारण NDA को छोड़ डाला

नीतीश कुमार साल 1996 में लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले NDA में जुड़े और साल 2010 के विधानसभा चुनाव तक उनका यह सफर NDA के साथ जारी रहा। इस चुनाव में NDA ने बड़ी जीत दर्ज की थी। वर्ष 2012 से भाजपा में नरेंद्र मोदी का नाम एक बड़े नेता के रूप में उभरा और उन्हें केंद्र में लाने का निर्णय लिए जाने लगा। मगर नीतीश को भाजपा का यह निर्णय बिलकुल नहीं भाया और उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव को अकेले लड़ने का निर्णय लिया। नीतीश को अपने इस निर्णय के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। मोदी की लहर में उनकी पार्टी जदयू को सिर्फ 2 ही सीट पर जीत मिली। जिसके बाद उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पद भी छोड़ दिया था। मोदी से दूरी बनाते हुए उन्होंने फिर से लालू प्रसाद यादव के साथ जुड़कर महागठबंधन बनाया और 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बन गए। इस महागठबंधन को विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिली थी।

तेजस्वी यादव का भ्रष्टाचार में नाम आने के कारण महागठबंधन खत्म कर दिया

नीतीश कुमार का लालू प्रसाद यादव की पार्टी के साथ भी महागठबंधन ज्यादा नहीं चला और वर्ष 2017 में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का IRCTC घोटाले में नाम आने के कारण उन्होंने महागठबंधन को खत्म करने का निर्णय लिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद नीतीश फिर से BJP से जुड़कर गठबंधनकी सरकार बना ली।

साल 2020 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सौपा गया

साल 2020 में बिहार में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सौपा गया। बिहार विधानसभा चुनाव के 2020 के चुनाव में JDU को मात्र 43 सीटें मिली थी। वहीं बीजेपी को 74, RJD को 75 सीटों में जीत मिली थी।

अपनी सरकार में तेजस्वी को फिर से डिप्टी सीएम बनाया

नीतीश कुमार ने दो साल बाद ही 2022 में फिर से भाजपा को छोड़ने का निर्णय लिया और उन्होंने भाजपा में चल रहे दिक्क़तो का कारण बताते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अपने इस्तीफे के एक घंटे के अंदर ही उन्होंने कांग्रेस, राजद और लेफ्ट के साथ मिलकर फिर से अपनी सरकार बना ली। उन्होंने अपनी सरकार में तेजस्वी को फिर से डिप्टी सीएम बनाया।

वर्तमान में चल रहे उथल पुथल के बाद अब नीतीश कुमार क्या निर्णय लेंगे जल्द ही यह सबके सामने आ जायेगा। इस पर सबकी नजर बनी हुई है।

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