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भारतीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा नीति, भारत को पहुंचाएगी परम वैभव तक : अजीत कुमार

बेगूसराय, 23 फरवरी (हि.स.)। 2020 ने कोरोना के कारण देश को परेशान किया लेकिन कई अच्छी कड़ी भी दिए। इसी कड़ी में एक है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति दो सौ वर्षों से चले आ रहे शिक्षा की गुलामी से मुक्ति की नीति और मैकाले मुक्त शिक्षा पद्धति की नींव है। यह बातें भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांतीय उपाध्यक्ष अजीत कुमार ने मंगलवार को नीति आयोग एवं डाइट के संयुक्त तत्वावधान में बेगूसराय के शाहपुर स्थित डायट परिसर में आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए कही। अजीत कुमार ने कहा कि भारतीय मूल्यों पर आधारित यह शिक्षा नीति शिक्षा के मूल्यों को बदलकर भारत को परम वैभव तक पहुंचाने वाली है। किसी भी देश की दिशा उसके शिक्षा नीति पर निर्भर करता है और 29 जुलाई 2020 को लागू की गई थी यह नीति शिक्षा व्यवस्था को उच्चतम स्तर पर पहुंचा कर भारत को विश्व गुरु बनाने वाला साबित होगा। यह सच्चे अर्थ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति है, सांस्कृतिक अर्थ में भी यह शिक्षा नीति राष्ट्रीय है। इसमें भारत की मौलिक विचारधारा के अनुरूप अनेक बातें दिखाई देती है। विदेशी शिक्षा को पूरी तरह से परिवर्तित कर भारत केंद्रित, राष्ट्र निर्माणकारी शिक्षा व्यवस्था के निर्माण की नींव इसमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उच्च शालेय स्तर से प्रारंभ कर उच्च शिक्षा तक सभी वर्ग विशेष विषय के साथ ही आधे अंकों का समग्र पाठ्यक्रम अनिवार्य किया गया है। भारत का ज्ञान के अंतर्गत देश के सांस्कृतिक आध्यात्मिक ज्ञान के संबंध में पाठ्यक्रम की बात भी शिक्षा नीति में की गई है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा की चर्चा तो है लेकिन, विश्व में स्थान प्राप्त करने के लिए अंधानुकरण की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि 1835 में ब्रिटिशों ने भारतीय शिक्षा अधिनियम के द्वारा भारत की सर्वव्यापी, सर्वसमावेशक शिक्षा नीति को समाप्त करके ब्रिटिश शिक्षा तंत्र को भारत में रुढ़ किया था। जिससे शिक्षा का पूर्ण नियंत्रण सरकार के हाथ में चला गया। ब्रिटिश सरकार ने सात लाख से अधिक गांवों में फैले भारतीय समग्र और एकात्म शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। आजादी के 73 वर्षों बाद ऐसी दृष्टि वाली शिक्षा नीति सामने आई है जो मैकाले के षड्यंत्र को पूरी तरह से विफल कर सकती है। सेमिनार को संबोधित करते हुए बिहार प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के संयुक्त सचिव सुरेश प्रसाद राय ने कहा कि शिक्षक के बगैर राष्ट्र के विकास की परिकल्पना नहीं हो सकती है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा

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