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संघर्षों का ईनाम है टीएमबीयू में अंगिका का स्वतंत्र भवन, पूर्व कुलपति रामाश्रय यादव ने जीता था अंगवासियों का दिल तो वर्तमान कुलपति संजय चौधरी ने अंग वासियों का जीता दिमाग

भागलपुर, 20 फरवरी (हि.स.)। काफी जद्दोजहद और लंबे संघर्ष के बाद, उपेक्षा का दंश झेल रहे अंगिका विभाग को अपना भवन मिल ही गया।जिसका उद्घाटन शनिवार को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.(डॉ.) संजय कुमार चौधरी ने किया। अंगिका विभाग के स्थापना काल के बाद से टीएमबीयू में अब तक कई कुलपति आए। लेकिन इस विभाग पर सबसे ज्यादा ध्यान वर्तमान कुलपति प्रो.(डॉ.) संजय कुमार चौधरी ने दिया। स्नातकोत्तर अंगिका विभाग के नये भवन उद्घाटन के मौके पर प्रो.(डॉ.) बहादुर मिश्रा, अंगिका विभाग के वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रो.योगेंद्र महतो, कुलसचिव निरंजन प्रसाद यादव भी उपस्थित थे। अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डॉ.चौधरी ने कहा कि अंगिका विभाग के लिए शिक्षकों की बहाली भी होगी और तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय अंतर्गत, जितने भी अंगीभूत महाविद्यालय हैं, वहां अंगिका की पढ़ाई स्नातक स्तर से शुरू की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय की उन्नति व प्रगति के लिए, जो भी बन पड़ेगा, वे करेंगे। कुलपति ने कहा कि वे खूद भागलपुर के रहने वाले हैं। इसलिए अंगिका उनके सांसों में बसती है। उन्होंने कहा कि एक अंगिका पुत्र होने के नाते, अंगिका भाषा की उन्नति व प्रगति के लिए बेहतरीन कार्य करना उनके लिए भी गौरव की बात होगी। इस मौके पर डॉ.बहादुर मिश्र ने कहा कि अंगिका एक समृद्ध भाषा है और इसकी ऐतिहासिकता बड़ी ही प्राचीन है। इनकी उपेक्षा खुद की उपेक्षा है। उन्होंने अंग-अंगिका की ऐतिहासिकता व भौगोलिक स्थिति-परिस्थिति की विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि अंगिका उनके प्राणों में बसी हुई है। कुलगीतकार आमोद कुमार मिश्र ने कुलपति के इस कार्य की प्रशंसा की और आशा व्यक्त किया कि अंगिका को आगे बढ़ना है और इसके लिए मार्ग प्रशस्त हो चुका है। मौके पर मौजूद कथाकार शिव कुमार शिव ने कहा कि अंगिका विभाग के लिए जो भी मदद की जरूरत होगी, वे करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे भले ही अंगिका नहीं लिख पाते हैं, लेकिन अंगिका उनकी रगों में बसी हुई है और अंगिका उनके जीवन का आधार है। उल्लेखनीय हो कि भोजपुरिया समाज के एक शिक्षाविद पुत्र और तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ.रामाश्रय यादव को जब यह एहसास हुआ कि अंगक्षेत्र यानी भागलपुर के आसपास की प्राचीन भाषा अंगिका के साथ सौतेला व्यवहार किया गया है और उसके विकास के लिए शैक्षणिक स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया गया है, तब उन्होंने वर्ष 2002 में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत अंगिका विभाग की स्थापना की और यह तय हो गया कि अंगिका भाषा को अब शैक्षणिक पहचान मिलेगी और यह भाषा शिक्षा का माध्यम भी बनेगा। तब इस पूर्व कुलपति रामाश्रय यादव ने अंगिका विभाग की नये भवन के लिए भूखंड भी आवंटित कर दिया था जिसपर बिल्डिंग तो बनी, लेकिन वह परीक्षा विभाग के सुपुर्द कर दिया गया और पिछले 19 वर्षों तक अंगिका विभाग का क्रियाकलाप हिंदी विभाग के भवन में ही होता रहा। इस बीच अंगिका विभाग ने कई तरह के झंझावातों को झेला, हिंदी विभाग के ही कई वरिष्ठ विद्वान शिक्षकों को इस विभाग का दायित्व दिया गया और कई बार तो ऐसी स्थिति आई कि विभाग बंद हो जाएगा, क्योंकि विभाग में नामांकन कराने वालो़ की संख्या नगण्य हो गई। वर्ष 2008 में इसी कारण से विभाग बंद होने की स्थिति तक पहुंच गया और तब तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ.मधुसूदन झा ने अपने प्रयासों से न केवल छात्रों का नामांकन कराया बल्कि अंगिका भाषा में कई छात्रों को पीएचडी भी करवायी। अंगिका भाषा की तरक्की और पहचान के लिए अनेक साहित्यकारों एवं संगठनों ने अपने-अपने बैनर तले अंगिका के हक-हकूक को लेकर संघर्ष को अंजाम दिया, कुछ लोगों ने तो अंगिका के हक-हकूक की मांग को लेकर पूरे बिहार-झारखंड में चरणबद्ध आंदोलन की लड़ी खड़ी कर दी और राजधानी पटना व रांची में बैठे हुक्मरानों तक अपनी आवाजें पहुंचायीं और यह आंदोलन आज भी महज इसलिए जारी है कि अंगिका भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाना ही अब इन संघर्ष कारियों का एक मुख्य लक्ष्य व उद्देश्य हो गया है। अंगिका विभाग के वर्तमान विभागाध्यक्ष डॉ. योगेंद्र ने कहा कि लोगों का संघर्ष व्यर्थ नहीं जाएगा और ईमानदारी से किया हुआ संघर्ष इसी तरह रंग लाता है, जो आज अंगिका के लिए एक स्वतंत्र भवन का मिलना प्रमाणित करता है। उन्होंने कहा कि अंगिका के लिए विभाग के अंतर्गत, जो भी बेहतर कार्य होंगे, उसे वे पूरी ईमानदारी पूर्वक निष्ठा के साथ करेंगे। जिससे कि अंगिका भाषा को एक नई पहचान मिले। इस मौके पर डॉ.अमरेन्द्र, प्रो.रामचन्द्र घोष, त्रिलोकीनाथ दिवाकर, सुधीर कुमार सिंह प्रोग्रामर, हीरा हरेंद्र, कुमार गौरव, भोला बागवानी, डॉ. गौतम यादव, डॉ.मनजीत सिंह किनवार, डॉ. सुजाता कुमारी, कैलाश ठाकुर, कपिल देव ठाकुर कृपाला, मनोज पांडेय, गोपालचंद सुमन, गौतम सुमन गर्जना एवं अन्य लोग उपस्थित थे। हिन्दुस्थान समाचार/बिजय

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