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गया जी महारानी अहिल्याबाई होलकर का हमेशा रहेगा ऋणी

गया, 01 जून (हि.स.)। अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद की सहयोगी संस्था 'ओजस्विनी' द्वारा विष्णुपद मंदिर की निर्मात्री महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 295वीं जयंती के अवसर पर संगठन की जिलाध्यक्षा डॉ कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी के निर्देशन में आयोजित ऑनलाइन वेबिनार में सदस्यों ने माता अहिल्याबाई के जीवन और कृतियों पर प्रकाश डालते हुए भाव-सुमन अर्पित किए। डॉक्टर प्रियदर्शनी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि श्री विष्णुपद मंदिर का जीर्णोद्धार करने के लिए इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर के प्रति गयाधाम की धरती सदैव ऋणी रहेगी। यह माता अहिल्याबाई की उदार धार्मिक प्रवृत्ति ही थी, जिसने उन्हें एक गरीब साधारण से परिवार में पली-बढ़ी बालिका से महारानी तक बना डाला था। 18वीं शताब्दी में, जब महिलाओं के जीवन का मूल उद्देश्य घर की चाहारदीवारी में बंद रहकर सास-श्वसुर, पति तथा पुत्र की सेवा- सुश्रुषा तक सीमित था, देवी अहिल्याबाई ने अपने वैधव्यावस्था के व्यक्तिगत दुःखों को दरकिनार करते हुए लीक से अलग हट कर नारी-शक्ति के समाजसेवी रूप को जीवंत किया। तमाम कष्टों और असुविधाओं के बावजूद आजीवन ईश्वर के प्रति उनकी आस्था अडिग बनी रही। देवी अहिल्याबाई का कर्मक्षेत्र महज उनके राज्यक्षेत्र इंदौर तक सीमित ही नहीं रहा, अपितु उन्होंने लोकहित में पूरे भारतवर्ष में मंदिरों, मूर्तियों, देवालयों, मंडपों, धर्मशालाओं, घाटों तथा कूपों का निर्माण करवाया। ओजस्विनी अध्यक्षा ने कहा कि किसी व्यक्ति का नाम समय के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में तभी अंकित हो पाता है, जब वह निष्काम भाव से जन-हितार्थ कार्य करता हुआ अपनी जीवन यात्रा को पूरा करता है। महारानी अहिल्याबाई भी निश्छल भाव के साथ तन-मन-धन से देश तथा समाज का कल्याण करती रहीं। महारानी ने मंदिरों में पूजा-अर्चना हेतु उच्चकोटि के धर्मज्ञों, विद्वानों तथा पुजारियों की भी नियुक्ति कीं। संगीत और साहित्य की समृद्धि हेतु भी महारानी ने अनेक यत्न किये। स्त्री जाति की प्रेरणा-स्रोत प्रजावत्सल महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किये गये लोकहितकारी कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आदर्शश मध्य विद्यालय, चिरैली की विज्ञान शिक्षिका डॉ ज्योति प्रिया ने दीप से दीप जलाने का दृष्टांत देते हुए सभी नारियों को महारानी अहिल्याबाई के कर्मठ जीवन से प्रेरणा लेकर अच्छे-अच्छे कार्य करने की गुजारिश की। बंगलोर अवस्थित अपने घर से जुड़ीं गया की समाजसेवी महिला रेणु रौनियार ने महिलाओं की स्मिता को गौरवान्वित करने के उद्देश्य से ओजस्विनी द्वारा आयोजित तमाम कार्यक्रमों की प्रशंसा करते हुए ओजस्विनी अध्यक्षा सहित सभी सदस्यों को महारानी अहिल्याबाई जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं दीं। के.एन.बक्शी कॉलेज ऑफ एजुकेशन गिरिडीह, झारखंड, की सहायक प्राध्यापिका नूतन शर्मा ने कहा कि यह सच है कि सामूहिक प्रयासों से ही समाज में परिवर्तन आता है, लेकिन शुरुआत अकेले ही करनी होती है। ईशा शेखर ने देवी अहिल्याबाई की दानशीलता का बखान करते हुए उन्हें भी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह "मर्दानी" बताया। शिल्पा साहनी ने कहा कि जब देवी अहिल्याबाई अपने परिजनों के निधन के उपरांत भी इतने समाजोपयोगी कार्य करती रहीं, तो हम क्यूं नहीं कर सकते ? हमारे साथ तो हमारा पूरा परिवार है। अर्पणा कुमारी के अनुसार महिलाओं को परिवर्तन लाने हेतु दकियानूस सोच का विरोध करने हेतु आवाज़ बुलंद करने की आवश्यकता है, तभी वे घर के साथ-साथ समाज में भी योगदान दे सकती हैं। अमीषा भारती और दीक्षा के अनुसार हम सब को देवी अहिल्याबाई का अनुकरण करते हुए देश-समाज की सेवा करते रहनी चाहिए। अश्विनी कुमार ने कहा कि माता अहिल्याबाई के धार्मिक सत्कर्मों के कारण ही विष्णुपद मंदिर के बाहर देवी की प्रतिमा के समक्ष लोगों का सर श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है। इस अवसर पर उपस्थित रिया कुमारी, वर्षा सिन्हा आदि ने भी महारानी अहिल्याबाई होल्कर के प्रति अपने भावसुमन अर्पित किए। कार्यक्रम की समाप्ति शांति पाठ से हुई। हिन्दुस्थान समाचार/पंकज कुमार

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