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वटवृक्ष की पूजा अर्चना के साथ वट सावित्री पर्व में आधी आबादी भाव मग्न

मधुबनी,10 जून(हि.स.)। जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण चौपाल पर गुरुवार को वट सावित्री पूजा अर्चना की गई। महिलाओं ने उत्साहवर्धन के साथ वटवृक्ष के पास पूजा अराधना की। भारतीय सभ्यता संस्कृति की अक्षुण्णता पूजा- पाठ एवं धार्मिक आराधना से ही आज भी सुरक्षित है।पंचदेवों के उपासना,आदि शक्ति की अराधना के साथ ही भारतीय वाङगमय में देवी- देवताओं के अतिरिक्त नदी वृक्ष आकाश सूर्य चंद्रमा नव- नवग्रह की पूजा की परिपाटी यहां प्राचीन काल से होती रही है। देवी देवताओं में लोक आस्था से जुड़ाव परम्परागत व्यवहार यहां रहा है।परम्परागत सांस्कृतिक पूजा-पाठ की विरासत से आम लोगों में अलौकिक संस्कार की रक्षा सदैव करती रही है।गुरुवार को जेष्ठ मास की अमावस्या के दिन यहां पर वट- सावित्री नामक प्रशस्त वट वृक्ष की पूजा करने वाली विशिष्ट पर्व महिलाओं द्वारा मनाया जा रहा है । विभिन्न वटवृक्ष के नीचे बैठकर मनोयोग से महिलाओं की लंबी कतार पूजा- अर्चना की है। सौभाग्य की रक्षा के साथ ही पति के दीर्घकालिक आयु की कामना वट सावित्री पर्व के उपलक्ष्य में महिलाओं ने की है।गुरुवार को बाल-बच्चों सहित सकल परिवार के कल्याणार्थ वटवृक्ष की समर्पित होकर पूजा-पाठ करते यहां महिलाओं की समर्पित भाव आज देखते बनती हैं। यहां पर लाल धागे से वटवृक्ष को लपेटकर पंखी से उसके जड़ को हौंककर और भींगा चना, मिठाई, फल-फूल, बेलपत्र, दुभ्भी, गंगाजल इत्यादि देकर गुरुवार को वटवृक्ष की जड़ को पूजती यहां पर महिलाएं आज फुले नहीं समा रही है। ज्येष्ठ मास में वट- सावित्री पूजा होती है।वटवृक्ष की पूजा काफी मनोयोग से महिलाएं उपवास रखकर करती है। यहां पर पर्यावरण के संतुलन के लिए परंपरागत व्यवहार में वृक्षों की पूजा करने की परंपरा शुरू से रही है। नदियों में गंगा, कोसी, कमला इत्यादि की पूजा पाठ की जाती है।जबकि इलाहाबाद में गंगा यमुना सारस्वती के त्रिवेणी संगम तट पर डूब लगाकर लोग नदी की पूजा करते हैं।शास्त्रों के मुताबिक समुद्र की गुहार भगवान रामचंद्र जी ने ही किया था। गंगा, कोसी,कमला आदि नदी को 'मैया' कहकर लोगों द्वारा संवोधन होता है। तात्पर्य है कि यहां पर पर्यावरण संतुलन के लिए वृक्ष नदी सूर्य चंद्रमा नवग्रह सभी देवी देवताओं की धार्मिक अनुष्ठान देखते हैं। हिंदू आभिजात्य परिवार में परम्परागत सांस्कृतिक पूजा-पाठ अधिक महत्व रखती है। अवसर विशेष पर घर की महिलाएं व पुरूष व्रत रखकर पूजा पाठ करते हैं। वृक्ष की पूजा-पाठ शूरू से होती रही है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि वृक्षों में मैं पीपल हूं। अर्थात पर्यावरण रक्षा को वृक्ष की पूजा यहां पर सदैव हुआ है। पीपल का पेड़ पर्यावरण संरक्षण की सबल संवर्धक है । पीपल अत्यधिक मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ती है। समाज में इस वर्ष करोना संक्रमण काल में ऑक्सीजन की कमी से लोग जूझ रहे हैं। लेकिन आज यहां पर वट सावित्री की पूजा कर जताया जा रहा है कि ऑक्सीजन छोड़ने वाले वटवृक्ष व पीपल के पेड़ की पूजा कर यहां की महिलाएं पर्यावरण को संतुलित करने की दिशा में हाथ बढ़ाते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/लम्बोदर

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